भवी आत्मा सत्संग पाकर श्रद्धाशील बन जाती हैं : महासती विजयलक्ष्मी

उदयपुर, 16 जुलाई। श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में केशवनगर स्थित नवकार भवन में चातुर्मास कर रही महासती विजयलक्ष्मी जी म.सा. ने बुधवार को धर्मसभा में कहा कि कर्म युक्त आत्मा संसारी व कर्म मुक्त आत्मा वितरागी कहलाती है। जो भवी आत्मा होती है, वह सत्संग पाकर श्रद्धाशील बन जाती है। अभवी आत्मा सत्संग पाकर भी कभी भवी नहीं बनती। हमें आत्मा नजर नहीं आती है, पर उसका अस्तित्व दूध में रहे हुए घी के समान है, जिसका साक्षात्कार करने के लिए एवं कर्मों से हल्का बनाने हेतु पुरुषार्थ आवश्यक है. हम सभी अप्रमत्त बन तप-त्याग, धर्म-ध्यान करते हुए अपने जीवन का उत्थान करें। इससे पूर्व महासती सिद्धिश्री जी म.सा. ने कहा कि सुबाहु कुमार की तरह हम भी संत दर्शन के प्रति उत्साह जगाएं। श्रीसंघ मंत्री पुष्पेन्द्र बड़ाला ने बताया कि आज दोपहर में महासती नन्दिताश्री जी ने श्राविका मण्डल की बहनों को पच्चीस बोल में से प्रथम बोल पर विस्तार से समझाया। मीडिया प्रभारी डॉ. हंसा हिंगड़ ने बताया कि महासती जी म.सा. की निश्रा में महिला मंडल के तत्वावधान में 21 जुलाई से उपासकदशांग सूत्र पर आधारित प्रश्न मंच का आयोजन किया जा रहा है, जिसे लेकर उत्साह का माहौल है।

जीवन को कर्म प्रधान बनाएं : जिनेन्द्र मुनि
उदयपुर, 16 जुलाई। श्री वर्धमान गुरू पुष्कर ध्यान केन्द्र के तत्वावधान में दूधिया गणेश जी स्थित स्थानक में चातुर्मास कर रहे महाश्रमण काव्यतीर्थ श्री जिनेन्द्र मुनि जी म.सा. ने बुधवार को धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि हमें अपना जीवन कर्म प्रधान बनाना चाहिए। अच्छे कर्म करते चलो सफलता स्वतः प्राप्त हो जाएगी। व्यक्ति को अपने कर्मों का फल इसी जन्म में भोगना पड़ता है। हम परीक्षण करें कि हम प्रति क्षण, प्रतिदिन जो कर्म कर रहे है वह हमें जीवन में उंचाई की तरफ ले जा रहे है या कहीं लापरवाही हमें नीचे तो नहीं गिरा रही है। अच्छे कर्मों का फल शुभ व बुरु कर्मों का फल अशुभ मिलता है। प्रभु की कृपा से जीवन में यदि सत्ता, सम्पति व सत्कार मिले तो उसे बचाए रखने के लिए आवश्यक है हम अपने अच्छे कर्मों की बढ़ोत्तरी करें। जीवन के सच्चे मूल्य को समझे। धर्मसभा को श्री प्रवीण मुनि जी ने भी सम्बोधित किया। अध्यक्ष निर्मल पोखरना ने बताया कि म.सा. की निश्रा में कई श्रावक-श्राविकाओं ने त्याग-प्रत्याख्यान ग्रहण किए। इसके साथ ही तप-त्याग और धर्म-ध्यान की लड़ी लगी हुई है।

By Udaipurviews

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