उदयपुर, 7 नवम्बर। जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरी की निश्रा में महावीर विद्यालय-चित्रकूट नगर में भद्रंकर परिवार द्वारा आयोजित महामंगलकारी उपधान तप की आराधना बडे हर्षोल्लास के साथ चल रही है। आज उपधान तप के आराधकों का चैत्यस्तव की आराधना स्वरूप चोकिये में मंगल प्रवेश हुआ। प्रवचन दरम्यान उपधान तप के तीन आराधकों की आराधना पूर्ण होने पर आयोजक श्री भद्रंकर परिवार की ओर से बहुमान किया गया।
धर्मसभा में प्रवचन देते हुए जैनाचार्य श्री ने कहा कि-सामायिक अर्थात् पाप कार्य से विराम पाने की मंगल क्रिया। यह सामायिक अल्प कालीन भी होती है और जीवन भर की भी होती है। गृहस्थ अपने जीवन में जो अल्प कालीन सामायिक की प्रतिज्ञा करते है, वह देश विरति है और साधु अपने जीवन भर की सामायिक की प्रतिज्ञा करते है, वह सर्व विरति है।
जैन धर्म में सामायिक की प्रतिज्ञा का सर्वाधिक महत्त्व है। स्वयं तीर्थकर भगवान भी जब तक सामायिक का स्वीकार नहीं करते तब तक उन्हें मनः पर्यव और केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं होती।
शरीर के एक भाग को कोई शस्त्र से छीले और दूसरी ओर कोई शरीर पर चन्दन का विलेपन करे, इन दोनों स्थिति में मन में किसी के प्रति रोष अथवा तोष में होना सामायिक का फल है। ऐसी समता की प्राप्ति विशिष्ट योगी महापुरुषों को प्राप्त हुई होती है। हमारे जीवन का लक्ष्य भी इस प्रकार की समता को प्राप्त करना होना याहिए। अतः गृहस्थ को बार-बार अल्प कालीन सामायिक की आराधना करते हुए समता भाव की प्राप्ति का अभ्यास करना चाहिए।
जैन धर्म में सामाजिक धर्म की सर्वाधिक महत्ता :रत्नसेन सूरी
