उदयपुर, 6 नवम्बर।जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वरजी म.सा की निश्रा में महावीर विद्यालय चित्रकूट नगर-उदयपुर में हर्षोल्लास के साथ महामंगलकारी उपधान तप की आराधना चल रही है। द्वितीय उपधान के आराधकों का आज प्रात: उपधान तप पूर्ण हुआ। भद्रंकर परिवार की ओर से आराधकों का विशिष्ट सम्मान किया गया।
धर्मसभा में प्रवचन देते हुए जैनाचार्य श्री ने कहा कि परमात्मा की भक्ति से सर्वोच्च सुखो की प्राप्ति और समस्त दु:खों का नाश होता है। परमात्मा की भक्ति सर्वश्रेष्ठ द्रव्यों के द्वारा खूब भावोल्लास के साथ प्रतिदिन करनी चाहिए।जैसे उपजाऊ भूमि में बीज बोने से वह अनेक गुना होकर प्राप्त होता है और वही बीज यदि बंजर भूष में बोया जाय तो वह व्यर्थ जाता है।
परमात्मा की भक्ति में प्रतिमा का निर्माण करने पर उस प्रतिमा में जितने भी सुक्ष्म परमाणु है उतने पल्योपम दैविक सुखो की प्राप्ति होती है। जो प्रभु की जलपूजा कर अभिषेक करता है उसकी आत्मा पर लगे हुए कर्मो के जटिल बंधन टुट जाते है। प्रतिमा का अभिषेक अपनी आत्मा को पावन बनाता है।. चंदन से पूजा करने पर आत्मा के कषायों की अग्नि शांत होती है।16 नवंबर को भक्ति संगीत के साथ पुस्तक विमोचन, मोक्षमाला के चढ़ावे एवं उपधान तप आयोजक परिवार का बहुमान कार्यक्रम होगा।
परमात्मा की भक्ति सर्वोच्च सुख :आचार्य रत्नसेन सूरी
