राजसमंद। दशहरे पर जहां देशभर में बांस और कागज से बने रावण के पुतलों का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है, वहीं राजसमंद जिले के चारभुजा गढ़बोर में दशहरे की एक बिल्कुल अलग परंपरा देखने को मिलती है। यहां रावण को जलाया नहीं जाता, बल्कि पत्थर और गोलियों से उसका “वध” किया जाता है।
परंपरा का स्वरूप
गढ़बोर में रावण का पुतला बांस और कागज से नहीं, बल्कि पत्थर से बनाया जाता है। पत्थर की यह स्थायी प्रतिमा दशहरे के दिन कस्बे में लगाई जाती है, जिस पर मिट्टी की मटकी का मुखौटा लगाया जाता है।
रावण को लगती है पहली गोली : दशहरे की इस अनूठी परंपरा की शुरुआत सरकारी देवस्थान विभाग के कर्मचारी करते हैं। वे सबसे पहले बंदूक से रावण पर गोली चलाते हैं। इसके बाद कस्बे के लोग हाथों में पत्थर लेकर रावण की प्रतिमा पर तब तक बरसाते रहते हैं, जब तक कि वह पूरी तरह से टूटकर जमीन पर न गिर जाए।
डेढ़-दो घंटे चलता है रावण वध : पूरी प्रक्रिया करीब डेढ़ से दो घंटे तक चलती है। इस दौरान माहौल में जयघोष और उत्साह छाया रहता है। ग्रामीण परिवार सहित इस परंपरा में शामिल होते हैं और पत्थर मारकर रावण के वध में अपनी भागीदारी निभाते हैं।
क्यों नहीं जलाया जाता रावण?
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, जिस रावण ने लक्ष्मण को ज्ञान दिया था, उस विद्वान को जलाना उचित नहीं माना जाता। इसलिए यहां रावण का वध जलाकर नहीं, बल्कि पत्थरों से करके बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है।
चारभुजा गढ़बोर की यह अनोखी परंपरा हर साल लोगों के आकर्षण का केंद्र रहती है और राजस्थान की लोक संस्कृति में विशेष स्थान रखती है।
चारभुजा गढ़बोर की अनोखी परंपरा : रावण को दहन नहीं, पत्थरों और गोलियों से किया जाता है “जमींदोज”
