उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में चल रहे चातुर्मास में श्रवण संगीत प्रवर्तक सुकन मुनी जी महाराज ने श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष प्रवचन दिये।
सुकन मुनि ने कहा कि आज भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी है। यह अष्टमी कर्मयोगी श्रीकृष्ण के साथ जुड़ी हुई है। श्रीकृष्ण के साथ जुड़ जाने से इस अष्टमी का महत्व सचमुच बढ़ गया है। इस अष्टमी को जन-जन जन्माष्टमी के रूप में जानता है। इस अष्टमी को और भी अनेकों ने जन्म लिया है एवं ले रहे हैं और लेते रहेंगे, पर इन सबको कौन याद करता है? श्रीकृष्ण ने इस अष्टमी को जन्म लेकर जन-मानस के अन्दर विशिष्ट श्रद्धा और सम्मानपूर्ण स्थान बना लिया है। जन-मानस उन्हीं को स्थान और सम्मान देता है, जिनके जीवन में वैशिष्ट्य रहा हो। इस सम्बन्ध में किसी कवि का बहुत सुन्दर कथन है- लाखों आते लाखों जाते, दुनिया में नहीं निशानी है। जिसने कुछ करके दिखलाया, उसकी ही अमर कहानी है।
डॉ. वरुण मुनी डीलिट ने कहा कि श्रीकृष्ण ने जन्म लेकर, शानदार जीवन जीकर एक ऐसी दिव्य, भव्य एवं प्रेरणास्पद कहानी का निर्माण किया है जो कि आज भी असंख्यजन उनके गुणों का उत्कीर्तन करते हुए थकते नहीं है। कृष्ण का जन्म जिन परिस्थितियों में हुआ, वे परिस्थितियाँ इतनी विषम एवं विचित्र थीं कि कुछ कहा नहीं जा सकता। तीन खंड के स्वामी का जन्म और जन्म के समय थाली बजाने वाले की बात तो दूर, कोई ताली बजाने वाला भी नहीं था।
मुनि ने कहा कि श्रीकृष्ण का जीवन एक ऐसा जीवन है कि हम उनके गुणों की चर्चा करते ही चले जाएँ। कृष्ण ने अपने जीवन में व्यापक रूप से धर्म-दलालियों से स्वयं को जोड़े रखा। उन्होंने स्पष्ट रूप से उद्घोषणा करवा दी थी कि कोई भी व्यक्ति यदि प्रभु के चरणों में दीक्षित होना चाहे तो उसके दीक्षा का सारा भार मैं वहन करूँगा एवं उसके परिवार आदि की परिचर्या का सम्पूर्ण दायित्व मैं निभाऊँगा। यह दृष्टिकोण बहुत उत्कृष्ट दृष्टिकोण है। हम देखते हैं, कई ऐसे लोग हैं जो न स्वयं धर्म से जुड़ते हैं और न दूसरों को जुड़ने देते हैं। किसी के मन में धर्म आराधना का पवित्र भाव यदि जागृत हो गया, तो अंतराय, अवरोध उपस्थित करने वाले कई मिल जाएँगे। वे नहीं जानते है कि धर्माराधना के क्षेत्र में अवरोध खड़े करने वाला अपने हाथों अपने दुर्भाग्य को आमन्त्रित करता है।
मुनि ने कहा कि श्रीकृष्ण से हम यह प्रेरणा अवश्य लें कि कभी भी अच्छे कार्यों का विरोध नहीं करेंगे। हम अच्छी प्रवृत्तियों का अनुमोदन एवं अभिनन्दन करना सीखें। कृष्ण के जीवन का इतिहास बोलता है कि उन्होंने धर्म-दलालियों से जुड़कर तीर्थकर गोत्र का अनुबंध कर लिया था। हम भी अपने जीवन को विशिष्टता प्रदान सकते हैं। आवश्यकता मात्र अनुकरण करने की है। वासुदेव श्रीकृष्ण के मन में पशुजगत के प्रति जो प्रेम था, वह अभूतपूर्व था। उन्होंने पशुओं के संरक्षण के लिए अपने आपको सर्वात्मना समर्पित रखा। उन्होंने पशुओं की कभी उपेक्षा नहीं होने दी।
मुनि ने कहा कि श्रीकृष्ण की इस जन्म जयंती के पावन प्रसंग पर यह संकल्प सामूहिक रूप से करने की आवश्यकता है कि हम गोधन का अनिवार्य रूप से संरक्षण-संवर्धन करेंगे तथा कभी भी कत्लखानों को पुष्ट नहीं होने देंगे। हमारे संकल्पों में एवं आवाज में बल होना चाहिए। यदि सामूहिक रूप से हिंसा के उन्मूलन के लिए प्रयास किये जाएँ तो पुनः इस देश में अहिंसात्मक मूल्यों की प्राण-प्रतिष्ठा हो सकती है। श्रीकृष्ण वासुदेव ने कभी भी अन्याय और अधर्म को प्रभावी नहीं होने दिया। वे सदैव न्याय और धर्म के प्रबल समर्थक रहे। संघ के मंत्री दिनेश हिंगड़ ने बताया कि प्रवचन सभा में अखिलेश मुनि ने श्री कृष्ण के जीवन पर एक सुंदर गीत प्रस्तुत किया।
कर्मयोगी थे श्रीकृष्ण- सुकनमुनि महाराज
