उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी कृतार्थ प्रभा श्रीजी ने कहा कि धर्म लाभ सिर्फ जैन उपासरे में ही सुनने को मिलता है। संसार से जल्दी पार हो जाओ। इसके लिए संयम अपनाना पड़ेगा। मुनि भगवंत कुछ भी कहते हैं हम वो नहीं सुनते। हम जो सुनना चाहते हैं वही मान लेते हैं कि यही कहा होगा। सिर्फ धर्म किया लेकिन उस आशीर्वाद के मर्म को नही समझा। पुत्र का आशीर्वाद मिला और आपने पुत्र को धर्म के मार्ग पर चला दिया तो वो धर्म लाभ कहलायेगा। पुण्य बन्ध, पाप बंध कर्म की निर्जरा। तीन कारण होते हैं। खेत में बीज एक बोरी डाला और गेहूं 100 बोरी मिला। साथ में घास भी मिल गई।
उन्होंने कहा कि आत्मा अनंतकाल से एक से दूसरी जगह जा रही है। कोई परीक्षा देने जाए, बाहर जाए किसी भी काम के लिए जागे तो मुनि भगवंत से आशीर्वाद लेने जाते हैं। क्या आशीर्वाद लेते हैं, सब काम शांति से सही हो जाये। जो बोलते हैं, वही उम्मीद होती है क्योंकि भगवान तो बोलते नहीं हैं। हम मान लेते हैं कि यही आशीर्वाद दे दिया है। संतों, मुनि भगवंतों का एक ही आशीर्वाद आता है कि धर्म लाभ। शादी के लिए जाओ तो भी धर्म लाभ और परीक्षा के लोई जाओ तो भी धर्म लाभ।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि अगर पुण्य किया होता, धर्म किया होता तो आज यहां नही होते। कैवल्य प्राप्त हो गया होता। मैं यानी अभिमान को छोड़ना होगा। मैं एक सिर्फ आत्मा हूँ। ये मानेंगे तो प्रगति पथ ओर अग्रसर होंगे। अभिमान के कारण धर्म लाभ को समझ ही नही पाते। शरीर रूपी कार को आत्मा रूपी ड्राइवर चला रहा है। इस राग द्वेष के कारण ही मैं शब्द का उपयोग हो रहा है। यहां बैठे हैं तब तक सब मानते हैं कि ये सब करना चाहिए लेकिन यहां से बाहर जाते ही सब भूल जाते हैं। आत्मा रूपी ड्राइवर ही आपको चलाता है।
गुरू जो कहते वह हम नहीं सुनते,हम वहीं सुनना चाहते जो हम मान लेतेः कृतार्थप्रभाश्री
