मानव जीवन पर प्रदुषण का प्रभाव
विषय पर दो दिवसीय अन्तरराष्ट्रीय सेमीनार का हुआ आगाज
विकसित राष्ट्र के लिए पर्यावरण, उद्योग, शिक्षा, स्वास्थ को मजबुत करने की जरूरत – प्रो. सारंगदेवोत
– स्वस्थ पर्यावरण के लिए युवाओं की भूमिका अहम – प्रो. सारंगदेवोत
उदयपुर 26 जून। मनुष्य के जीवन यापन के लिए हम पूर्व में रोटी, कपड़ा और मकान को आवश्यक मानते थे लेकिन विकास के आधुनिक दोर में अब मानव जीवन के लिए शुद्व पानी, पर्यावरण आवश्यक हो गया है। हम कितना भी विकास कर ले, जब तक वायु , जल, भूूिम प्रदुषण से मुक्त नहीं होगी तब तक हम विकसित राष्ट्र की श्रेणी मे नहीं आ सकते है। हम अपनी तुलना विकासशील देशों से करते है वहॉ औसत आयु 82 वर्ष है और हमारे यहॉ 62 वर्ष है। हमें पर्यावरण की महत्ता को समझना होगा। हर व्यक्ति ज्यादा जीना चाहता है लेकिन इस दिशा में काम करना नहीं चाहता।
उक्त विचार गुरूवार को प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में राजस्थान विद्यापीठ के संघटक विज्ञान संकाय के जियोलॉजी विभाग की ओर से आयोजित मानव जीवन पर प्रदुषण का प्रभाव विषय पर आयोजित दो दिवसीय सेमीनार के उद्घाटन सत्र में सवच्छ भारत मिशन भारत सरकार के सदस्य एवं डुंगरपुर के पूर्व सभापति के.के. गुप्ता ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि 30 हजार करोड़ का इन्वेस्टमेंट राइजिंग राजस्थान के माध्यम से राजस्थान में हो रहा है जो राजस्थान को विकसित बनाने से कोई नहीं रोक सकता। हिंदुस्तान को विकसित ओर विश्वगुरु बनाना है तो पहले स्वच्छ बनाना होगा। स्वच्छता की किमत को कोविड ने हम सभी को सिखा दिया लेकिन हम पुनः उसी पडाव पर आ गये है। हर व्यक्ति को इसे समझना होगा। गुप्ता ने प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा दिये गये नारे को याद दिलाते हुए कहा कि मोदी ने एक पौधा अपनी मॉ के नाम लगाने को कहा , उन्होंने उसे ओर आगे बढ़ाते हुए एक पौधा पिता के व स्वयं के नाम लगाने का आव्हान किया। सबसे अधिक प्रदुषण प्लास्टिक के उपयोग से हो रहा है जिससे 50 प्रतिशत अधिक कैंसर रोगियों की संख्यॉ इसी वजह से बढ़ी है। स्व़छता के प्रति आम जन में मानसिकता बदलने की जरूरत है जिसकी शुरूआत हमें अपने घर से ही करनी होगी। सबसे अधिक नुकसान हमारे घरो से निकलने वाले सुखा व गीला कचरा सम्मिलित करने से हो रहा है, उसे अलग अलग करने की जरूरत है। गुप्ता ने पानी की महत्ता को बताते हुए कहा कि पर्यावरण के साथ जल संरक्षण एवं जल संचय आज की मूलभुत आवश्यकता पर बल दिया। हमें अपने पानी की किमत समझने की जरूरत है। व्यर्थ में पानी बहाये जाने से बचने पर बल दिया।