आलम शाह ख़ान की याद में साहित्यिक विमर्श

उदयपुर में जुटे देश के ख्यातनाम साहित्यकार
मजलूम, बेजूबान और हाशिये पर बैठे समाज के पक्ष में शाह का लेखन अविस्मरणीय :फारुक आफरीदी

उदयपुर 17 मई। प्रसिद्ध कथाकार प्रोफ़ेसर आलम शाह ख़ान की याद में बुधवार को सूचना केंद्र सभागार में देश के ख्यातनाम साहित्यकारों ने विचार-विमर्श किया। इस  दौरान साहित्यिक और सांस्कृतिक सत्रों में उनकी कहानियों तथा कथा में नाटक के तत्व आदि विषयों पर चर्चा हुई।

आलम शाह ख़ान यादगार कमेटी की संयोजक कथाकार तराना परवीन ने बताया कि कार्यक्रम में साहित्यकार फारुक आफरीदी, पल्लव, प्रबोध कुमार गोविल, असगर वजाहत आदि के साथ ही नगर के प्रबुद्ध साहित्यकार पहुंचे। इसके अलावा चित्तौड़, डूंगरपुर तथा जयपुर आदि जिलों के साहित्यकर्मियों ने भाग लिया। यह कार्यक्रम राजस्थान साहित्य अकादमी तथा आलम शाह खान यादगार समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ।

परवीन ने बताया कि प्रथम एवं उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि प्रबोध कुमार गोविल रहे तथा सत्र की अध्यक्षता फारूक आफरीदी ने की, दूसरे सत्र में मुख्य वक्ता असगर वजाहत रहे तथा अध्यक्षता माधव हाडा ने की, तीसरे सत्र में मुख्य वक्ता लईक हुसैन रहे तथा अध्यक्षता हेमेन्द्र चण्डालिया ने की।

कार्यक्रम में पहुंचे फारुक आफरीदी ने कहा कि डॉ आलम शाह खान समाज के गरीब, पिछड़े, मजदूर और महिला वर्ग की चिंताओं और तकलीफों के चितेरे कथाकार थे। डॉ खान ने मानव अधिकारों के हनन को लेकर अपनी कहानियाँ लिखी और मजलूम, बेजूबान और हाशिये के समाज के पक्ष में खड़े होने का साहस दिखाया। डॉ खानने आंचलिक भाषा के वैशिष्टया को राष्ट्रीय स्तर पहचान दिलाई।

इस तरह प्रबोध कुमार गोविल ने कहा कि डॉ आलम शाह खान का नाम उनके लिए आकर्षण था, शाह साहब की कई कहानियाँ पढ़ी, उनकी कहानियों पर मजबूत पकड़ थ, उनके साहित्य पर लमबे समय पर चर्चा होती रहेगी।  गोविल ने कहा कि अभी उनका उजाला और घना करने की जरूरत है, उन्हें अपने जीवन में विभिन्न स्तरों पर लड़ाई लड़नी पड़ी, उनके अद्भुत लेखन के प्रति वे नतमस्तक हैं।

मंच से वरिष्ठ साहित्यकार गोविंद माथुर ने कहा कि राजस्थान के लेखकों में शाह की चर्चा अधिक नहीं हुई, डॉ आलम शाह खान सर्वहारा वर्ग की कहानियाँ लिखते थे, उनकी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए हमें कोशिश करनी चाहिए एवं साहित्य अकादमी और अन्य संस्थाओं को भी आगे आना चाहिए। ऐसे ही डॉ सत्यनारायण व्यास ने कहा कि फासीवादी लोग पाखंड के बाल पर सत्ता में या जाते हैं, डॉ आलम शाह खान की आज भी जरूरत है, उनका कबीराना अंदाज गजब का था, वे स्पष्टवादी एवं निर्भीकता के प्रतीक थे। उनके चरित्र में दोहरापन नहीं था, वे विद्रोही प्रवृति के लेखक थे, कबीर की तरह विद्रोही प्रवृत्ति के थे, उनकी कहानियां मनोरंजन के लिए नहीं थी, जीवन के अस्तित्व का संघर्ष उनकी कहानियों में झलकता था।

डॉ सरवत खान ने कहा कि शाह की कहानियाँ आने वाली पीढ़ियाँ पढ़ेंगी और हमेशा प्रासांगिक रहेंगी, हम सभी को मिल कर शाह पर और अधिक काम करना है। किशन दाधीच ने कहा कि शाह के संस्मरणों पर किताब आनी चाहिए, वे खुद्दारी के सिपाहसलार थे, उनकी भाषा अपने समय और परिवेश की भाषा है, समय के दुख को निकटता से देखते थे, उनकी कहानियों में समाज का दुख झलकता था।

तृतीय सत्र की अध्यक्षता राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ दुलाराम सहारण ने की। उन्होंने कहा कि अकादमी राजस्थान के पुरोधाओं के सम्मान में कार्यक्रम आयोजित करेगी। उन्होंने घोषणा की कि अकादमी अगले वर्ष प्रोफेसर आलम शाह खान के सम्मान में दो दिवसीय आयोजन करेगी। सत्र के मुख्य वक्ता भारतीय लोक कला मंडल के निदेशक डॉ लईक हुसैन ने डॉ आलमशाह ख़ान की चर्चित कहानी मौत का मज़हब की प्रस्तुति के विविध पक्षों की चर्चा की तथा कहा कि डा. ख़ान की चर्चित कहानियों में जिन मानवीय मूल्यो का चित्रण है। उन्हें जन जन तक पहुंचाना आवश्यक है।

इस सत्र में युवा रंगकर्मी सुनील टाक में प्रोफेसर आलम शाह खान की कहानियों के नाट्य रूपांतरण एवं लघु फिल्म निर्माण की संभावनाओं की चर्चा की। इस सत्र का संचालन प्रोफेसर हेमेंद्र चंडालिया ने किया। सत्र के अंत में डॉ तबस्सुम खान एवं समिति अध्यक्ष आबिद अदीब ने धन्यवाद ज्ञापित किया। भारतीय लोक कला मंडल में कविराज लाइक हुसैन के निर्देशन में आलम शाह खान की कहानी मौत का मजहब की नाट्य प्रस्तुति की गई

By Udaipurviews

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