उदयपुर 26 जून / महिलाएं आज भी बड़ी संख्या में घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं। पितृसत्तात्मक समाज का ताना-बाना घर से लेकर पुलिस थाने और कचहरी तक ऐसा है कि महिला हर जगह पीड़ित बन कर ही रह जाती है। घरेलू हिंसा के खिलाफ आवाज़ न उठाने के पीछे सबसे बड़ा कारण उनका आर्थिक रूप से किसी न किसी के उपर निर्भर रहना और घर छिन जाने का डर होता है। उक्त विचार सोमवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ के संघटक विधि महाविद्यालय तथा विवि की उन्नत भारत अभियान की इकाई की ओर से प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में घरेलू हिंसा रोकथाम हेतु कानूनी जागरूकता विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वरिष्ठ अधिवक्ता राव रतन सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि कहे। उन्होंने कहा कि अपराध सहना भी एक अपराध है। महिलाओं के सर्वांगीण विकास के लिए घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम 2005 कानून बनाया गया है। जिसके द्वारा पीड़ित महिला को निःशुल्क कानूनी सहायता मिल सकती है, उन्हें थाने में जाने की भी ज़रुरत नही होती है, वे सीधे ही अपना वाद न्यायालय में प्रस्तुत कर सकती हैं। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि प्राचीन समय में भारतीय नारी को पूरे सम्मान के साथ देखा जाता था, नारी को देवी के रूप में पूजा जाता था लेकिन मुगल शासनकाल के दौरान कई आक्रांताओं ने महिलाओं का शोषण करना शुरू कर दिया और वहीं से पर्दा प्रथा की परीपाटी के साथ-साथ कई कुरूतियां शुरू हो गयीं। महिलाओं का घरों की चारदिवारी से बाहर निकलना बंद हो गया और धीरे-धीरे समाज पुरूष प्रधान हो गया जिससे घरेलू हिंसा बढ़ने लगी। महिलायें घरेलू कामकाजी हो गयीं। उन्होंने महिलाओं का आव्हान किया कि अपने अधिकारों के लिए आगे आना होगा। महिलाओं को घर खर्च न देना भी अपराध की श्रेणी में आता है। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरूतियों पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आने वाली पीढ़ी में शिक्षा के साथ संस्कारों का समावेश होना भी आवश्यक है। विशिष्ठ अतिथि चितौड़ विधायक चन्द्रभान सिंह आक्या ने कहा कि महिलाओं के मेहनत की कोई कीमत नहीं आंकी जा सकती है फिर भी वे घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं। घरेलू हिंसा की शिकार ग्रामीण महिलाएं अधिक हैं, वे अपने परिवार की मान मर्यादा के कारण चुपचाप सहती रहती हैं। उन्होंने सामाजिक संगठनों को आगे आने की अपील की और उन्हें जागरूक करने पर जोर दिया। इस अवसर पर एडवोकेट सुभाष चाष्टा, एडवोकेट अनिल त्रिपाठी ने भी संबोधित करते हुए अपने अधिकारों के लिए महिलाओं को आगे आने की अपील की। प्रारंभ में प्राचार्य डॉ. कला मुणेत ने अतिथियों का स्वागत करते हुए एक दिवसीय संगोष्ठी की जानकारी दी। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित थीं।
संचालन नेहा दमानी ने किया।
संगोष्ठी में डॉ. दिनेश श्रीमाली, डॉ. कुल शेखर व्यास, डॉ. हेमंत साहू, डॉ. शिल्पा कंठालिया, प्रभारी राकेश दाधीच, डॉ. मानसिंह चुण्डावत, डॉ. संजय चौधरी, ज्ञानेश्वरी सिंह राठौड़ , डॉ. संजीव राजपुरोहित, रतन डांगी सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण महिलाएं उपस्थित थीं।
शिक्षा के साथ संस्कारों का समावेश आवश्यक – प्रो. सारंगदेवोत
