खनन उद्यमियों की राज्य सरकार से अपील, खानें बंद होने से रोजगार घटे
उदयपुर। इण्डियन सोपस्टोन प्रोडड्यूसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने राज्य सरकार से अपील की है कि राज्य में बंद खानों को पुनः चालू करवाने के लिये उच्चतम न्यायालय में मजबूत पैरवी करें। खनन उद्यमी अपने स्तर पर तो उच्च्तम न्यायालय में केस लड़ ही रहे है। पिछले 1 साल से खानों के बंद होने से क्षेत्र में रोजगार के अवसर घट गये है। राज्य सरकार को राजस्व की हानि हां रही है। एसोसिएशन ने राज्य सरकार से राजस्थान की अरावली पर्वतमाला में वैध खनन कार्यों को जारी रखने की अपील की है।
एसोसिएशन की ओर से आज यहां आयोजित प्रेस वार्ता में अध्यक्ष गुरप्रीतसिंह सोनी ने बताया कि राजस्थान सरकार द्वारा मार्च 2025 में पहले से वैध विस्तार, पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ और कानूनी अनुमतियों के अंतर्गत संचालित हो रहे सभी खनन कार्यों को रोकने का आदेश दिया गया है। इस निर्णय के विरोध में एसोसिएशन ने अपील की। सरकार के इस निर्णय न केवल औद्योगिक विकास पर आघात किया वरन् हजारों श्रमिकों की आजीविका को भी संकट में डाल दिया।
उन्होंने बताया कि एसोसिएशन के 40 से अधिक सक्रिय पट्टाधारी, सोपस्टोन, डोलोमाइट, कैल्साइट, चाइना क्ले जैसे औद्योगिक खनिजों के खनन उद्यमी राजस्थान के ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में लगभग 5,000 से 10,000 लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार भी प्रदान कर रहे हैं। इन खनिज इकाइयों ने प्रदेश के औद्योगिक ढांचे को मज़बूती दी है। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि 6 करोड़ रूपयें से अधिक की प्रीमियम राशि जमा करने, पर्यावरणीय स्वीकृति, प्रदूषण नियंत्रण स्वीकृति, तथा खनन योजना स्वीकृत करवाने के बाद भी, इन पट्टाधारकों को बिना किसी वैध आधार के कार्य रोकने के लिए विवश किया गया है।
सोनी ने बताया कि जबकि ये सभी पट्टे राजस्थान माईनरमिनरल कन्सेशन रूल्स 2017 के रूल 9(3ए) के अनुसार 2040 तक वैध रूप से विस्तारित किए जा चुके हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने भी गत वर्ष 09 मई 2024 को एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ मामले में यह स्पष्ट निर्देश दिया था कि यह आदेश किसी भी स्थिति में वैध परमिट/लाइसेंस के अनुसार संचालित खनन गतिविधियों को प्रतिबंधित नहीं करेगा(पैरा 14)। इसके बावजूद, राजस्थान सरकार ने पैरा 13 की एकतरफा व्याख्या करते हुए सभी खनन कार्यों पर रोक लगा दी। भले ही वे वैध अनुमति एवं विस्तार आदेशों के अंतर्गत चल रहे हों। यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि उन उद्यमियों के साथ अन्याय भी है जिन्होंने राज्य सरकार पर विश्वास करते हुए नियमानुसार निवेश किया।
इस निर्णय का असर सीधा रोज़गार और सामाजिक संतुलन पर पड़ा है। आदिवासी और ग्रामीण अंचलों में, जहाँ खनन ही एकमात्र आजीविका है, वहाँ हजारों लोग रातोंरात बेरोजगार हो गए हैं। प्रसंस्करण इकाइयाँ, क्रशर प्लांट्स और लॉजिस्टिक्स नेटवर्क ठप पड़ने की कगार पर हैं। जिन निवेशकों ने बैंकों से ऋण लिया, आधारभूत ढाँचा खड़ा किया और ऑर्डर पूरे करने की प्रतिबद्धता ली। वे अब आर्थिक संकट और वित्तीय अस्थिरता का सामना कर रहे हैं।
राज्य सरकार ने यह रोक पर्यावरण संरक्षण के नाम पर लगाई है, किंतु सच्चाई यह है कि फोरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार राजस्थान में अरावली क्षेत्र का कुल क्षेत्रफल 40,000 वर्ग किमी है, जिसमें से 15,540 वर्ग किमी को वनीय भूमि माना गया है,शेष गैर-वनीय (नॉन एण्ड फोरेस्ट) भूमि है और केवल 925 वर्ग किमी भूमि ही खनन पट्टों के अंतर्गत आती है यानी पूरे अरावली क्षेत्र का मात्र 2.31 प्रतिशत है। इसमें भी, वास्तविक खुदाई क्षेत्रऔर भी कम है, और अधिकांश खनन गैर-वनीय भूमि में, पूरी तरह कानूनी पर्यावरणीय अनुमतियों के साथ किया जा रहा है। ऐसे में सभी गतिविधियों पर रोक लगाना “सतत विकास” की अवधारणा के पूर्णतः विरुद्ध है। इसके विपरीत, जब वैध खनन रोका जाता है, तो अवैध खनन को बढ़ावा मिलता है। जिसमें पर्यावरणीय नियंत्रण, पारदर्शिता और सरकारी राजस्व की कोई गारंटी नहीं होती।
110 सदस्यों वाली करीब 43 वर्ष पुरानी इस एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री एवं राज्य के खान मंत्री से अपील की है कि वे इस प्रकरण में तत्काल हस्तक्षेप करें। सरकार को चाहिए कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक स्पष्ट और मजबूत पक्ष प्रस्तुत करे कि वे खनन पट्टे, जो पहले ही विधिसम्मत रूप से विस्तारित हो चुके हैं और सभी वैध स्वीकृतियाँ प्राप्त कर चुके हैं, उन्हें निर्बाध रूप से कार्य करने की अनुमति दी जाए। इस अवसर पर एसोसिएशन के सचिव केजार अली, उपाध्यक्ष महेश मंत्री सहित उदयपुर,राजसमन्द,डूंगरपुर के खनन उद्यमी मौजूद थे।
राज्य सरकार उच्चतम न्यायालय में मजबूत पैरवी करें, तो खनन हो चालू
