उदयपुर। न्यू भूपालपुरा स्थित अरिहंत भवन में विराजमान आचार्य प्रवर ज्ञानचंद्र महाराज ने आज धर्मसभा में बोलते हुए कहा कि संतोष और गहरी नींद मिलने के बाद ईश्वर से कुछ भी मांगने को नहीं रह जाता है।
सारी इच्छाओं का आनंद इन दो चीजों में आ जाता है, क्योंकि ज्यों ही इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं और संतोष आ जाता है, जिंदगी में सुखद ठहराव आ जाता है। दौड़ा दौड़ी बंद हो जाती है।
दूसरी बात गहरी नींद में कभी सपने नहीं आते। नींद में न खाना, न पीना, न घूमने, न अच्छे वस्त्र पहनना, कुछ भी नहीं होता। फिर भी गहरी नींद से सुख हल्कापन महसूस होता है। जो इंद्रियों से उठकर सुख का एहसास कराता है। यह आत्मा के सुख की झलक तो नहीं कह सकते हैं पर इसका अंदाजा कराता है। हमें समाधि में उतरकर आत्मा का सुख पाने का प्रयास ध्यान के माध्यम से करना चाहिए।
आनंद आदि श्रावक, यद्यपि संतोषी थे। तथापि व्यापार करना नहीं छोड़ा था। लेकिन जितनी भी कमाई होती, वो सब की सब दान कर देते थे,क्योंकि उनके नियम था कि जितनी संपत्ति है, उससे अधिक नहीं रखेंगे, जबकि व्यापार से संपत्ति बढ़ेगी। वो सारी दान में जाती थी। यह संतोष का अनूठा रूप था, जो स्वयं के साथ पर को भी शांति देने वाला था।
उत्कृष्ट परिग्रह परिमाण व्रत सूलसकुमार का था। उसने अपने पिता की अरबों की संपत्ति दान देकर केवल रुई पूणी से घर का खर्च चलाया। उसकी सामायिक भी उत्कृष्ट थी। जिसके लिए भगवान ने श्रेणिक को कहा कि पूणिया का सामायिक खरीद लें तो नरक टल सकता है क्योंकि पूणिया परम संतोषी सुखी था। संपत्ति को तिजोरियों में बंद करके सदुपयोग लेने वाला महा दुखदायी हो जाता है।
आज प्रवचन में सर्वप्रथम धन्य तपस्वी अजीत मुनि महाराज के पश्चात विद्वद्वर्य अनुत्तर मुनि का उद्बोधन हुआ, कुछ समय के लिए आचार्य प्रवर का प्रवचन हुआ ।
तपस्या का क्रम निरंतर जारी है। प्रतिदिन पांच-पांच सामायिक एवं मेहता दंपति की ओर से प्रभावना हो रही है। प्रवचन के बाद की प्रभावना प्रबुद्धजीवी श्री रुचि जी जैन बेंगलुरु की तरफ से संपन्न हुई। प्रतिदिन तेला तप, अट्ठाई तप की कड़ी निरंतर गतिमान है।
संतोष और गहरी नींद मिलने के बाद ईश्वर से कुछ भी मांगना शेष नहीं रह जाता :आचार्य ज्ञानचंद्र महाराज
