यतेन्द्र दाधीच
उदयपुर। मकान या दुकान तो गिरवी रखते हुए देखा है लेकिन उदयपुर के आदिवासी क्षेत्र में माता पिता अपने 10 से 12 वर्ष के बच्चों को अपनी खुद की शादी या शराब पीने के पैसों के लिए गिरवी रख रहे हैं, जिसकी जानकारी सरकारी तंत्र तक नहीं पहुँच पाती और इन कार्यों को बढ़ावा मिलता रहता हैं, लेकिन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रेलवे ट्रेनिंग उदयपुर के शिक्षक दुर्गाराम मुवाल को जब बच्चों को गिरवी रखे जाने की जानकारी मिली तो उन्होंने अपनी टीम के सहयोग से ऐसे बच्चों की पूरी पड़ताल की तो कुछ बच्चों को गिरवी रखने की जानकारी मिली लेकिन ऐसे बच्चों के माता पिता और उनके गिरवी रखे बच्चों के पुख्ता सबूत नहीं मिले तो दुर्गाराम मुवाल और कुणाल चौधरी ने अपने स्तर से 3 दिन तक कड़ी मशकत करके ऐसे बच्चों की जानकारी जुटाई तो कोटड़ा के कुछ परिवारों की जानकारी मिली जिन्होंने अपने बच्चे गिरवी रखे हैं, कोटड़ा के ऐसे परिवार वर्तमान में गुजरात में ईडर से आगे किसी गाँव में रहना मालूम हुआ तो दुर्गाराम मुवाल सोमवार अल सुबह इस परिवार से मिलने ईडर के पास उस गाँव में गये जहाँ कोटड़ा के आम्बादेह निवासी मिरखा पिता दिता जिसने तेमी नामक महिला से सगाई की और दोनों साथ रहने लग गये, बिना शादी के उनके छ संतान पैदा हुई, कुछ दिनों पूर्व समाज के द्वारा उनको सामाजिक रिती रिवाज के तहत विवाह करने के लिए बोला जिसके तहत पंचों ने इकठ्ठे होकर दापा की रकम लगभग 45 हजार तय की, इतनी रकम मिरखा के पास नहीं होने से उसने अपने 9 वर्षीय बेटे किशन को 10 महीने पहले किसी रेवड़ रखने वाला के पास 45 हजार रूपये में गिरवी रख दिया, जिस व्यक्ति के पास मिरखा ने किशन को गिरवी रखा उसके बारे में कोई जानकरी नही थी उसका नाम क्या है, गाँव कौनसा है जानकारी के रूप में केवल उस व्यक्ति के मोबाईल नम्बर थे, दुर्गाराम ने अपनी टीम के साथी कुणाल चौधरी के साथ बच्चों को लीज पर लेकर जाने वाले व्यक्ति की तलाश शुरू की, किसी और तरीके से फोन करके उस बच्चे के बारे में बातचीत शुरू करके उस बच्चे किशन से मिलने की इच्छा जताई तो वो वो व्यक्ति तैयार हुआ, ईडर से भी लगभग 100 किलोमीटर दूर अकोदरा गाँव में इनको बच्चे से मिलने के लिए बुलाया, जब दुर्गाराम मुवाल एवं कुणाल चौधरी इस बच्चे से मिलने गये तो उस व्यक्ति ने उनको दूर सुनसान जंगलों में बुलाया जहाँ दूर दूर तक कोई घर एवं व्यक्ति नही था, वहां जाने के बाद जब वो उस व्यक्ति से मिले तो उसने बोला की मुझे पहले उस बच्चे के पिता से बात करवाओ तो मैं आपको उस बच्चे से मिलाऊ, लेकिन दुर्गाराम ने बोला की हमे उस बच्चे के आपके पास होने की जानकारी मिली हैं इसलिए हम बच्चे से मिलने आए हैं, जब दुर्गाराम ने उस व्यक्ति से उसका नाम पूछा तो उसने थोड़ी