सच्चा मित्र वही जो हमें बुरी संगतो से बचाएं और हमेशा सही मार्ग दिखाएंःसुकनमुनि
उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रमण संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में श्रमण संघीय प्रवर्तक सुकनमुनि महाराज के सानिध्य में पर्यूषण महापर्व का तीसरा दिन मैत्री दिवस के रूप में मनाया गया।
अध्यक्ष एडवोकेट सुरेश नागौरी ने बताया कि पर्युषण महापर्व के तीसरे दिन भी वरुण मुनि जी द्वारा अनगढ सूत्र महाग्रंथ का वाचन किया गया। इसके साथ ही विभिन्न धार्मिक एवं मांगलिक कार्यक्रम हुए। श्राविका महासंघ की और से कौन बनेगा ज्ञानी एवं संस्कृति ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन हुआ। प्रथम द्वितीय एवं तृतीय स्थान पाने वालों को पुरस्कार प्रदान किए गए।
पर्यूषण महापर्व के तीसरे दिन धर्म सभा में मुनिश्री सुकन मुनि महाराज ने मैत्री दिवस पर धर्म उपदेश देते हुए श्रावकों से कहां कि जीवन में मैत्री के बिना काम नहीं चल सकता। बिना मित्र के जीवन अधूरा होता है। मुनिश्री ने मैत्री धर्म का महत्व बताते हुए श्री कृष्ण अर्जुन एवं श्री कृष्ण सुदामा की मैत्री के प्रसंग सुनाए।सच्चा मित्र वही जो हमें बुरी संगतो से बचाए और हमेशा सही मार्ग दिखाएं। सच्चा मित्र वही होता है जो हमारे सुख दुख में काम आए। सच्चा मित्र वही जब हमारा पसीना टपकता देख हमारी परेशानी दूर करने के लिए मित्र खून पसीना एक कर दे।
मुनीश्री ने कहा कि मित्र के तीन प्रकार होते हैं। पहला छाछ में पानी जैसा, दूसरा दूध में पानी जैसा और तीसरा दूध में मिश्री जैसा। छाछ में कितना ही पानी मिला दो लेकिन वह पानी को बाहर नहीं आने देती है। दूध में भी कितना ही पानी मिला दो। गर्म करने पर पानी पानी उड़ जाएगा केवल दूध बचेगा और वह उफनने लगेगा। यानी परेशानी में साथ छोड़ देने वाला मित्र। सच्चे मित्र की पहचान है दूध में मिश्री जैसा। दूध में मिश्री मिलने के बाद जिस तरह से वह एक- मेक हो जाती है। सच्चा और पवित्र मित्र एकमेक होने वाला होनी चाहिए।
मित्रता केवल बाहरी ही नहीं पारिवारिक भी होनी चाहिए। मित्रता के बीच में कभी राग द्वेष मोह माया या स्वार्थ नहीं होना चाहिए। मित्रता के बीच में सदा सहयोगी भाव होना चाहिए। एक दूसरे के प्रति हमेशा देने का भाव रखें। चाहे वह प्रेम वात्सल्य या धन ही क्यों ना हो। जीवन में याद रखना चाहिए कि देने वाला कभी नहीं थक सकता। क्योंकि देने वाले का साथ स्वयं भगवान देते हैं वह कभी उसके कमी नहीं आने देते। अगर किसी को देकर बता दिया तो फिर दिया ही क्या। मैत्री में जो सुख है वह घमंड और अहंकार में नहीं है। इसलिए जीवन में सुखी होने का मंत्र यही है कि सभी मिलजुल कर रहे हैं मैत्री भाव से रहे।
मैत्री दिवस के रूप में मनाया पर्युषण पर्व की तीसरा दिन
