उदयपुर। जीवन दिनों-दिन जटिल हुआ है पर लिखे-छपे शब्द इसकी मुश्किलों से लड़ते हैं और यथासंभव आदमी के पक्ष में फ़ैसला देते हैं। इसीलिए इस बात की ज़रूरत और ज़्यादा है कि हम लोग संवाद के लिए परस्पर मिलते रहें। सद्भाव और सहिष्णुता किसी खदान से नहीं निकलेंगे, इन्हें साहित्य ही लायेगा। ऐसे में राजनीति भी साहित्य को कुछ देने की नहीं, बल्कि उससे ताक़त प्राप्त करने की कोशिश करे,ताकि संस्कृति के झरने निर्बाध बहते रहें। इंसानियत की धरोहर यही शक्ति है। ये कहना था प्रबोध कुमार गोविल का जो पत्रकार व कवयित्री डॉ.शकुंतला सरुपरिया के सवालों का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि यहां राजस्थान में तो हमें अपनी अभिव्यक्ति के सवाल भी हल करने है, ताकि हम अपने स्थानीय साहित्य की गंध को बचाए रख सकें। वे भारतीय लोक कला मंडल ,पुरोधा पत्रकार स्व. डाॅ. सुराणा स्मृति आयोजन समिति एवं तनिमा साहित्यिक पत्र के साझे में प्रतिष्ठित लोक कलाविद पद्मश्री देवीलाल सामर स्मृति इंद्रधनुषी सृजन रत्न कार्यक्रम में अपनी साहित्य की यात्रा और जीवन अनुभव के बारे में विस्तार से बता रहे थे। जयपुर से पधारे श्री प्रबोध कुमार गोविल की लघु कथा, कहानी उपन्यास, संस्मरण आत्मकथा, कविता सहित अनुवाद की 70 से अधिक किताबें प्रकाशित हैं। लोक कला मंडल में आयोजित साक्षात कार्यक्रम में श्री गोविल की सद्य प्रकाशित दो पुस्तकों “हडसन तट का जोड़ा”(उपन्यास) व (कहानी संग्रह) “मेरी कहानियां” के साथ उनके द्वारा संपादित 44 वर्षों से प्रकाशित करा पत्रिका “कथा बिंब” के नवीन 162वें अंक का भी लोकार्पण किया गया। लोकार्पण की रस्म की प्रसिद्ध साहित्यकार, जयपुर दूरदर्शन के पूर्व निदेशक श्री नंद भारद्वाज, मंचीय कवि और प्रतिष्ठित गीतकार श्री अब्दुल जब्बार. चित्तौड़गढ़, गीतकार एवं साहित्यकार श्री नंदकिशोर निर्झर,लोक कला मंडल के मानद सचिव एस.पी. गौड़ ने अदा की। कार्यक्रम के आरंभ में लोक कला मंडल के निदेशक व रंगकर्मी डॉ. लईक हुसैन ने सभी का स्वागत किया।
इस अवसर पर श्री प्रबोध कुमार गोविल का शॉल,उपरणा,स्मृति चिन्ह और उपहार भेंट कर भावभीना अभिनंदन किया गया। साक्षात्कार कार्यक्रम का आरंभिक संचालन श्रीमती प्रीति पुरोहित ने किया और धन्यवाद की रस्म महाकाल मंदिर की प्रशासक समाज सेविका श्रीमती दीक्षा भार्गव ने अदा की। श्री प्रमोद कुमार गोविल के 70 में जन्मदिन के उपलक्ष में उपस्थित जनों के बीच केक काट कर सब का मुंह मीठा कराया गया। इस द्वितीय “इंद्रधनुषी सृजन रत्न कार्यक्रम में नगर के गणमान्य जन व प्रबुद्ध साहित्यकार उपस्थित थे।
संवेदना, संचार, संवाद, सद्भाव सब अब साहित्य के जरिए ही रह गया है-प्रबोध कुमार गोविल
