विश्व हास्य दिवस पर विशेष: जीवन में हँसी का महत्व और मेडला का चमत्कार

“हास्य रस के बिना जीवन अधूरा है।”
मनुष्य की उत्पत्ति के साथ ही एक अनुपम कला का भी जन्म हुआ—हँसी। यह ईश्वर की दी हुई वह अनमोल देन है, जो केवल मानव को प्राप्त है। बच्चा जन्म लेने के कुछ ही समय बाद मुस्कुराना और हँसना सीख जाता है। यह सिद्ध करता है कि हँसी मानव की स्वाभाविक प्रवृत्ति है, और उसे जीने की शक्ति देती है।
आज के भागदौड़ भरे युग में हँसी कहीं खो गई है। लोग तनाव, चिंता, और व्यस्तता में इस सहज औषधि को भूलते जा रहे हैं। विडंबना यह है कि अब हँसी को “कॉमेडी” का नाम देकर एक विकृत रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है—जहाँ फूहड़ता, अपमान और मानसिक प्रदूषण को हास्य कहकर परोसा जा रहा है। यह केवल हास्य का पतन नहीं, बल्कि सामाजिक चेतना का भी ह्रास है।
हँसी का वास्तविक स्वरूप शुद्ध, निर्मल और हृदय से उपजा हुआ होता है। यह केवल एक भावना नहीं, बल्कि शरीर और मन दोनों के लिए एक संजीवनी है। हँसने से शारीरिक रूप से हमारे शरीर में सकारात्मक एंजाइम्स का प्रवाह होता है, रक्त संचार सुधरता है, और नस-नाड़ियाँ सक्रिय होती हैं। मानसिक स्तर पर यह तनाव, अवसाद और क्रोध जैसे विकारों को दूर करता है।
मैंने अपने व्यक्तिगत जीवन में हँसी को योग से जोड़ा—इसी से हँसी योग की अवधारणा जन्मी। यह योग की वह विधा है, जिसमें बिना किसी शारीरिक कठिनाई के, केवल जोरदार हँसी द्वारा मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारा जाता है। हँसते समय जब शरीर और मन दोनों एक बिंदु पर केंद्रित होते हैं, तब वह क्षण ध्यान (Meditation) की अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। इसी सिद्धांत पर मैंने “मेडेला” यानी Meditation + Laughter की अवधारणा विकसित की।
मेडेला क्या है?
जब हम ध्यान करते हैं, तो अपने विचारों की तंद्रा को तोड़कर एकाग्रता प्राप्त करते हैं। उसी प्रकार जब हम पूरे मन से, सच्चे हृदय से हँसते हैं, तो वह हँसी ध्यान का स्वरूप ले लेती है। यह ध्यानमय हँसी ही मेडेला है। इसमें नेत्रों को बंद करने की आवश्यकता नहीं—बस चेहरे पर आत्मिक मुस्कान हो, और मन वर्तमान में स्थिर हो।
मैंने कई बार अपने प्रयोगों में देखा है कि जब लोग समूह में बैठकर बिना किसी कारण सिर्फ हँसने लगते हैं, तो कुछ ही क्षणों में एक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो चिंता, दुख और थकान को धो डालती है। यह न केवल व्यक्तिगत शांति लाता है, बल्कि सामाजिक समरसता का भी मार्ग प्रशस्त करता है।
विश्व हास्य दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम जीवन की जटिलताओं में भी हँसी को न खोने दें। हँसना कोई विलासिता नहीं, यह आवश्यकता है। यह सबसे सस्ती, सुलभ, और शक्तिशाली चिकित्सा है—बिना किसी दवा के, बिना किसी खर्च के, केवल स्वयं से जुड़कर प्राप्त की जा सकती है।
आइए, हम सब मिलकर हँसी को अपने जीवन का अनिवार्य हिस्सा बनाएं। मेडला को अपनाएं, हँसी के साथ ध्यान करें, और स्वयं को, अपने परिवार को तथा पूरे समाज को एक नई ऊर्जा, शांति और आनंद से भर दें।
“हँसी वह संगीत है, जिसे आत्मा सुनती है और शरीर झूम उठता है।”

डॉ प्रदीप कुमावत
विश्व हास्य योग गुरु
विश्व रिकॉर्ड होल्डर
निदेशक आलोक संस्थान

By Udaipurviews

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