सूर्य ग्रहण में रिंग ऑफ फायर एक सामान्य खगोलीय प्राकृतिक घटना
बांसवाड़ा . राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय अमरथून के अब्दुल कलाम आजाद विज्ञान क्लब के तत्वाधान में *सूर्य ग्रहण एक प्राकृतिक घटना विषयक संगोष्ठी* नासिर अली अंसारी
व्याख्याता रसायन के सानिध्य मे प्रखर राजस्थान अभियान के अन्तिम चरण में निपुण मेले के पूर्व तैयारी मे आयोजित की गई जिसमें सूर्य ग्रहण से संबंधित विभिन्न जिज्ञासाओ का समाधान किया गया।
प्रारम्भ में सस्था प्रधान अरुण व्यास ने कहा कि सूर्य ग्रहण एक सामान्य खगोलीय प्राकृतिक घटना है और जनजाति बहुल ग्रामीण इलाकों में विभिन्न ग्रहण चाहे सुर्य ग्रहण या चन्द्र ग्रहण अथवा उल्कापिंड गिरने को लेकर मिथ्या भ्रम के निदान की आज महत्ती आवश्यकता है।
शिक्षा और विज्ञान किसी चमत्कार को स्वीकार नही करता है अतः इसे सुर्य ग्रहण को सामान्य खगोलीय घटनाएं के रूप में ही लेवे । सदियों पहले से खगोलीय घटनाएं होती रहती हैं और आगे भी सदियों तक पुनः होगी अतः सभी मिथ्या भ्रम नही पाले।
सूर्य ग्रहण जिसमें एक सीधी विशेष रेखा में पृथ्वी,चंद्रमा और सूर्य का विशेष कोण में अंतरिक्ष में आना और रिंग ऑफ फायर का निर्माण करना ऐतिहासिक घटना है सूर्य ग्रहण का धार्मिक और वैज्ञानिक दोनों महत्व है
वक्ताओं ने कहा कि आश्विन अमावस्या 02 अक्टूबर बुधवार के दिन वर्ष का दूसरा और अंतिम सूर्य ग्रहण लगने वाला है।
यह सूर्य ग्रहण कंकण सूर्य ग्रहण होगा 09:13 मिनट से मध्य रात्रि 03:17 मिनट पर समाप्त होगा सूर्य ग्रहण की कुल अवधि 6 घंटे 04 मिनट रहेगी।भारत में उक्त गतिविधि दिखाई नही देगी।
व्यास ने ज्योतिष के ग्रंथ बृहत्संहिता में ग्रहण के बारे में भविष्यवाणियां का खण्डन किया की जब- जब एक ही महीने में दो ग्रहण एक साथ होते हैं तब-तब दुनिया में हादसों व प्राकृतिक आपदाओं का ग्राफ बढ़ जाता है।
साल का आखिरी सूर्य ग्रहण : साल का आखिरी सूर्य ग्रहण एक वलयाकार ग्रहण होगा। यह तब होता है जब पृथ्वी और सूर्य के बीच चंद्रमा हो, लेकिन इसकी दूरी धरती से दूर हो, धरती से दूर होने के कारण चंद्रमा छोटा दिखता है। इस कारण यह इतना बड़ा नहीं होता कि पूरे सूर्य की किरणों को रोक ले।
रिंग ऑफ फायर (Ring of Fire) : सूर्य ग्रहण में चारों ओर एक रिंग जैसी आकृति दिखाई देती है इस सूर्य ग्रहण का ज्यादातर पथ प्रशांत में होगा, दक्षिण अफ्रीका के चिली और अर्जेंटीना में यह एकदम साफ दिखेगा
कहां दिखेगा सूर्य ग्रहण : वक्ताओं ने बताया कि उक्त गतिविधि दक्षिण अमेरिका, उत्तरी-अमेरिका के दक्षिणी भागों, प्रशान्त महासागर, एटलांटिक महासागर और न्यूजीलैंड, फिजी आदि देशों में कुछ समय के लिए दिखाई देगा. दिखाई देने वाले मुख्य देश होंगे-चिली, अर्जेंटीना, ब्राज़ील, मैक्सिको, पेरू, न्यूजीलैंड और फिजी में हालांकि, यहां भी बहुत कम समय के लिए दिखाई देगा। इस ग्रहण की कंकण कृति केवल दक्षिणी चिली और दक्षिणी अर्जन्टीना में ही दिखाई देगी।
वक्ताओं ने बताया कि कई बार होता है कि चंद्रमा परिक्रमा करते हुए सूर्य और पृथ्वी के बीच आ जाता है।जिस वजह से चंद्रमा कुछ समय के लिए सूर्य के प्रकाश को धरती पर आने से रोक देता है, इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है इस दौरान पृथ्वी पर चंद्रमा की परछाई देखने को मिलती है।
वलयाकर सूर्य ग्रहण : वक्ताओं ने बताया कि दरअसल, वलयाकर सूर्य ग्रहण में चंद्रमा धरती से दूर होता है और सूर्य को पूरी तरह से ढक नहीं पाता है। इससे आकाश में आग की रिंग दिखाई देने लगती है।इसे रिंग ऑफ फायर का नाम दिया गया है।
प्राकृतिक आपदाओं की आशंका मिथ्या : वक्ताओं ने सूर्य ग्रहण हो या चंद्र ग्रहण उसका पृथ्वी पर कुछ ना कुछ दुष्प्रभाव जरूर पड़ते हैं को मिथ्या कथन बताते हुए इनका खण्डन भी किया क्योंकि यह घटना सौरमंडल की सामान्य खगोलीय घटनाएं है जबकि कुछ इसे अशुभ मानते है। और अग्निकांड- भूकंप- युद्ध- दुर्घटनाएं जैसी आपदाओं की वृद्धि का कारण मानते है यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा अतः भारत में सूर्य ग्रहण के किसी किसी भी तरह के नियम पालन की आवश्यकता नहीं है
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विभिन्न वक्ताओं ने चार्ट और मॉडल के माध्यम से विभिन्न विद्यार्थियों की जिज्ञासाओ का समाधान भी किया।
इस अवसर पर सर्व श्री कपिल वर्मा ,दिलीप कुमार मीणा, पर्वत सिंह, हरिशंकर, भेरूलाल डोडियार, खुशपाल कटारा, दयाशंकर चरपोटा ,मयूर पड़ियार, मुकेश पटेल, बदन लाल डामोर, अनूप कुमार मेहता, श्रीमति रैना निनामा ,श्रीमति प्रज्ञा अधिकारी ने सम्बोधित किया। संचालन श्रीमति प्रज्ञा अधिकारी ने किया जबकि आभार प्रदर्शन जीवन लाल निनामा ने ज्ञापित किया।