– मंशापूर्ण महादेव मंदिर से कथा स्थल तक निकली विशाल कलश एवं पोथी यात्रा
– व्यासपीठ पूजन के साथ 7 दिवसीय कथा प्रारंभ
उदयपुर, 3 दिसम्बर । शहर के आरके पुरम, गिरिजा व्यास पेट्रोल पंप के पीछे श्री नाथ नगर, साईं अपार्टमेंट के पास संगीतमय 7 दिवसीय “श्री मद भागवत” कथा अमृत महोत्सव कथा से पूर्व मंशापूर्ण महादेव मंदिर से कलश यात्रा का शुभारंभ हुआ। सात दिनों तक व्यासपीठ से पुष्कर दास महाराज के मुख से अमृतवाणी का श्रवण होगा।
विठ्ठल वैष्णव ने बताया कि कथा के प्रथम दिन सबसे पहले आचार्य संदीप शर्मा ने कलश और भागवत जी का पूजन विधि विधान से करवाया, उसके बाद में भागवत जी की पोथी को महादेव के चरणों में रखकर यात्रा का शुभारंभ किया गया। सभी लोगों ने जगह जगह पुष्प वर्षा करते हुए यात्रा का आदर पूर्वक सम्मान किया । महिलाओं ने अपने सिर पर कलश लेकर यात्रा में बढ़ चढ़ कर भाग लिया । मुख्य यजमान नरेंद्र वैष्णव ने परिवार के साथ भागवत की पोथी को सिर पर धारण किया। सभी महिलाएं भजनों पर झूमते हुए नृत्य करती हुई पूरे मार्ग में यात्रा में सम्मिलित हुई। पुरुष लोग भी भजनों में झूमते हुए नजर आए। यात्रा में सभी लोगों ने भगवान कृष्ण और राधा जी की सुंदर झांकी के दर्शन किए। पूरे मार्ग में भगवान के जयकारे लगते रहे। पहले दिन मुख्य यजमान नरेंद्र वैष्णव ने परिवार के साथ व्यासपीठ पूजन किया और पुष्कर दास महाराज का पगड़ी और उपरना से सम्मान किया ।
महाराज ने प्रथम दिन कहा कि भागवत में सोनक जी ने सूत जी महाराज से कहते हे ऐसी कथा सुनाओ जो कानों को प्रिय लगे और कथा सुनने से मेरे मन में बदलाव हो। कथा के सार की जरूरत है, जिसने भगवान को अपना मान लिया उसने भागवत के सार को समझ लिया । महाराज ने कहा वैष्णव परिवार ने कथा का आयोजन रख कर सभी को जोड़ने का प्रयास किया । कथा सत्संग का आयोजन करवाना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य है, करोड़ों जन्मों के पुण्य उदय होते तभी कोई भागवत का आयोजन करवा सकता है और कोई कथा को श्रवण कर सकता है ।
आगे प्रथम अध्याय की कथा में आत्मदेव की कथा आती है, आत्मदेव के बालक नहीं होने के कारण वह परेशान होते हे और संत उनके घर आते है और प्रसाद देते है। पत्नी धुंधुली गर्भ का दुख नहीं भोगना चाहती और प्रसाद का सेवन नहीं करती है प्रसाद गाय को खिला देती है। इधर उसकी बहन गरीब होती है ओर धुंधुली बहन को धन देती ओर अपनी बहन का बेटा अपने घर ले आती है। इधर गाय के बच्चा होता हे शरीर इंसान के जैसा और कान गाय की तरह जिसका नाम गोकर्ण रखा । गोकर्ण संत की प्रसादी था वह तो पूजा,संध्या आदि करता बहन का बेटा धुंधूकारी बड़ा उद्यमी स्वभाव का होता है। बड़ों की बात, संतों की बात और आंवले का स्वाद बाद में पता चला है। आत्मदेव को एक बेटा सुख दे रहा है एक बेटा दुख, महाराज ने कहा बच्चों के ऊपर मां का स्वभाव कैसा होता है वही असर करता है। बच्चों पर माता पिता को नियंत्रण रखने की जरूरत है, बेटियों को सही शिक्षा देने की जरूरत है । धुंधूकारी बुरे कार्य करने लगा, एक दिन पांच स्त्रियों में फंस गया । पांच स्त्रियां शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध द्य धुंधूकारी की अकाल मौत होने के कारण वह प्रेत बनकर भटकता हे उसकी आत्मा बांस में बैठी थी और सात गांठ से बंधा हुआ था भागवत कथा सुनने से उसका उद्धार हुआ।
कथा में प्रथम दिन गुप्तेश्वर महादेव महंत तन्मय बन महाराज, भगवान दास वैष्णव,पवन वैष्णव, गणेश दास,अतुल शर्मा, राकेश मूंदड़ा, सुनील चौबीसा, इंदर सिंह आदि उपस्थित रहे ।
आरके पुरम में कलश यात्रा के साथ 7 दिवसीय भागवत कथा अमृत महोत्सव का शुभारंभ
