मालदास स्ट्रीट आराधना भवन में चल रहे है निरंतर धार्मिक प्रवचन
– पर्युषण में प्रतिदिन व्याख्यान, सामूहिक ऐकासना, प्रतिक्रमण तप आराधना जारी
उदयपुर, 24 अगस्त। मालदास स्ट्रीट स्थित आराधना भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में बड़े हर्षोल्लास के साथ चातुर्मासिक आराधना चल रही है।
श्रीसंघ के कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि रविवार को जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की शुभ निश्रा में श्री श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मालदास स्ट्रीट के आराधना भवन में पर्युषण पर्व के पांचवे दिन भगवान महावीर स्वामी का जन्म कल्याणक का मंगल कार्यक्रम हुआ।
जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर ने प्रवचन देते हुए कहा कि अंतिम चौदह पूर्व के ज्ञाता आचार्य श्री भद्रबाहु सूरीश्वरजी द्वारा रचित ग्रंथ शिरोमणि कल्प सूत्र के पांच चौथे प्रवचन के अंत में भगवान महावीर स्वामी के जन्म कल्याणक का सुंदर वर्णन किया है। प्रभु के जन्म समय सात ग्रह उच्च के थे। एसी उत्तम लग्न वेला में मध्यरात्रि के समय उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र का चन्द्रमा के साथ योग होने पर मति, श्रुत और अवधिज्ञान से युक्त, अनंत गुणों की खान ऐसे पीडा रहित प्रभु को पीडा रहित ऐसी त्रिशला महारानी ने जन्म दिया। प्रभु का जन्म सभी जीवों के लिए आनंद-मंगल को बढ़ाने वाला होता है।. मध्यरात्रि में वैसे तो गाढ अंधकार होता है, परंतु प्रभु का जन्म होते ही सारी दिशाएं प्रकाशमय हो जाती है। जहां पर सदा अंधकार होता है ऐसी सातों नरकों में भी प्रकाश- प्रकाश हो जाता है। अपार दु:ख में रहे सभी नारकों को क्षण भर के लिए सुख का अनुभव करते है।. प्रभु का जन्म होने पर आठों दिशाओं में रही 56 दिक्कुमारियाँ आकर प्रभु और प्रभु की माता का अशुचि कर्म करते है। तत्काल ही सौधर्म इन्द्र का आसन कंपित होता है। अवधि ज्ञान से प्रभु के जन्म को जानकर सुघोषा घंटा बजवाकर 64 इन्द्रों के साथ मेरु पर्वत पर प्रभु का एक करोड साठ लाख कलशों से प्रभु का जन्माभिषेक करते है।
प्रभु के जन्म से मध्यरात्रि भी प्रकाशमय हो जाती है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर महाराज
