उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में चल रहे चातुर्मास में श्रमण संघीय प्रवर्तक सुकनमुनि महाराज ने प्रातःकालीन सभा में कहा कि भगवान महावीर की वाणी जिनवाणी है। मानव मात्र का कल्याण करने वाली है जिनवाणी। जो जिनवाणी पर श्रद्धा रखते हैं वह जानते हैं कि जिनवाणी से किस तरह हमारे जीवन का उद्धार होता है, उत्थान होता है और जीवन को कैसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
भगवान महावीर ने हमें जीवन के कल्याण का मार्ग बताया है। जीवन कल्याण के लिए हमें समभाव को धारण करना है। और सम्यक भाव के साथ ही भगवान महावीर की वाणी को अपने जीवन में उतारना है। जिनवाणी की आराधना से हम अपने ही जीवन का अभ्युदय कर सकते हैं। जीवन में चाहे कितनी ही परेशानियां आए संकट आए अगर हम मजबूत हैं तो भगवान भी हमारी सहायता करते हैं।
मुनिश्री ने कहा कि पर्युषण पर्व प्रारंभ हो रहे हैं। यह आठ दिनों की प्रभु आराधना के महापर्व है। हमें पूरे आठों ही दिन प्रभु को समर्पित हो जाना है। पर्यूषण महापर्व भगवान महावीर की अक्षुण्ण परंपरा है। यह आठ दिन हमारे साधना और हमारे पाप कर्मों को धोने के दिन है। इन आठ दिनों में केवल और केवल हमें आध्यात्मिक कार्य ही करना है। सांसारिक कामों से दूर रहकर हमें साधना और आराधना में ही लीन रहना है। इन आठ दिनों तक सभी अपनी आत्मा को शुद्ध, बुद्ध और मुक्त रखें।
मुनिश्री ने कहा कि आजकल संसार में स्वार्थ ज्यादा हावी हो रहा है। लेकिन यह भी याद रखना जरूरी है कि जहां स्वार्थ होता है वहां समता भाव नहीं रहता है। स्वार्थ से जीवन में किसी का कल्याण नहीं होता है। यह आपके ऊपर निर्भर है कि आपको जीवन कैसा बनाना है। देव तुल्य जीवन बनाना है या राक्षस तुल्य जीवन बनाना है। धार्मिक आयोजनों में और सांसारिक आयोजनो में बहुत फर्क होता है। धार्मिक आयोजन आत्म कल्याण और आत्म शुद्धि के लिए किए जाते हैं। इसलिए इन आयोजनों में ज्यादा से ज्यादा भागीदार बनकर धर्म लाभ लेने का प्रयत्न करें और अपने जीवन को देवतुल्य बनाने का प्रयत्न करें।
धर्म सभा का संचालन करने वाले एडवोकेट रोशन लाल जैन ने समाज जनों से पर्यूषण महापर्व के दौरान व्यवस्थाओं में किए गए बदलावों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने श्रावकों से कहा कि इन आठ दिनों के पर्यूषण महापर्व के आयोजनों में हमारे क्या कर्तव्य है, किस तरह से व्यवस्थाओं के साथ चलना है सारी बातों की जानकारी दी।
महावीर की वाणी को अपने जीवन में उतारने का माध्यम है जिनवाणीःसुकनमुनि
