पशुपालन के लिए मशीनीकरण’ विषयक 24 वीं दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला आरंभ

जल, जंगल, जमीन पर हर जीव का अधिकार: डाॅ. कर्नाटक
डेयरी-पोल्ट्री में मशीनीकरण का उपयोग बढ़े: डाॅ. मित्रा
उदयपुर, 28 जनवरी। अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना अंतर्गत ’पशुपालन के लिए मशीनीकरण’ (एमएचए) विषयक दो दिवसीय 24वीं वार्षिक राष्ट्रीय कार्यशाला मंगलवार को यहां अनुसंधान निदेशालय सभागार में आरंभ हुई। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की मेजबानी में आयोजित इस कार्यशाला में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली सहित देश भर के सौ से ज्यादा कृषि वैज्ञानिक, अभियंता और अनुसंधानकर्ता भाग ले रहे हैं।
उद्घाटन सत्र मेें आयुक्त पशुपालन, भारत सरकार, नई दिल्ली डाॅ. अभिजीत मित्रा ने कहा कि कृषि-पशुपालन के तीन प्रमुख घटक उत्पादन, रखरखाव एवं फूड सेफ्टी में मेकेनाइजेशन की विपुल संभावना व आवश्यकता है। डेयरी- पोल्ट्री के क्षेत्र में भी मशीनीकरण को तरजीह दी जानी चाहिए तभी हम दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चल पाएंगे। पशुपालकों में 70 फीसदी महिलाएं काम कर रही हैं। पशुपालन के क्षेत्र में केवल एक छोटे से घटक गोबर उठाना, पोल्ट्री में विष्ठा व अन्य अपशिष्ट की साफ-सफाई के लिए भी मशीन तैयार कर ली जाए तो मानव श्रम की काफी बचत होगी और यह श्रम अन्यत्र उपयोग में आएगा।
डाॅ. मित्रा ने कहा कि पशुपालन विभाग, नई दिल्ली भविष्य में पंचायत राज, उद्यान, कृषि विपणन और अन्य सबद्ध विभागों को साथ लेकर पशुपालन में मशीनीकरण पर कुछ इस तरह का रोल माॅडल तैयार करेगा जो देशभर में ब्लाॅक व पंचायत स्तर पर उपयोगी साबित हो। भारत में वर्तमान में 192 मिलियन गौवंश है। इनमें से 27 प्रतिशत क्राॅस ब्रीड है जबकि 10 प्रतिशत ही दुग्ध उत्पादन में शामिल है। उन्होंनेे राजस्थान की गाय की नस्ल ’थारपारकर’ की व्याख्या करते हुए बताया कि वह गाय जो विपरीत परिस्थितियों में थार यानी रेगिस्तान को पार करने की क्षमता रखती हो और भरपूर दूध भी देती हो।
उपमहानिदेशक (अभियांत्रिकी) आईसीएआर नई दिल्ली डाॅ. एस.एन. झा ने कहा कि मौजूदा परिवेश में पशुपालन ही नहीं ’संपूर्ण मशीनीकरण’ की दिशा में काम करना होगा। विकास के मामले मंे दुनिया की गति काफी तेज है और ज्ञान के बल पर ही हम इस गति का मुकाबला कर पाएंगे। उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों को हर समय अपडेट रहने को कहा। पशुपालन के साथ-साथ फाॅर्म मेकेनाइजेशन पर जोर देते हुए डाॅ. झा ने कहा कि केवल जलवायु, साफ-सफाई व आर्द्रता को नियंत्रण करने मात्र से हम दुग्ध उत्पादन में 10 प्रतिशत की अभिवृद्धि कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हमंे स्वीकार करना होगा कि ’जब तक सूरज चांद रहेगा, इस धरा पर पशुधन रहेगा’ पुरानी परम्पराओं का त्याग करते हुए पशुधन के रखरखाव, दुग्ध व मांस उत्पादन में वृद्धि के लिए नए तौर तरीकों को अमल में लाना होगा।
कुलपति डाॅ. अजीत कुमार कर्नाटक ने बेबाकी से तर्क रखा जल, जंगल, जलवायु और जमीन अकेले मनुष्य की बपौती नहीं है, वरन इस चराचर जगत में विचरण करने वाले हर जीव का इस पर अधिकार है। गलती यहां हुई कि प्रकृति की इस देन को आदमी ने अपनी बपौती मान लिया। ऐसे में जलचर, नभचर और थलचर प्राणी कहां जाएंगे? सदाशयता इसी में है कि पशु-पक्षियों को भी पर्याप्त दाना पानी मिलना चाहिए ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे। उन्होंने पशु आहार बनाने, दूध निकालने, अपशिष्ट प्रबंधन और पानी देने की व्यवस्था के लिए उपकरण व मशीनरी विकसित करने पर जोर दिया। पशुधन के लिए बेहतर आवास, स्वच्छता व स्वास्थ्य नियंत्रण भी आवश्यकता है।
सहायक महानिदेशक (एएनपी) आईसीएआर नई दिल्ली डाॅ. अमरीश त्यागी ने कहा कि आने वाला समय क्षमता निर्माण व कौशल विकास का है। पशुपालन के लिए मशीनीकरण इसी सोच का हिस्सा है हर क्षेत्र में गहन अध्ययन, सर्वेक्षण तकनीक व प्रौद्योगिकी हस्तांतरण से ही हम उपकरण और मशीन की कल्पना कर उसे साकार रूप में धरातल पर उतर पाएंगे। परियोजना समन्वयक डाॅ. एस. पी. सिंह, निदेशक सीआईएई भोपाल, डाॅ. सी. आर. मेहता ने पशु प्रबंधन की आधुनिक तकनीकियों का जिक्र किया। आरंभ सीटीएई डीन डाॅ. अनुपम भटनागर ने अभियांत्रिकी महावि़द्यालय में होने वाली गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
पुस्तक एवं पेम्फलेट विमोचन
आरंभ में अतिथियों ने अधिष्ठाता सीडीएफडी डाॅ. लोकेश गुप्ता द्वारा लिखित पुस्तक ’आधुनिक पशुपालन एवं प्रबंधन’ एवं पेम्फलेट समुचित पशु आहार प्रबंधन, पशुचलित उन्नत कृषि यंत्र का विमोचन किया।
कार्यशाला में इनका रहा प्रतिनिधित्व
आईसीएआर-सीआईएई भोपाल (मध्य प्रदेश), एमपीयूएटी उदयपुर (राजस्थान), जीबीपीयूएटी पंतनगर (उत्तराखंड), यूएएस रायचूर (कर्नाटक), वीएनएमयू परभणी (महाराष्ट्र), आईजीकेवी रायपुर (छत्तीसगढ़), ओयूएटी भुवनेश्वर (ओडिशा), आईसीएआर-एनडीआरआई करनाल (हरियाणा) और सीएयू-सीएईपीएचटी गंगटोक (सिक्किम)।

By Udaipurviews

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