फतहनगर! समीपवर्ती चुंडावत खेड़ी में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन बुधवार को कथा मर्मज्ञ लाल गोविंद प्रभु कथा प्रसंग प्रस्तुत करते हुए कहा कि जीवन में सुख में हृदय कठोर और दुःख में कोमल हो जाता है। उन्होंने कहा कि भक्ति के लिए हृदय कोमल होना चाहिये। चौरासी लाख योनियाँ भुगतने के बाद मिले मनुष्य जीवन को व्यर्थ नहीं करना चाहिए। मनुष्य जीवन में ही भक्ति की जा सकती है लेकिन हम सभी कार्य सुख के लिए करते रहने पर भी सुखी इसीलिए नहीं है कि हम आत्मा के लिए केवल शरीर सुख में लगे हुए हैं। परमात्मा के नाम स्मरण से ही आत्मा का सुख प्राप्त किया जा सकता है। जीवन में सब कुछ भाग्य से प्राप्त कर सकते हैं लेकिन भक्ति तो नाम स्मरण से ही प्राप्त की जा सकती है। सन्तान को संस्कार गर्भावस्था में और नाम जन्म के बाद दिए जाते है। मीराँ और प्रह्लाद को भी भक्ति गर्भावस्था में ही प्राप्त हुई थी।
आगे पाण्डव प्रसंग पर कहा कि अधर्म करना और देखते रहना दोनों ही महापाप है। जीवन में किसी का भला चाहे न कर सको पर सन्त का कभी अपमान और निराश नहीं करना चाहिए।
राजा परीक्षित, विदुर,मनु सतरूपा एवं वराह अवतार प्रसंग का वर्णन किया।
आज कथा से पूर्व आयोजन में पधारने पर आयोजक परिवार द्वारा मावली विधायक पुष्करलाल डांगी का स्वागत एवं सम्मान किया गया।
महाआरती के बाद प्रसाद वितरण किया गया एवं सभी ने महाप्रसादी में भोजन प्रसाद ग्रहण किया।