उदयपुर, 10 नवम्बर। जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वरजी की निश्रा में महावीर विद्यालय चित्रकूट नगर में उपधान तप हर्षोल्लास से चल रहा है। सोमवार को श्रमण शिल्पी, पिण्डवाडा के नंदन आचार्य देव विजय प्रेमसूरीश्वरजी की 125 वीं दीक्षा तिथि निमित्त गुणानुवाद सभा का आयोजन हुआ। धर्मसभा में उनके नि:स्पृहता आदि गुणों का वर्णन करते हुए जैनाचार्य ने कहा कि –
राजस्थान के सिरोही जिले के पिण्डवाडा नगर के नंदन प्रेमचंद भाई आज से 125 वर्ष पूर्व जैनी दीक्षा का स्वीकार करके मुनि प्रेम विजयजी बने थे। उस काल में दीक्षा स्वीकार करना अत्यंत कठिन था।मोहाधीन परिवारजन किसी को भी त्याग के मार्ग पर चलने हेतु अनुमति नहीं देते थे। ऐसी स्थिति में प्रेमचन्द भाई एक रात्रि में 36 मील पैदल चलकर घर से भागकर पालिताणा की धन्यधरा पर दीक्षित बने थे।
हमेशा आत्मा साधना में उजागर रहते थे। कर्मग्रंथ का गहरा अभ्यास करके उन्होंने अपने शिष्य-प्रशिष्य परिवार के माध्यम से विशाल प्रमाण में कर्म साहित्य का सर्जन कराया था। उनकी निश्रा में 300 साधुओं से अधिक विशाल शिष्य प्रशिष्य परिवार था। आज उनके परिवार में 3000 से अधिक साधु-साध्वीजी जैन शासन की धर्माराधना-प्रभावना और रक्षा के कार्य कर रहे है। 16 नवंबर को प्रात: 9:00 बजे पुस्तक विमोचन, मोक्षमाला के चढ़ावे एवं उपधान तप लाभार्थी बहुमान समारोह का कार्यक्रम होगा।
श्रमणशिल्पी प्रेमसूरीश्वर की 125वीं दीक्षा तिथि मनाई
