बेरोजगारी मिटाने का हल जमीन से ही निकलेगा: कटारिया

आर.सी.ए. में नवीन परीक्षा सभागार का उद्घाटन
– कृषि क्षेत्र में रोजगार की विपुल संभावनाएं
– 140 करोड़ की आबादी, मैंनपावर कहां खपाएंगे ?
– कृषि के साथ चलने वाले व्यवसाय तलाशें
– छोटी जोत वाले किसानों के लिए मॉडल तैयार हो

उदयपुर, 1 जुलाई। विश्व में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला भारत चौथा देश होने के साथ ही 140 करोड़ आबादी का हो चुका है। ऐसे में बेरोजगारी का रास्ता भी इस जमीन से ही निकलेगा यानी कृषि क्षेत्र और इसमें अपार संभावनाएं है। आवश्यकता नजरिया बदलने की है। खेती के साथ चलने वाले व्यवसाय को पहचानने की जरूरत है वरना इतने बड़े मैनपावर को हम कहां खपाएंगे ? यह बात पंजाब के राज्यपाल एवं प्रशासक चंडीगढ़ महामहिम श्री गुलाब चन्द कटारिया ने कही। कटारिया मंगलवार को राजस्थान कृषि महाविद्यालय परिसर में नवनिर्मित परीक्षा सभागार के उद्घाटन उपरांत नूतन सभागार में समारोह को संबोधित कर रहे थे। कीट विज्ञान विभाग में बने इस परीक्षा सभागार के लिए स्वयं कटारिया ने ही अपने विधायक मद से 20 लाख रुपये दिए थे।
उन्होंने कहा कि भारत को अन्न की दृष्टि से हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने ही आत्मनिर्भर बनाया वरना हम अमेरिका से आयातित पी.एन. 48 गेहूँ पर आश्रित थे। यह लाल गेहूँ भी कंट्रोल की दुकानों से लाना पड़ता था। हमारे कृषि वैज्ञानिकों की क्षमताएं अपार है। उपज को बढ़ाते-बढ़ाते आज हम अपना पेट ही नहीं भर रहे हैं बल्कि कई देशों की भूख को शांत भी कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि उदयपुर आदिवासी बहुल इलाका है। यहां किसानों के पास छोटी-छोटी जोत है। आदिवासी बारिश होने के बाद खेत में मक्का बीज डालकर मजदूरी के लिए गुजरात चला जाता है। बाद में फसल पशु चट कर जाते हैं या हरे भुट्टे लोग तोड़ ले जाते हैं। छोटी जोत वाले किसानों की मानसिकता को बदलना होगा। एमपीयूएटी वैज्ञानिकों को ऐसा मॉडल तैयार करना होगा जिसे अपनाकर छोटी जोत के किसान परिवार अपना भरण पोषण कर सके। वो चाहे नींबू, आम, आंवले का बगीचा हो या फूल की खेती। खेती का पेटर्न बदलने की जरूरत है। दुःख इस बात का है कि हमने खेती करने वाले को सदैव अपमानित किया। विश्वविद्यालय अभियान चलाकर एक गांव-एक किसान का चयन कर बगीचा लगाए ताकि आस-पास के कृषक भी देखकर आत्मनिर्भर बन सके। कीटनाशकों के दुष्प्रभाव सामने है। हर तीसरे घर में कैंसर मरीज है। प्रयास यह हो कि आदमी की सेहत भी ठीक रहे और आमदनी भी हो।
कटारिया ने समारोह में मौजूद कृषि विद्यार्थियों का आह्वान किया कि भारत देश तुम्हें देख रहा है। तीसरी अर्थव्यवस्था से भारत को प्रथम पायदान पर लाने की क्षमता आप सभी में है और पूरे मनोयोग से डटे रहे तो यह उपलब्धि भी जल्दी हासिल कर लेंगे।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि नई शिक्षा नीति के आलोक में दो वर्ष पूर्व ही राजस्थान कृषि महाविद्यालय में 60 सीटें बढ़ाई गई। वर्तमान में एक ही परीक्षा हॉल होने से 192 छात्रों की तीन पारियों में परीक्षाएं लेनी पड़ती थी। अब नया परीक्षा सभागार बनने से विद्यार्थियों को सुविधाएं मिलेगी। वर्ष 2022 में असम राज्यपाल का पद ग्रहण करने से पहले विधायक मद से माननीय कटारिया जी ने 20 लाख रूपये प्रदान किए थे।
डॉ. कर्नाटक ने कहा कि एरिया का प्रथम कृषि महाविद्यालय की स्थापना 1960 में हुई जबकि उदयपुर का कृषि महाविद्यालय पांच वर्ष पूर्व यानी 1955 में ही आरंभ हो चुका था। इस महाविद्यालय से निकले छात्र देश-दुनिया में ऊंचे पदों पर आसीन है। आज एमपीयूएटी विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ संस्कृति से जोड़ने का काम भी कर है। देशभर में कुल 73 कृषि विश्वविद्यालयों में एमपीयूएटी का नाम शीर्ष में गिना जाता है। अनुसंधान, नवाचारों पर यहां खूब काम हुए। एमपीयूएटी को अब तक 58 पेटेंट मिल चुके हैं। इनमें 2 साल 8 माह के उनके कार्यकाल में ही 41 पेटेंट हुए है। अनुसंधान का इंडेक्स 37 से बढ़कर 81 हो चुका है।
विश्वविद्यालय वैज्ञानिकों ने प्रताप संकर मक्का 6 विकसित की है जिसकी उपज 60-65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है जबकि वर्तमान में 30-35 क्विंटल प्रति हैक्टेयर ही उपज मिल रही थी। विश्वविद्यालय ने छह कम्पनियों से समझौता कर संकर मक्का 6 का ब्रीडर सीड तैयार करने को कहा है ताकि किसानों को लाभ मिल सके। इसके अलावा सौर ऊर्जा, ग्रीन एनर्जी, खरपतवार, प्रबन्धन, जैविक व प्राकृतिक खेती के साथ-साथ अनुसंधान, कौशल विकास में भी विश्वविद्यालय ने उल्लेखनीय कार्य किए।
आरम्भ में राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. आर.बी. दुबे ने स्वागत भाषण में कहा कि वर्ष 1987 में उदयपुर कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर चला गया तो जन आंदोलन में श्री कटारिया के प्रयासों से ही 1999 में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की नींव रखी गई। राजस्थान कृषि महाविद्यालय देश का सबसे पुराना कृषि महाविद्यालय है। अब तक यहां से 4441 बी.एस.सी., 3815 एम.एस.सी. और 2528 छात्र-छात्राएं पी.एच.डी. उपाधि ले चुके हैं।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय प्रबन्ध समिति के सदस्य, डीन-डायरेक्टर डॉ. अरविन्द वर्मा, डॉ. आर.एल. सोनी, डॉ. सुनील जोशी, डॉ. आर.ए. कौशिक, डॉ. कविता जोशी, डॉ. एस रमेश बाबू सहित बड़ी संख्या में छात्र छात्राएं उपस्थित थे। संचालन डॉ. कपिल देव आमेटा ने जबकि डॉ. एस.एस. लखावत ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

