– मेवाड़ की ओर अग्रसर है आचार्य महाश्रमण की धवल वाहिनी, मार्ग में जगह-जगह हो रहा है स्वागत
उदयपुर, 7 नवम्बर। तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्य महाश्रमण अपनी धवल वाहिनी के साथ लम्बे-लम्बे डग भरते हुए मेवाड़ी की ओर अपने चरण पादुका बढ़ा रहे है। श्री मेवाड़ जैन श्वेताम्बर तेरापंथी कांफ्रेंस के अध्यक्ष राजकुमार फत्तावत ने बताया कि 7 नवम्बर को प्रात: विश्व मैत्री धाम से लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर जैन तीर्थ स्थल लब्धी धाम पहंंची। आचार्य संघ के विहार के दौरान मार्ग में जगह- जगह श्रावक-श्राविकाओं द्वारा स्वागत किया जा रहा है। अध्यक्ष फत्तावत ने बताया कि आचार्य महाश्रमण अपनी धवल वाहिनी के साथ अगला पड़ाव 8 नवम्बर को विश्व मैत्री धाम से तेजपुर स्वामीनारायण इंस्टीट्यूट ऑफ नर्सिंग में होगा।
मार्ग सेवा में आमेट तेरापंथ समाज के लाभचंद हिंगड, महेन्द्र बोहरा, देवेन्द्र मेहता, सुन्दरलाल हिरण, धूलचंद हिरण, शांतिलाल छाजेड़, जवाहर डांगी, जतन देवी बम्ब, संतोष देवी हिरण, उमा देवी हिरण, भंवर देवी छाजेड़ व मंजू देवी मादरेचा, सुरेश चोरडिया, राजेश खाब्या, सुनील कोठारी आदि आचार्य संघ की मार्ग सेवा में सहभागी रहे। 84 जिनालाय चन्द्रप्रभु लब्धी धाम के ट्रस्टी जिगनेश भाई मेहता का साहित्य समर्पण व उपरणे द्वारा गौतम बापना, सुरेश दक, गणेश कच्छारा, भूपेन्द्र चोरडिया, बलवंत रांका, कमलेश कच्छारा, विनोद माण्डोत, सुनील मुणोत, सूर्य प्रकाश मेहता आदि ने स्वागत अभिनंदन किया।
इस दौरान जैन तीर्थ स्थल लब्धी धाम में आयोजित धर्मसभा में आचार्य महाश्रमण ने अपने प्रवचन में कहा कि रोग भी शरीर में नहीं रहना चाहिए। रोग रहता है तो फिर ध्यान नहीं रहता है। तीन प्रकार के रोग होते है। जिसमें पहला शारीरिक रोग, दूसरा मानसिक रोग व तीसरा भावनात्मक रोग। बीमारी एक माध्यम है। जितना भी जीवन में हम निरोगता का अनुभव करते है उसके लिए महापुरुषों के पास में बैठना चाहिए। रोग आता है पूर्व जन्म के कर्मों के कारण। यदि व्यक्ति के असाद वैदिनीय कर्म नहीं हो तो शरीर में कोई रोग नहीं आ सकता है। पुण्य के कारण ही व्यक्ति स्वस्थता का अनुभव कर सकता है। किए हुए कर्मों को भोगे बिना कभी भी छुटकारा नहीं मिल सकता। मानसिक रोग कब होता जब बेटा व धर्मपत्नी कहना नहीं मानते है। जिस व्यक्ति की अपने अगर कोई बात नहीं मानते तो वह मानसिक रोग का शिकार हो जाता है। मानसिक तकलीफ भी एक प्रकार रोग ही है। जिसका चिंतन सकारात्मक होता है वो कभी भी वो इस रोग से कभी प्रभावित नहीं होता है। मानसिक रोग से हम जब ही बच पाएंगे कि हमारे विचारों में पूर्ण रूप से सकारात्मकता हो। अंत में उपस्थित श्रावक समाज को मंगल पाठ का श्रवण करवाया।
मानसिक रोग से हम जब ही बच पाएंगे कि हमारे विचारों में पूर्ण रूप से सकारात्मकता हो : आचार्य महाश्रमण
