बांसवाड़ा : मानवता की प्रतिष्ठापक भारतीय ज्ञान परम्परा आज भी प्रासंगिक एवं उपादेय:कुलपति प्रो दुबे

भारतीय ज्ञान परम्परा शैक्षिक उन्नयन का आधार:कुलपति प्रो ठाकुर
भारतीय संस्कृत ज्ञान परम्परा की प्रासंगिकता विषयक एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
111 शोधार्थियों की सहभागिता एवं 30 शोध पत्र प्रस्तुत

बाँसवाड़ा,26 फरवरी. सृष्टि में मनुष्य होना दुर्लभ है,विद्या दुर्लभ है और इसके उपरांत विनय को अर्जित करना भी दुर्लभ है|ऐसे हज़ारों जीवन दर्शन के सूत्रों से भारतीय ज्ञान परम्परा रची बसी है|हमारी सनातन ज्ञान परम्परा मानवता की प्रतिष्ठा का सार्वभौमिक और सार्वकालिक जीवंत प्रमाण है|यह ज्ञान हमें परम्परा से अर्जित है जो अनादि,अनंत और सर्व प्रासंगिक है|जीव से जगदीश की यात्रा ही भारतीय ज्ञान परम्परा है|उक्त विचार जगदगुरु रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय जयपुर के कुलपति प्रो रामसेवक दुबे ने जीजीटीयू संस्कृत विभाग द्वारा आयोजित “भारतीय संस्कृत ज्ञान परम्परा की प्रासंगिकता” विषयक एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के सारस्वत अतिथि रूप में व्यक्त किए|
प्रो दुबे ने अपने उद्बोधन में संवाद में स्पष्ट किया कि आज की युवा पीढ़ी में जो जिज्ञासा शून्यता दिखाई दे रही है वह चिंताजनक है|यह शिक्षकीय आत्मचिंतन का विषय है|शिक्षक वही सार्थक होता है जो अपने शिक्षार्थी में जिज्ञासा जगाए|प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का ध्येय स्वयं को जानना और आनंद की प्राप्ति होता है और भारतीय ज्ञान परम्परा इसी की सिद्धि का सार्थक और सशक्त साधन है|
भारतीय ज्ञान परम्परा शैक्षिक उन्नयन का आधार:कुलपति प्रो ठाकुर
अध्यक्षीय आशीर्वचन व्यक्त करते हुए जीजीटीयू कुलपति प्रो केशव सिंह ठाकुर ने कहा कि देववाणी अपनी सांस्कृतिक समृद्धि,ज्ञान के भंडार के कारण पूरे विश्व में सर्वोपरि है|इस उच्च कोटि की भाषा का प्रभाव पूरे जीवन और पूरी सृष्टि पर होता है|हमारी सनातन संस्कृति और ज्ञान परंपरा का अमूल्य कोष संस्कृत में ही रचा बसा है|यह भाषा और साहित्य आज के वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी युग में युगीन है,प्रासंगिक है|प्रो ठाकुर ने कहा कि इस परम्परा से पूरे परिवेश का शैक्षिक उन्नयन और स्वस्थ परिवेश सृजित होता है|

111 शोधार्थियों की सहभागिता एवं 30 शोध पत्र प्रस्तुत : आयोजन सचिव और प्रभारी अकादमिक डॉ राकेश डामोर ने अतिथियों का स्वागत करते हुए विषय प्रतिपादन किया|सह आयोजन सचिव डॉ इंदु शर्मा ने बताया कि संगोष्ठी में कुल 111 शोधार्थियों और विषय विशेषज्ञों ने पंजीकरण कराया और दो तकनीकी सत्रों में क्रमशः प्रो राकेश जोशी,प्रो प्रमोद वैष्णव की अध्यक्षता में कुल तीस शोधार्थियों ने :वैश्विक संस्कृत आन्दोलन,मनुस्मृति की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता,सामवेद में संगीत,संस्कृत साहित्य में सौरमंडलीय विवेचना आदि विषयों पर शोध पत्र प्रस्तुत किए|
आयोजन में संगोष्ठी में सञ्चालन गेस्ट फैकल्टी और सह आयोजन सचिव डॉ मीनाक्षी कुबावत और आभार प्रो लक्ष्मण लाल परमार व्यक्त किया|संगोष्ठी में कुलपति प्रो दुबे की धर्मपत्नी श्रीमती दुबे, निदेशक शोध प्रो अलका रस्तौगी,परीक्षा नियंत्रक प्रो मनोज पंड्या,उपकुलसचिव प्रो लक्ष्मण लाल परमार,अभियांत्रिकी महाविद्यालय प्राचार्य डॉ अर्पित पाठक, हरिदेव जोशी गर्ल्स कॉलेज के प्रो सर्वजीत दुबे,ओपी सचदेव,अरावली कॉलेज प्राचार्य डॉ गुलाबधर द्विवेदी.सहित सभी महाविद्यालयों के प्राचार्यों और सभी महाविद्यालयों सहायक आचायों,गेस्ट फैकल्टी और शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने सहभागिता की| उद्घाटन सत्र में गेस्ट फैकल्टी डॉ इंदु शर्मा की पुस्तक ‘स्वतंत्र्य्वाद;काश्मीर शैव दर्शन”का विमोचन मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया|

By Udaipurviews

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