– वैदिक संस्कृति ही भारत का जीवन है – विषय पर व्याख्यानमाला का हुआ आयोजन
उदयपुर 16 जून / जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय के संस्थापक मनीषी पंडित जनार्दनराय नागर की 114वीं जयंती पर सोमवार को प्रतापनगर परिसर में स्थापित जनुभाई की आदमकद प्रतिमा पर कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत , कुलाधिपति एवं कुल प्रमुख बीएल गुर्जर, पूर्व कुल प्रमुख प्रफुल्ल नागर, पूर्व कुलपति प्रो. दिव्यप्रभा नागर, पीठ स्थविर डाॅ. कौशल नागदा, रजिस्ट्रार डाॅ. तरूण श्रीमाली, आशीष नागर के सान्निध्य में तीनों परिसर के कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हे सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया।
वैदिक संस्कृति विश्व विख्यात होने के साथ जीने का अर्थ सिखाती है – प्रो. सारंगदेवोत
आईटी सभागार में वैदिक संस्कृति ही भारत का जीवन है विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला मेें विषयप्रवर्तन पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कुलपति कर्नल प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि योगः कर्मसु कौशलम का भाव भारतीय संस्कृति में परिलक्षित होता है। सम्पूर्ण विश्व को जीने का अर्थ सीखाता है भारत, ऐसे आत्म बोध का ज्ञान सिखाती है भारतीय संस्कृति । उन्होंने कहा कि धर्म पूजा पाठ तक ही सीमित नही है बल्कि सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं सांस्कृतिक विस्तारवाद का मूल आधार है। वैदिक संस्कृति विश्व बंधुत्व का भाव जागृत है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को चरितार्थ करना ही भारतीय संस्कृति का मूल है। जनुभाई ने वैदों के महत्वपूर्ण अंग शिक्षा को व्यक्तित्व विकास का महत्वपूर्ण अंग मानते हुए राजस्थान विद्यापीठ के रूप में राष्ट्र को समर्पित किया। उन्होंने कहा कि हमारी वैदिक संस्कृति विश्व में विख्यात है जो आ नो भद्रा …… के भाव के अनुरूप विश्व कल्याण के भाव को परिलक्षित करती है। हमारी वर्ण व्यवस्था कर्मवाद पर निर्भर होती थी जो आज व्यक्तिगत लाभ के आधार पर हो रही है। वैदिक संस्कृति, कठोपनिषद संस्कृत भाषा के संरक्षण एवं संवर्धन पर जोर देती है। भारतीय संस्कृति में पशु पक्षी की भी पूजा होती थी जो प्रकृति चक्र को बनाये रखते में महत्वपूर्ण योगदान रहता है। उन्होंने सनातन की बात करते हुए रामायण, महाभारत आदि ग्रंथों के माध्यम से मानव निर्माण संस्कारों के समावेश पर बल दिया। भारतीय संस्कृति भारत की आत्मा है।
उन्होने कहा कि जनुभाई ने शिक्षा के क्षेत्र में जो कार्य किया है वह अतुलनीय है, हम सोच भी नहीं सकते कि आजादी के 10 साल पहले पांच कार्यकर्ता एवं 03 रूपये के बजट से इस संस्था की स्थापना की थी, आज वह 10 हजार विद्यार्थियों व एक हजार कार्यकर्ताओं के साथ करीब कुल एवं विश्वविद्यालय के 80 करोड़ के सालाना बजट के साथ एक वटवृक्ष बन चुका है। हमने कई ऐसे आयाम स्थापित किए जो उनके सपनों में थे।
