आखिर वह दुखद समाचार आ ही गया, जो नहीं आना था। विदुषी राजनेता, दर्शनशास्त्री, कवयित्री, पूर्व केन्द्रीय मंत्री प्रो. डॉ. गिरिजा व्यास नहीं रही। राजनीति के अलावा वे शिक्षा व साहित्यजगत में भी ख्यातिप्राप्त थी। कांग्रेस में जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक व जनप्रतिनिधि के रुप में यूआईटी की न्यासी से लेकर केन्द्रीय मंत्री तक उन्हें काम करने का अवसर मिला। दर्शनशास्त्री के नाते विश्व के अनेक मंचो व विश्वविद्यालयों में उन्होने मार्गदर्शन किया।
गिरिजाजी और में परस्पर विरोधी राजनीतिक विचारधारा के रहे। कई अवसरों पर उनके विरुद्ध वक्तव्य भी जारी किये। 1996 के लोकसभा चुनाव में जब वे प्रत्याशी थी, तो ‘एक सवाल गिरिजा के नाम’ अभियान में उनसे प्रतिदिन एक सवाल भी पूछा। इन सभी बातों का उल्लेख इसलिये कर रहा हू कि इन सभी बातों का गिरिजा जी ने व्यक्तिगत व्यवहार में कभी असर नहीं आने दिया। उन्हें पारिवारिक व सामाजिक आयोजन के लिये जब भी निमन्त्रित किया, वे अवश्य उपस्थित हुई। राजनीति के इतर व्यक्तिगत स्नेह को उन्होनें शिद्दत से निभाया।
गिरिजा जी का असमय प्रयाण राजनीति के साथ समाज, साहित्य व शिक्षा क्षैत्र में भी रिक्तता पैदा करेगा, जिसकी पूर्ति निकट भविष्य में असंभव है। मेवाड़ की विदुषी पुत्री डॉ. गिरिजा व्यास को मेरा शत शत नमन..
डॉ. विजय विप्लवी
(लेखक भाजपा के पूर्व पार्षद व मीडिया प्रकोष्ठ में प्रदेश सदस्य रहे है)