जल संरक्षण में उदयपुर अद्धितीय मिसाल

राज्यपाल पंजाब एवं प्रशासक चंड़ीगढ़ श्री गुलाबचन्द कटारिया ने कहा कि मैं भी देश-दुनिया घूमा हूं लेकिन जल संरक्षण का उदयपुर जैसा उदाहरण कहीं भी देखने को नहीं मिला। तब न तो विज्ञान ने इतनी तरक्की की थी और न ही पढ़ाई-लिखाई थी। उस जमाने में महज दो सौ मीटर पाल बांधकर उदयपुर ने एशिया की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील बना दी जो वर्षपर्यन्त भरी रहती है। यहां के महाराणाओं की पैनी सोच का ही परिणाम है कि तालाब के पास तालाब बनाकर जल का संरक्षण किया।
उन्होंने देवास परियोजना का जिक्र करते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री मोहन लाल सुखाड़िया को याद करते हुए कहा कि 1965 में ही सुखाडिया ने देवास परियोजना के चार चरणों का तख्मीना तैयार कर लिया था। प्रथम व द्वितीय चरण पूरा होने के बाद केवल उदयपुर ऐसा शहर है, जहां अप्रेल में आकोदड़ा बांध से पानी छोड़कर झीलों को भरा जाता है। तीसरा व चौथा चरण पूरा होने पर देवास समूचे मेवाड़ को सरसब्ज रखने के साथ ही बीसलपुर तक पानी पहुंचाने में सक्षम है। उन्होंने जिक्र किया मेवाड़ में सर्वाधिक वर्षा गोगुन्दा में होती है, लेकिन वहां के लोग प्यासे हैं। गोगुन्दा का पानी उदयपुर के लोग पी रहे हैं। ऐसे में जल संरक्षण की दिशा में प्रभावी प्रयास करने होंगे।

By Udaipurviews

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