अध्यक्षता करते हुए कुलाधिपति भंवर लाल गुर्जर ने जनुभाई को नमन करते हुए कहा कि 1974 में जनुभाई मुझे इस संस्था में लाये। मुझे कार्यकर्ता जनुभाई ने बनाया। विपरीत परिस्थितियों में लालटेन के सहारे जनुभाई विद्यापीठ की स्थापना की। आज विद्यापीठ वटवृक्ष बन गया है जिसे कर्म निष्ठा और समर्पण भाव से संजोना है। संस्था का कार्य विस्तार, समर्पण का भाव ही संस्था को सही मायने में सफलता सुनिश्चित करता है। समय की अनुशासन पूर्वक पालना ओर कर्म प्रधान रहते हुए कार्य करना प्रथमिकता हो। उस हेतु प्रेरित किया। पंडित नागर की सोच का ही परिणाम था कि वे शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को साक्षर एवं प्रबुद्ध नागरिक बनाते हुए जीविकोपार्जन के लिए तैयार करना है, लेकिन वास्तविक उद्देश्य मनुष्य को सभी पहलुओं से व्यापक बनाना एवं विकसित करना है। उन्होंने कहा कि जनुभाई अपने आप में किसी पुरस्कार से कम नहीं थे। उन्होंने संस्था की शुरूआत दिन भर काम करने वालों को पुनः शिक्षा की मुख्य धारा से जोडने के उद्देश्य से रात्रिकालीन श्रमजीवी कॉलेज की स्थापना की।
प्रमुख अतिथि पूर्व कुलपति दिव्य प्रभा नागर ने कहा जनुभाई ने बचपन से संघर्ष किया। बचपन में ही स्वतंत्रता के लिए आजादी के आंदोलन में कुद गये। आमजन में आजादी की अलख जगाने के लिए रात्रि में हाथ से लिख कर समाचार पत्र वितरित किए। संघर्ष के दौर में आगे बढ़ते हुए लगा कि समाज को जरूरत शिक्षा की है और उन्होनें आजादी के 10 वर्ष पूर्व 05 कार्यकर्ता एवं तीन रूपये के साथ संस्था की स्थापना की। प्रो. नागर ने कहा कि हम वेदों, पुराणो व शास्त्रों की बात तो करते है लेकिन उसके अंदर क्या है वे नहीं जानते और न ही उसे अपने असल जीवन में नहीं उतारते।
विशिष्ठ अतिथि पुर्व कुल प्रमुख प्रफुल्ल नागर ने कहा भारतवर्ष में ऐसी कोई संस्था नहीं है जो कार्यकर्ताओं के द्वारा संचालित होती है। यहा का कार्यकर्ता ही छोटे से बड़े पदों पर आता है। जनुभाई ने कार्यकर्ताओं का निर्माण किया। उन्होंने संस्था संविधान में भी अपने परिवार के किसी सदस्य को नहीं लिया। उन्होंने कहा कि संस्था कार्यकर्ताओं की संस्था है और कार्यकर्ता ही संस्था को आगे ले जायेंगें। उन्होनें कहा कि मैने जनुभाई को पिता, संस्थापक, राजनीतिक व साहित्यकार के रूप में देखा है। उन्होंने कहा कि 1937 में संस्था स्थापना के समय जनुभाई को 250 रू. वृत्ति मिलती थी उसमें से 125 रू. वे पुनः संस्था को दान कर देते थे।
पीठ स्थविर डॉ कौशल नागदा ने भी विचार रखे और कहा कि समय अनुशासन पूर्वक पालना ओर कर्म प्रधान रहते हुए कार्य करना ही कार्यकर्ता का प्रमुख दायित्व है।
इस मौके पर परीक्षा नियंत्रक डॉ. पारस जैन, प्रो. मलय पानेरी, प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. मंजु मांडोत, डॉ. धमेन्द्र राजौरा, डॉ. भवानी पाल सिंह राठौड़, प्रो. गजेन्द्र माथुर, प्रो. आईजे माथुर, डाॅ. कला मुणेत, डाॅ. एसबी नागर, डाॅ. अवनीश नागर, डॉ. नवीन विश्नोई, डॉ. हेमेन्द्र चैधरी, डॉ. लीली जैन, डॉ. अमी राठौड़, डॉ. सुनिता मुर्डिया, डॉ. रचना राठौड़, डाॅ. हीना खान, बाल कृष्ण शुक्ला, डाॅ. सपना श्रीमाली, डाॅ. निवेदिता, डाॅ. अपर्णा श्रीवास्तव, डाॅ. मधु मुर्डिया, डाॅ. संजीव राजपुरोहित, डाॅ. आशीष नंदवाना, डाॅ. कुलशेखर व्यास, डाॅ. यज्ञ आमेटा, डाॅ. गुणबाला आमेटा, निजी सचिव केके कुमावत, जितेन्द्र सिंह चैहान, उमराव सिंह राणावत, डाॅ. मोहसीन छीपा, सहित विद्यापीठ के डीन डायरेक्टर एवं कार्यकर्ताओं ने जनुभाई को पुष्पांजलि अर्पित करते हुए उनके द्वारा बताये मार्ग पर चलते हुए विद्यापीठ के उत्तरोत्तर विकास में सहयोग देने की शपथ ली।
संचालन डाॅ. हरीश चैबीसा ने किया।