उदयपुर, 3 नवम्बर। केशवनगर स्थित अरिहंत वाटिका में आत्मोदय वर्षावास में रविवार को हुक्मगच्छाधिपति आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने फरमाया कि दीपावली के पंच पर्वों की शृंखला में पांचवां पर्व भाई दूज का है। इसके एक दिन पूर्व वैदिक परम्परा में गोवर्धन पूजा के रूप है तो जैन धर्म में गौतम प्रतिपदा के रूप में मनाया जाता है। इस दिन प्रभु महावीर के वीतराग भाव को धारण कर मोह की कारा को तोड़़ कर स्वयं भगवान महावीर के समान परम ज्योतिर्मय बन जाते हैं। इसी की अगली कड़ी में भाईदूज भाई-बहन के पवित्र, स्नेहदिल रिश्तों की जीवंतता को उद्भासित करती है। इस संदर्भ में वैदिक परम्परा में यम-यमी का कथानक प्रचलित है तो जैन इतिहास में राजा नंदीवर्धन एवं उनकी बहिन सुदर्शना का भाव-विभोर कर देने वाला पवित्र प्रसंग मिलता है। प्रभुु महावीर के निर्वाण के पश्चात बड़े भाई नंदीवर्धन ने तीन दिन तक कुछ नहीं खाया। यह जानकर सुदर्शना विविध प्रकार से नंदीवर्धन को समझाती है कि अपना भाई तो वीर था। हम भी वीरत्व जगाएं और प्रभु के संदेश को हर घर तक पहुंचाए। समझाने से समझे नंदीवर्धन को सुदर्शना ने कवल देकर पारणा कराया। इन प्रेरक प्रसंगों से प्रेरणा लेकर भाई-बहिन अपने कर्तव्य का पालन निष्ठा से करे एवं दूज के चांद की तरह भाई-बहनों का विशुद्ध प्रेम निरन्तर वृद्धि को प्राप्त हो। उपाध्याय श्री जितेश मुनि जी म.सा. ने मार्गानुसारी के एक बोल सदा प्रसन्न रहो की विशद विवेचना करते हुए फरमाया कि प्रसन्नता चाहते हैं तो स्वयं खुश रहना सीखो। जब हमारे अन्तस में निर्मलता होती है तो हम में निर्भयता एवं निश्चिंतता भी आती है। जो धर्म पर एवं कर्म सत्ता पर विश्वास रखता है वह प्रसन्न रहता है। यदि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं तो फिर डरने की कोई बात नहीं। हम सही करनी करते रहें। इससे पूर्व तपस्वी संतरत्न विनोद मुनि जी म.सा. ने सम्बोधित किया। संघ मंत्री पुष्पेंद्र बड़ाला ने बताया कि रतलाम के नन्हें बालक अक्षत एवं मुमुक्षु मंथन छाजेड़ सहित अनेक वक्ताओं ने अपने विचार प्रकट किए। आज धर्मसभा में कानोड़ श्रीसंघ, बीकानेर संघ की एक-एक बस सहित बानसेन, कुंथुवास, राजनांदगांव सहित अनेक अंचलों के श्रद्धालु उपस्थित हुए। श्री गौतम जी अंगूरबाला चणोदिया ने शीलव्रत के प्रत्याख्यान ग्रहण किए।
भाई-बहिन अपने कर्तव्य का पालन निष्ठा से करे : आचार्य विजयराज
