-जुगल कलाल
डूंगरपुर, 7 जुलाई. राजस्थान के जनजातीय बेल्ट में एक खतरनाक साइबर अपराध नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें आदिवासी समुदाय के मासूम छात्रों और उनके परिवारों के नाम पर फर्जी बैंक खाते खोलकर करीब 1800 करोड़ रुपए की साइबर ठगी को अंजाम दिया गया। इस संगठित घोटाले की जानकारी भारत आदिवासी पार्टी (बीएपी) के सांसद राजकुमार रोत ने सार्वजनिक की है। उन्होंने सीधे राज्य पुलिस महानिदेशक (DGP) को पत्र लिखकर मामले की CBI जांच की मांग की है। सांसद के मुताबिक इस घोटाले में कई नामी बैंकों — इंडसइंड बैंक, एचडीएफसी, एक्सिस बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र — के कर्मचारियों की संलिप्तता है। बैंक प्रतिनिधि कॉलेज और ग्रामीण इलाकों में जाकर छात्रों को पैन कार्ड, छात्रवृत्ति, शैक्षणिक ऋण और सरकारी योजनाओं के लाभ दिलाने का झांसा देकर उनके दस्तावेज — आधार कार्ड, फोटो, हस्ताक्षर — ले जाते थे। इसके बाद चुपचाप फर्जी बैंक खाते खोले जाते, जिनका इस्तेमाल अवैध ट्रांजैक्शनों में किया गया।
“ATM कार्ड मांगे तो मिली चुप्पी और बहाने”
घोटाले की परतें तब खुलीं जब कुछ छात्रों ने बैंक में जाकर अपने खातों के ATM कार्ड मांगे। बैंक कर्मचारियों ने तकनीकी गड़बड़ी का बहाना बनाकर उन्हें टालना शुरू किया। जब छात्रों के परिवार बैंक शाखाओं में पहुंचे तो उन्हें खातों से किए गए बड़े पैमाने पर संदिग्ध लेनदेन की जानकारी मिली। बैंक प्रबंधन ने कर्मचारियों पर कार्रवाई की बात कही, लेकिन ठगी की भरपाई या कानूनी कार्रवाई की दिशा में अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि जिन आदिवासी छात्रों के नाम पर यह घोटाला हुआ, उन्हें ही पुलिस पूछताछ और दबाव का सामना करना पड़ रहा है। सांसद रोत ने आरोप लगाया है कि असली अपराधियों को पकड़ने के बजाय पुलिस निर्दोष पीड़ितों को ही कटघरे में खड़ा कर रही है। यह मामला न सिर्फ आर्थिक शोषण का है, बल्कि सामाजिक और मानसिक उत्पीड़न का भी रूप ले चुका है।
“डूंगरपुर से उदयपुर तक फैला है ठगी का नेटवर्क”
सांसद का दावा है कि यह मामला केवल डूंगरपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर सहित पूरे दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाकों में इसी तरह के मामले सामने आ रहे हैं। यह एक गहराई तक फैला साइबर माफिया नेटवर्क है, जो कमजोर और भोली-भाली जनजातीय आबादी को निशाना बना रहा है। राजकुमार रोत ने मामले की CBI या स्वतंत्र एजेंसी से जांच करवाने की मांग की है। उनका कहना है कि जब तक इस ठगी में शामिल बैंक अधिकारी, साइबर गिरोह और बिचौलियों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, तब तक आदिवासी समाज को न्याय नहीं मिलेगा। उन्होंने पीड़ित छात्रों को सरकारी सहायता, कानूनी सुरक्षा और पुनर्वास देने की भी मांग की।
“यह केवल ठगी नहीं, आदिवासी भविष्य के साथ विश्वासघात है”
इस पूरे घटनाक्रम ने एक सवाल खड़ा किया है — क्या बैंकिंग सिस्टम, प्रशासन और साइबर सुरक्षा एजेंसियां जनजातीय समुदाय की रक्षा कर पाने में विफल हो चुकी हैं? एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया और वित्तीय समावेशन की बात करती है, दूसरी ओर आदिवासी छात्रों को ऐसे झांसे में फंसाकर उन्हें अपराधी की श्रेणी में लाने का कुचक्र रचा जा रहा है।