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए पर्यावरण, उद्योग, शिक्षा एवं स्वास्थ जैसे बुनियादी ढांचे को मजबुत करना होगा। हमें हमारे पंच महाभुत भूमि, गगन, वायु, नीर को प्रदुषण मुक्त करने की जरूरत है इसके लिए युवाओं को आगे आना होगा। हम 2047 तक विकसीत राष्ट्र की कल्पना कर रहे है उसके लिए प्रदुषण मुक्त भारत बनाना होगा। प्लास्टिक ने हमारे पुरे इको सिस्टम को खत्म कर दिया है। प्लास्टिक को नष्ट होने में 450 से 1000 वर्ष लगते है। प्लास्टिक के 9 प्रतिशत ही हिस्सा ही रीसाइकिल हो पाता है एक रिर्पोट बताती है कि दुनिया में 5 करोड़ बैग्स बनाए है, वो भी केवल 10 प्रतिशत ही है। प्लास्टिक के इस भयावह आंकडे को दृष्टिगोचर करते हुए देश दुनिया को इस हानिकारक पदार्थ से बचाने का संकल्प दिलाया।
मुख्य वक्ता प्रो. विमल शर्मा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता मैं कमी व ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम स्वरुप हुई प्रदूषण वृद्धि ने मानव शरीर व स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। प्रति एक डिग्री तापमान वृद्धि समय पूर्व (अकाल ) मृत्यु की रिस्क को 3 प्रतिशत तक बड़ा सकता है। शहरों मैं बिछा सीमेंट कंक्रीट व डामर की सड़कों आदि के परिणाम सवरुप ‘‘अर्बन हीट ईलैंड‘‘ इफेक्ट होता है जिससे शहरों के तापमान मैं 5 से 7 डिग्री की बढ़ोतरी होती है जैव प्रोद्योगिकी द्वारा कैंसर जैसी भयावह बीमारी का प्रारंभिक अवस्था मैं पता लगाना, जीन एडिटिंग, बायोसेंसर, बायोरेमीडिएशन आदि करके मनुष्य के स्वास्थ्य को सुधारना संभव है।
प्रारंभ में आयोजन सचिव डॉ. पुजा जोशी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि हाईब्रडी मोड पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में 250 से अधिक प्रतिभागी भाग ले रहे है। तकनीकी सत्र में डॉ. संगीता राठौड, डॉ.विनिता राठौड ने अपने विचार व्यक्त किए।
सेमीनार संयोजन डॉ. जयसिंह जोधा, डॉ. भावेश जोशी, सिद्धिमा शर्मा, लालीमा शर्मा, रूपेश सहित विद्यापीठ के डीन, डायरेक्ट, विद्यार्थी एवं स्कोलर्स उपस्थित थे।
संचालन सिद्धिका शर्मा ने किया जबकि आभार डॉ. जय सिंह जोधा ने जताया।
उक्त विचार गुरूवार को प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में राजस्थान विद्यापीठ के संघटक विज्ञान संकाय के जियोलॉजी विभाग की ओर से आयोजित मानव जीवन पर प्रदुषण का प्रभाव विषय पर आयोजित दो दिवसीय सेमीनार के उद्घाटन सत्र में सवच्छ भारत मिशन भारत सरकार के सदस्य एवं डुंगरपुर के पूर्व सभापति के.के. गुप्ता ने बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किए।
उन्होंने कहा कि 30 हजार करोड़ का इन्वेस्टमेंट राइजिंग राजस्थान के माध्यम से राजस्थान में हो रहा है जो राजस्थान को विकसित बनाने से कोई नहीं रोक सकता। हिंदुस्तान को विकसित ओर विश्वगुरु बनाना है तो पहले स्वच्छ बनाना होगा। स्वच्छता की किमत को कोविड ने हम सभी को सिखा दिया लेकिन हम पुनः उसी पडाव पर आ गये है। हर व्यक्ति को इसे समझना होगा। गुप्ता ने प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा दिये गये नारे को याद दिलाते हुए कहा कि मोदी ने एक पौधा अपनी मॉ के नाम लगाने को कहा , उन्होंने उसे ओर आगे बढ़ाते हुए एक पौधा पिता के