उदयपुर। जैन धर्म के प्रमुख पर्युषण पर्व के तीसरे दिन सामायिक दिवस पर धर्मसभा को संबोधित करते हुए शासनश्री मुनि सुरेश कुमार ने कहा – लाभ अलाभ ,सुख दुःख ,निंदा प्रशंसा, जीवन मरण के बीच सम्भाव ओढ़ लिया तो मोक्ष के बंद दरवाज़े स्वयं खुल जाते है ।
सामायिक जैन श्रावक की महत्वपूर्ण साधना पद्धति है । 48 मिनिट्स की इस साधना में हम मन , वाणी, और आत्मा को स्थितप्रज्ञ बना लेते है , और यही से वीतरागता का प्रारंभ होता है ।
अनंत जन्मों तक भी करोड़ों के स्वर्ण सिक्को का दान करे तो भी एक सामायिक कि तुलना नहीं हो सकती। एक मुहूर्त तक हिंसा से जुड़ी प्रवर्त्तियों के त्याग ही सामायिक का उद्देश्य है । कही एसा ना हो की हम अपने उद्देश्य से भटक जाये
मुनि संबोध कुमार मेधांश ने ‘भव परंपरा से गुजरते महावीर’ विषय पर बोलते हुए कहा – पर्युषण परम आराध्य प्रभु महावीर की जीवन यात्रा से स्वयं को भावित और प्रेरित करने का अवसर है। उन्होंने सत्ताईस भवो का ज़िक्र करते हुए कहा- विस्वभूति को अपने काका से धोखा मिला तो अपने ग़ुस्से को उसने वैराग्य में बदल कर महाव्रत पथ पर प्रस्थान कर दिया,यह दुनिया की रीत है की लोग आपको तब तक पूछेंगे भाई तू कैसा है जब तक जेब में पैसा है
मुनि सिद्धप्रज्ञ जी ने शान्तिकर्ता शांतिनाथ जी विषय पर बोलते हुवे कहा शांतिनाथ के जन्म के पहले रोगों ने आतंक फैलाया था। शांति नाथ का जन्म होने से रोग शांत हो गए इसलिए माता पिता ने बालक का नाम शांति कुमार रखा। शांति नाथ का जप करने से जहां एक ओर सभी तरह की शांति की प्राप्ति होती है वही दूसरी ओर करोड़ भवो के पाप कर्म खत्म हो सकते है। शांति प्रभु के जप से गरीबी की भी समस्या का समाधान होता है। मुनि श्री ने रोग शमन ओर गरीबी दूर करने के शांति मन्त्र का जाप भी बताया