देर सोचने के बाद अपना नाम मेहुल बताया और अपनी पहचान छुपाने के लिए टोपी और मास्क लगा रखे थे, हाथ में लाठी भी थी, इस दौरान कुणाल ने इसका विडियो बना लिया था, जब दुर्गाराम ने बार बार उस बच्चे से मिलने के बारे में पूछा तो उसने बोला की आप मेरे साथ चलों, दुर्गाराम और कुणाल को वह व्यक्ति कई किलोमीटर तक सुनसान काँटों भरे जंगलों में घुमाकर गुमराह करता रहा, जहाँ कहीं दूर दूर तक कोई भी मकान एवं व्यक्ति नजर नहीं आया, काफी किलोमीटर चलने के बाद एक झोंपड़ी नजर आई जहाँ उस बच्चे का होना बताया और दुर्गाराम एवं इनके साथी कुणाल को बोला की आप यही रुको में बच्चे को लेकर आता हूँ, जब वो व्यक्ति काफी देर तक नही आया तो दुर्गाराम को अंदेशा हुआ की यहाँ इनकी कोई बड़ी गैंग हो सकती हैं उधर दुर्गाराम एवं कुणाल उस झोंपड़ी की तरफ गए तो वहां कोई भी नजर नहीं आया, वो व्यक्ति कहीं जाकर छुप गया, काफी देर तलाशने के बाद वहां एक रेवड़ आता दिखाई दिया तो रेवड़ वाले से मेहुल के बारे में पूछा तो मालूम हुआ की इस क्षेत्र में मेहुल नाम का कोई भी नहीं हैं, दुर्गाराम को अपने साथ धोखा होने का आभास हुआ तो यह अपने टीम के साथ आसपास के इलाकों में उस व्यक्ति की तलाश में घुमे, जहाँ उसका विडिओ दिखाकर उसकी पहचान करने की कोशिश को तो जिस व्यक्ति को विडियो दिखाया उस व्यक्ति ने उस व्यक्ति की पूरी पहचान करणा भाई पिता पूना भाई निवासी अकोदरा बताई एवं उसके मोबाइल नम्बर के पीछे के नम्बर तक भी बिना पूछे बता दिए और उसके घर का रास्ता बताया और बोला की आप इससे बचना यह बहुत खतरनाक हैं, दुर्गाराम एवं कुणाल उसके बताएँ पते पर जाकर गाड़ी रोकी, घर के बाहर खड़ी महिला ने उनकी स्थानीय भाषा में बोला की छोकरों को कहीं छिपा दों, दुर्गाराम एवं कुणाल ने वहां जाकर करणा भाई के बारे में पूछा तो महिला ने बोला की हम इस नाम के किसी आदमी को नहीं जानते, हमने बच्चों के बारे में पूछा तो महिला बोली की यहाँ सिर्फ हमारे बच्चे रहते हैं, तब तक उस महिला ने एक व्यक्ति को आवाज देकर बुलाया तो उस व्यक्ति ने दुर्गाराम एवं कुणाल से बदतमीजी से बात की, दुर्गाराम ने उस बच्चे किशन के बारे में पूछताछ की तो उसने इन्हें पुलिस वाले समझकर बोला की आपके पास वारंट है क्या करणा भाई एवं बच्चे के बारें में पूछताछ करने का, दुर्गाराम ने बोला की हम सिर्फ किशन से मिलने आए लेकर नहीं जाएंगे, लेकिन उसने बच्चे से मिलाने से साफ मना कर दिया, और बोला की हमारे पास किशन के साथ लाए गये दो बच्चे और हैं, लेकिन उसने दुर्गाराम एवं कुणाल को बच्चों से नही मिलाया, जब यह वापस जाने लगे तब तक उसने कुछ और लोगों को बुला लिया जिनके पास लाठियाँ थी, दुर्गाराम एवं कुणाल लोगों से पुलिस थाने जाने की बोल कर निकले तो तस्कर के लोगों ने लगभग 10 से 15 