सात दिवसीय आवासीय बाल संस्स्कार शिविर में बच्चें ले रहे धार्मिक शिक्षा का लाभ

उदयपुर। कुंद कुंद कहान वीतराग विज्ञान शिक्षण समिति उदयपुर द्वारा हिरण मगरी सेक्टर 4 स्थित श्री वर्धमान जैन श्रावक संस्थान उदयपुर सेक्टर चार में आयोजित आवासीय बाल संस्कार शिक्षण शिविर में बच्चों को स्कूली शिक्षा के साथ-साथ धार्मिक एवं संस्कार शिक्षा का लाभ रहा है।
शिविर के निदेशक जिनेंद्र शास्त्री ने बताया कि शिविर में तीन वर्गों में बच्चों को शिक्षाएं दी जा रही है। पहले शिशु वर्ग, दूसरा बाल वर्ग एवं तीसरा किशोर वर्ग। उन्होंने बताया कि बाल वर्ग में देव शास्त्र गुरु के बारे में उन्हें महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध करवाई जा रही है। प्रश्नोत्तरी के माध्यम से उन्हें धार्मिक शिक्षा दी जा रही है। सच्चा देव,वितरागी,सर्वज्ञ, हितोपदेशी, जिनवाणी, ं और गुरु किसे कहते हैं इन सभी के बारे में शिक्षकों द्वारा उन्हें व्यापक ज्ञान दिया जा रहा है। शिक्षकों ने उन्हें बताया कि जो वितरागी, सर्वज्ञ एवं हितोपदेशी हो उसे सच्चा देव कहते हैं। इसी तरह से जो राग द्वेष से रहित हो उसे वितरागी कहते हैं। जो लोकालोक से समस्त पदार्थ को एक साथ एक समय में स्पष्ट रूप से जानते हैं उन्हें सर्वज्ञ कहते हैं। जो परमेष्ठी सच्चा एवं हितकारी उपदेश दे उसे हितोपदेशी कहते हैं। इसी के साथ ही जिनवाणी के बारे में बताते हुए विद्वानों ने बच्चों को बताया कि जो भी वितरागिता की पोशक हो उसे जिनवाणी कहते हैं। जो तीर्थंकरों की वाणी हो उसे जिनवाणी कहते हैं। जो स्यादवादमय वाणी हो उसे जिनवाणी कहते हैं। गुरु के बारे में बताते हुए विद्वानों ने कहा कि जो सदा आत्मज्ञान स्वाध्याय में लीन रहते हैं।
सर्व प्रकार के आरंभ परिग्रह से सर्वथा रहित होते हैं, विषय भोगों की लालसा उनमें लैश मात्र भी नहीं होती ऐसे तपस्वी साधुओं को गुरु कहते हैं। विद्वानों ने बच्चों को ऐसी महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करते हुए  पाठ समाप्ति के पश्चात बच्चों को दोबारा से प्रश्न पूछे और उनके उत्तर जाने ताकि उन्हें पता चले कि बच्चों ने क्या सीखा है और  कितना सीखा है।
इसके साथ ही श्री कुंद कुंद कहान वीतराग विज्ञान शिक्षण समिति श्री वर्धमान जैन श्रवण संस्थान की और से दो दिवसीय नियम सार मण्डल विधान प्रारंभ हुआ। पंडित डॉक्टर मनीष शास्त्री, पंडित अंकुर शास्त्री एवं पंडित आशीष शास्त्री के सानिध्य में विधान करवाया गया। उपस्थित श्रावकों ने अर्घ्य समर्पण करते हुए विधान में आहुतियां दी। पंडित जी ने कहा कि चोट शरीर को लगती है लेकिन महसूस आत्मा को होता है यही हमारा चौतन्य स्वरूप है। हम जीवन में कोई भी कार्य करें अगर असहजता से करेंगे तो उसमे परेशानी आएगी। किसी भी कार्य को करते समय अगर हम उसे सहजता से करने का प्रयास करेंगे तो वह सफलतापूर्वक संपन्न हो जाएगा।

By Udaipurviews

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