दिवस के रूप में मनाया पर्युषण पर्व का पांचवा दिन 

जीवन का कल्याण करना है तो सेवा को धारण करेंः सुकनमुनि
उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में श्रमण संघीय प्रवर्तक सुकनमुनि जी महाराज के सानिध्य में पर्यूषण महापर्व का पांचवा दिन सेवा दिवस के रूप में मनाया।
महामंत्री एडवोकेट रोशन लाल जैन ने बताया कि पर्यूषण महापर्व के पांचवें दिन भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु पंचायती नोहरे में पहुंचे और मुनीश्रीसुकन मुनि जी से आशीर्वाद लिया। पर्यूषण महापर्व के तहत श्रद्धालुओ में लगातार धर्म आराधना चल रही है। जैन ने सभी श्रावकों को ज्यादा से ज्यादा धर्म लाभ लेने का आह्वान करते हुए आगामी दिनों में होने वाले कार्यक्रमों और व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी दी।
प्रातः कालीन धर्म सभा में सुकुन मुनि ने सेवा धर्म का महत्व बताते हुए कहा कि जीवन का कल्याण करना है तो हमें सेवा को धारण करना होगा। उन्होंने सेवा करने के कोई उपक्रम एवं सेवा के प्रकार को बताते हुए कहा कि सेवा का प्रारंभ सबसे पहले स्वयं के घर से ही होता है। बच्चा जब जन्म लेता है, उसके बड़े होने तक मां उसकी कितनी सेवा करती है। खुद गीले में सोती है लेकिन उसे सुखे में सुलाती है। हर तरह से बच्चे की सेवा करके उसे बड़ा करती है। जब बच्चे में समझ आती है तब तक वह सेवा धर्म को जानने लगता है। वही बच्चा बड़ा होने के बाद आगे चलकर वृद्धावस्था में मां-बाप की सेवा करता है। वह सेवा इसलिए कर पाता है क्योंकि सेवा के संस्कार बचपन से ही उसमें पड़े हैं।
मुनि श्री ने कहा की सेवा का मार्ग बड़ा ही कठिन है। उससे भी कठिन है निस्वार्थ सेवा का भाव। इसलिए कई समय से एक घटिया परंपरा का चलन हो चुका है कि बिना नाम के कोई सेवा भाव नहीं रखता है। जो सेवा करके अपना नाम करवाता है उसकी सेवा को व्यर्थ और निष्फल माना जाता है। सेवा तो वही फलित होती है जिसमें इस हाथ से दो तो दूसरे हाथ को पता भी नहीं लग पाए। साधु संतों के लिए श्रावकों में सेवा भाव जरुरी है। लेकिन बाकी सेवा तो  ठीक है लेकिन श्रावकों के लिए संतों की  सबसे बड़ी सेवा यह है कि वह विहार में उनका साथ दे, उनका ध्यान रखें और व्यवस्थाओं को देखें। पीड़ित, दुखी, दीन, हीन और बुजुर्ग जनों की सेवा करना तो सभी का परम कर्तव्य होना चाहिए। वही सेवा फलीत होती है जिसमें कोई दिखावा ना हो। हमारे जीवन में हमेशा निस्वार्थ सेवा को बढ़ावा देना चाहिए। चिकित्सा सेवा में, शिक्षा के क्षेत्र में, सामाजिक क्षेत्र में सहयोग के साथ सेवा भाव रखना चाहिए। मुनिश्री ने कहा कि स्थानकों पर साफ सफाई रखना यह भी एक सेवा है। उन्होंने श्राविकाओ से आह्वान किया कि आप छोटे-छोटे समूह बनाएं। 15 दिन में महीने में एक बार स्थानकों पर जाएं और वहां की सफाई व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनी सेवाएं प्रदान करें। हमारे धर्म में सेवा को सबसे बड़ा धर्म माना गया है। अगर स्वयं का सुख चाहते हो तो दीन दुखियों की सेवा करो। मुनिश्री ने धर्म सभा में सभी से सेवा धर्म धारण करने का संकल्प भी दिलाया।

By Udaipurviews

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