लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिरला के साथ-साथ महाराणा विश्वराज सिंह मेवाड़ (नाथद्वारा विधायक) और महारानी महिमा कुमारी मेवाड़ (राजसमंद सांसद) ने की शिरकत
रामगंजमंडी, 28 अक्टूबर। वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप जी की गौरवशाली विरासत को नमन करते हुए मंगलवार को रामगंजमंडी के जया प्रताप बस स्टैंड परिसर में महाराणा प्रताप जी की भव्य प्रतिमा का अनावरण समारोह गरिमामयी वातावरण में सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री ओम बिरला जी, माननीय अध्यक्ष, लोक सभा रहे। इस अवसर पर श्री मदन दिलावर जी, माननीय शिक्षा एवं पंचायत राज मंत्री, राजस्थान सरकार; महाराणा विश्वराज सिंह जी मेवाड़, माननीय विधायक, नाथद्वारा; महाराव इज्यराज सिंह जी, माननीय पूर्व सांसद (कोटा-बून्दी); महाराणी सा. महिमा कुमारी जी मेवाड़, माननीय सांसद, राजसमंद; महारानी सा. कल्पित देवी जी, माननीय विधायक, लाडपुरा; श्री अकलेश जी मेड़तवाल, चेयरमैन, नगर पालिका रामगंजमण्डी तथा श्रीमती मधु कंवर हाड़ा जी, पूर्व जिला प्रमुख कोटा एवं निवर्तमान चेयरमैन, नगर पालिका रावतभाटा, चित्तौड़गढ़ विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित रहे।
अनावरण समारोह में अतिथियों ने महाराणा प्रताप जी के अदम्य साहस, स्वाभिमान एवं मातृभूमि के प्रति उनके समर्पण को स्मरण करते हुए उनके आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया। कार्यक्रम स्थल पर बड़ी संख्या में जनप्रतिनिधि, अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता, विद्यार्थी एवं नागरिक उपस्थित रहे।
महाराणा विश्वराज सिंह जी मेवाड़, माननीय विधायक, नाथद्वारा ने अपने संबोधन में कहा कि महाराणा प्रताप से पूर्व महाराणा सांगा जैसे महान शासकों की परंपरा रही है। गत कुछ वर्षों में प्रतिमाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, परंतु इसके साथ यह भी आवश्यक है कि प्रत्येक प्रतिमा की गरिमा और सुरक्षा का ध्यान रखा जाए। उन्होंने कहा कि हाल ही में संसद में महाराणा सांगा के संबंध में अनुचित शब्दों का प्रयोग किया गया, ऐसी घटनाएँ भविष्य में पुनः न हों, यह सुनिश्चित करना सरकार का दायित्व है।
महाराणी सा. महिमा कुमारी जी मेवाड़, माननीय सांसद, राजसमंद ने अपने उद्बोधन में कहा कि कोटा से मेवाड़ का संबंध ऐतिहासिक और आत्मीय रहा है। महाराणा प्रताप न केवल भारतवर्ष बल्कि संपूर्ण विश्व में साहस, बलिदान और स्वाभिमान के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने कहा कि प्रतिमाओं की स्थापना के साथ-साथ हमें अपने भीतर भी उनके आदर्शों और संस्कारों को आत्मसात करना चाहिए। इतिहास से प्रेरणा लेकर पूर्वजों के संस्कारों को आगे बढ़ाना ही सच्ची श्रद्धांजलि है।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्थानीय जन उपस्थित रहे।
