उदयपुर, 12 नवंबर। जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वरजी म. की निश्रा में श्री महावीर विद्यालय – चित्रकूट नगर में भद्रंकर परिवार द्वारा आयोजित सामुहिक उपधान तप उत्साह से चल रहा है।.
धर्मसभा में प्रवचन देते हुए जैनाचार्यश्री ने कहा कि -मैत्री अर्थात परहितचिन्ता । अन्य के हित की चिन्ता करना। जहाँ स्वार्थ होता है. वहाँ तो मैत्री भाव हर प्राणी धारण करता है। अपनी सन्तान के प्रति मैत्री भाव तो क्रूर में क्रूर हिंसक प्राणी भी धारण करते हैं। जन्य मैत्री के कारण अपनी सन्तान की रक्षा
मैत्री भाव के विषय में बोलना जितना सुकर है उतनी ही उसकी कठिन साधना है। मैत्री भाव के अन्तर्गत अपने शत्रु की भी हितचिन्ता का समावेश हो जाता है और यह तभी बन सकता है जब हृदय में से शत्रुता खत्म हो जाय ।
सचमुच, शत्रु को मिटाने के लिए ‘शत्रु’ को मारने की आवश्यकता नहीं है, परन्तु उसके प्रति दिल में रही शत्रुता को ही खत्म करने की आवश्यकता है। शत्रुता के मिट जाने पर शत्रु तो स्वतः मिट जाएगा। वह शत्रु ही आपका मित्र बन जाएगा । 16 नवंबर को प्रातः 9 बजे मोक्षमाला के चढ़ावे तथा पूज्य आचार्य द्वारा आलेखित आओ! प्राकृत सीखें भाग -2 का विमोचन व उपधान तप लाभार्थी परिवार का बहुमान होगा।
आत्म कल्याण का प्रवेश द्वार मैत्री आदि भावना
