आचार्य ज्ञानचन्द्र की प्रेरणा से लोगों ने लिया देहदान का संकल्प
उदयपुर। न्यू भोपालपुरा स्थित अरिहंत भवन में आयोजित धर्मसभा में बोलते हुए जैनाचार्य ज्ञानचंद्र महाराज ने कहा कि संसार में सबके बीच ऐसे रहिये, जैसे 32 दांतों के बीच जीभ रहती है। वो मिलती सबसे है, पर दबती किसी से नहीं है।
महावीर ने जैन साधु को भी गृहस्थों की भौतिक चकाचौंध के बीच रहकर भी उससे निर्लिप्त रहने के लिए कहा। आचार्य श्री ने आगे कहा कि तर्क कुतर्क लगाकर अपनी गलती छिपाने का प्रयास न करके, गलती को स्वीकार करने की हिम्मत करिए। गलती की स्वीकृति पर ही गलती सुधरेगा।
आचार्य श्री ने संप्रदाय पर प्रहार करते हुए कहा कि स्थानकवासी स्थानकों में मंदिर, तेरापंथ, दिगंबर वालों को कम ठहराया जाता है,लेकिन जैन धर्म को बचाना है तो सभी को एक दूसरे का परस्पर सहयोगी बनने पर ही जैन एकता की बात बन सकती है। रक्तदान, नेत्रदान पर आचार्य ज्ञानचंद महाराज ने देहदान की विशेषता बतलाई गई तो सैकड़ों भाई बहनों ने देहदान के लिए खड़े होकर संकल्प लिया।
जैन धर्म को बचाना है तो सभी संप्रदाय परस्पर सहयोगी बन कर रहे’