व स्वयं के नाम लगाने का आव्हान किया। सबसे अधिक प्रदुषण प्लास्टिक के उपयोग से हो रहा है जिससे 50 प्रतिशत अधिक कैंसर रोगियों की संख्यॉ इसी वजह से बढ़ी है। स्व़छता के प्रति आम जन में मानसिकता बदलने की जरूरत है जिसकी शुरूआत हमें अपने घर से ही करनी होगी। सबसे अधिक नुकसान हमारे घरो से निकलने वाले सुखा व गीला कचरा सम्मिलित करने से हो रहा है, उसे अलग अलग करने की जरूरत है। गुप्ता ने पानी की महत्ता को बताते हुए कहा कि पर्यावरण के साथ जल संरक्षण एवं जल संचय आज की मूलभुत आवश्यकता पर बल दिया। हमें अपने पानी की किमत समझने की जरूरत है। व्यर्थ में पानी बहाये जाने से बचने पर बल दिया।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस. एस. सारंगदेवोत ने कहा कि भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए पर्यावरण, उद्योग, शिक्षा एवं स्वास्थ जैसे बुनियादी ढांचे को मजबुत करना होगा। हमें हमारे पंच महाभुत भूमि, गगन, वायु, नीर को प्रदुषण मुक्त करने की जरूरत है इसके लिए युवाओं को आगे आना होगा। हम 2047 तक विकसीत राष्ट्र की कल्पना कर रहे है उसके लिए प्रदुषण मुक्त भारत बनाना होगा। प्लास्टिक ने हमारे पुरे इको सिस्टम को खत्म कर दिया है। प्लास्टिक को नष्ट होने में 450 से 1000 वर्ष लगते है। प्लास्टिक के 9 प्रतिशत ही हिस्सा ही रीसाइकिल हो पाता है एक रिर्पोट बताती है कि दुनिया में 5 करोड़ बैग्स बनाए है, वो भी केवल 10 प्रतिशत ही है। प्लास्टिक के इस भयावह आंकडे को दृष्टिगोचर करते हुए देश दुनिया को इस हानिकारक पदार्थ से बचाने का संकल्प दिलाया।
मुख्य वक्ता प्रो. विमल शर्मा ने कहा कि जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता मैं कमी व ग्लोबल वार्मिंग के परिणाम स्वरुप हुई प्रदूषण वृद्धि ने मानव शरीर व स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। प्रति एक डिग्री तापमान वृद्धि समय पूर्व (अकाल ) मृत्यु की रिस्क को 3 प्रतिशत तक बड़ा सकता है। शहरों मैं बिछा सीमेंट कंक्रीट व डामर की सड़कों आदि के परिणाम सवरुप ‘‘अर्बन हीट ईलैंड‘‘ इफेक्ट होता है जिससे शहरों के तापमान मैं 5 से 7 डिग्री की बढ़ोतरी होती है जैव प्रोद्योगिकी द्वारा कैंसर जैसी भयावह बीमारी का प्रारंभिक अवस्था मैं पता लगाना, जीन एडिटिंग, बायोसेंसर, बायोरेमीडिएशन आदि करके मनुष्य के स्वास्थ्य को सुधारना संभव है।
प्रारंभ में आयोजन सचिव डॉ. पुजा जोशी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि हाईब्रडी मोड पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में 250 से अधिक प्रतिभागी भाग ले रहे है। तकनीकी सत्र में डॉ. संगीता राठौड, डॉ.विनिता राठौड ने अपने विचार व्यक्त किए।
सेमीनार संयोजन डॉ. जयसिंह जोधा, डॉ. भावेश जोशी, सिद्धिमा शर्मा, लालीमा शर्मा, रूपेश सहित विद्यापीठ के डीन, डायरेक्ट, विद्यार्थी एवं स्कोलर्स उपस्थित थे।
संचालन सिद्धिका शर्मा ने किया जबकि आभार डॉ. जय सिंह जोधा ने जताया।