किलोमीटर तक हथियारों से लैश गाड़ियों से दुर्गाराम एवं कुणाल की गाड़ी का पीछा किया, इनके ऊपर हमला करने की कोशिश की, कई बार इनकी गाडी को ओवरटेक करके रोकने की कोशिश की लेकिन दुर्गाराम एवं कुणाल वहां रुके नही, तब तक दुर्गाराम एवं कुणाल के पास किशन के पिता मिरखा का फोन आया की वो करणा भाई बोल रहा है की मैं तीनो बच्चों को लेकर आ रहा हूँ तुम डेढ़ लाख रूपये तैयार रखों, दुर्गाराम ने आगे जाकर ऐसे और बच्चों की जानकारी जुटाई तो पता चला की इस तरह के कई आदिवासी बच्चे हैं जिनको उनके माता पिता ने गिरवी रख रखा हैं, जिनके साथ गिरवी लेने वाले व्यक्ति बदसलुकिया करते हैं उनके साथ मारपीट करते हैं, काम नहीं करने पर गली गलौच एवं मारपीट की जाती हैं समय पर खाना नहीं दिया जाता हैं, जानवरों जैसा बदतर व्यवहार किया जाता हैं, और इस तरह के बच्चे पैसे नही चूका पाने की एवज में हमेशा के लिए गुलाम या बंधक बनकर रह जाते हैं, शिक्षा तो छोड़ों यह बच्चे दो समय की रोटी के लिए तरस जाते हैं, ऐसे बच्चों से रेवड़ चराने, गाय, भैंस एवं बकरियाँ चरवाते हैं जहाँ बच्चों को जानवरों के पीछे कई कई किलोमीटर तक चलना पड़ता हैं, दुर्गाराम एवं इनके साथी कुणाल ने जांच पड़ताल की तो पता चला की बच्चों के माता पिता को जब और पैसों की जरुरत होती है तो इन बच्चों से मिले बिना ही गिरवी रखे व्यक्ति से ऑनलाइन फोन पर मंगवा लेते हैं, बच्चों को गिरवी रखने के बदले मिली रकम 1500 रूपये महीने के हिसाब से किश्त के रूप में चुकती रहती हैं तब तक बच्चों को वहीं बन्धक बनाकर रखा जाता हैं, दुर्गाराम मुवाल के इस कार्य ने गिरवी रखने वाले व्यक्ति एवं बच्चों के अभिभावकों तक ऐसी हलचल मजा जाने से बच्चों को घर भेजने की प्रकिया शुरू हो गई हैं, दुर्गाराम मुवाल और कुणाल ने अपने स्तर से जानकरी जुटाई तो अन्य तीन बच्चों के नाम सुरेश पिता लसिया गमार एवं दाबू निवासी एवं। रमेश निवासी कोटडा मालूम हुई कुणाल ने बताया की यह बच्चे इस दलदल से बाहर निकल कर स्कूल जाना चाहते है लेकिन इस नरक में धकेलने वाले ही इनके माता पिता हैं तो अब बच्चे क्या करें, इस रेस्क्यू के बाद गुजरात से दुर्गाराम मुवाल और कुणाल चौधरी को दलालों द्वारा दो दिन से बार बार धमकियाँ मिल रही ह
दुर्गाराम मुवाल के इस रेस्क्यू का जब बच्चों के अभिभावकों को पता चला तो अभिभावक अपने बच्चे लेने उस तस्कर के पास गए तो तस्कर ने अभिभावकों की जान से मारने की धमकी दी और बोला कि आपने पुलिस क्यों भेजी, अब आप चारों बच्चों के पूरे डेढ़ लाख चुकाओगे तो ही बच्चे मिलेंगे नहीं तो हम बच्चे नहीं सौंपेंगे और उदयपुर से जिन अधिकारियों ने हमारे घर पर रेढ़ डाली उनको भी नहीं बताओगे, (बच्चों को गिरवी लेने वाले तस्कर दुर्गाराम मुवाल को बड़ा अधिकारी समझकर घबराएं हुए हैं)