आत्मा को जानने और समझने के लिए आगम में कई सूत्र दिए गएःसुकनमुनि

आखिर मेरा क्या कसूर पुस्तक का हुआ विमोचन
उदयपुर। श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ की ओर से सिंधी बाजार स्थित पंचायती नोहरे में श्रमण संघीय प्रवर्तक सुकनमुनि महाराज ने चातुर्मास के अवसर पर प्रातः कालीन धर्म सभा में कहा कि मनुष्य जीव किसी भी आत्मा को नहीं जान सकता और नहीं उसे देख सकता है। आत्मा की केवल अनुभूति ही की जा सकती है। जिस तरह से हमें ठंड लगती है लेकिन उसे हम देख नहीं सकते, केवल महसूस कर सकते हैं। उसी तरह से आत्मा का भी प्रभाव होता है। आत्मा को जानने और समझने के लिए आगम में कई सूत्र दिए गए हैं। जिनके पठन-पाठन से हम आत्मा के बारे में विस्तार से जान सकते हैं। आज एक चौमासा करने के लिए कितने उपक्रम और कितनी  व्यवस्थाएं करनी पड़ती है। लेकिन भगवान महावीर ने जो साधना की, जो चौमासा किया उसमें ना तो कोई साधन थे नहीं कोई व्यवस्था थी।
उप प्रवर्तक अमृतमुनिश्री ने आप किसी के यहां भी भोजन करें कैसा भी भोजन करें लेकिन जो स्वाद माता के भोजन में आता है वह स्वाद आपको और कहीं नहीं मिल सकता। यही तो माता के महान गुणों का प्रभाव होता है।
डॉ.वरुण मुनि ने भगवान महावीर के साधना काल के दौरान उन पर आए विभिन्न संकटो और विघ्नों की चर्चा करते हुए कहा कि जैसे-जैसे परीक्षा की घड़ी आती है वैसे-वैसे विघ्न और संकट और भी बढ़ जाते हैं। इसी तरह भगवान महावीर के साधनकाल के पूर्ण होने की घड़ी निकट आती गई वैसे-वैसे उन पर संकटों को साया और भी गहराता गया। लेकिन सर्वशक्तिमान भगवान महावीर ने उन संकटों की परवाह नहीं की और वह अपने साधना काल में निरंतर आगे बढ़ते रहे।
महामंत्री एडवोकेट रोशनलाल जैन ने बताया कि धर्म सभा में डॉक्टर वरुण मुनि जी द्वारा लिखित उपन्यास आखिर मेरा कसूर क्या ह का सुकुन मुनिश्री संघ के सानिध्य में उपन्यास पुस्तक का मोती बंब हार्दिक हर्षित आरणी तमिलनाडु द्वारा विमोचन किया गया। इसे गुरूजनों को समर्पित किया गया। पुस्तक के बारे में डॉ वरुण मुनि ने कहा कि पुस्तक को लिखने में करीब 2 वर्ष का समय लगा। पुस्तक में एक विवाहित कन्या की कष्टों भरी मार्मिक कहानी है। उस विवाहित कन्या ने अपने जीवन में कई कष्ट झेलते हुए भी अपने पुरुषार्थ को नहीं छोड़ा। इस पुस्तक में कोरोना काल की महत्वपूर्ण घटनाओं का भी विवरण समाहित है।
डॉ वरुण मुनि ने अपने प्रथम उपन्यास के विमोचन के अवसर पर कहा कि साहित्य के प्रति मेरा झुकाव दीक्षा ग्रहण करने से पूर्व से ही रहा है। मेरे गुरुदेव अमृत मुनि महाराज की प्रेरणा के फलस्वरूप ही मैंने कलम को अपने हाथ में थामना सीखा है। स्फुट रचनाओं के साथ-साथ यदा कदा पद्य एवं गद्य में कुछ न कुछ नियमित लिखकर के मैं सर्जन की सीढ़ियों पर अपने पाँव धरता रहा हूँ। अनेक उपन्यासों को पढ़ने के बाद मेरे मन में भी अपने भाव, भाषा एवं शैली के आधार पर कुछ नये सर्जन के विचार जागृत होते रहे हैं। कोरोना काल में ऐसी कई हृदय विदारक घटनाएँ सुनने और देखने को मिली, जिससे मेरा तन-मन हिल गया। उस महामारी में कई परिवार उजड़ गये। बच्चे अनाथ हो गये। माताएँ विधवा हो गईं। कोरोना काल की उन वास्तविक घटनाओं को शब्दों का सेतु बनाकर मैंने अपने मन-मानस में सँजोया। उन्हें संजोकर के ही इस उपन्यास का धरातल तैयार किया। एक नारी को अपने जीवन में क्या-क्या कष्ट झेलने पड़े, उसे मैंने इस कृति में उभारने का प्रयत्न किया है। आखिर मेरा कसूर क्या है ? इन भावों को एक मार्मिक और करुणा से युक्त भावों को इस उपन्यास में प्रकट करने का प्रयत्न किया है। प्रस्तुत उपन्यास में ऐसी ही पढ़ी-लिखी नारी रत्ना के जीवन को उजागर किया है। जिसका समय ने सब कुछ छीन लिया मगर उसने हिम्मत नहीं हारी और अपने जीवन को नए ढंग से जीने की आकांक्षा के साथ समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया। जो विपत्तियों में भी निखरकर सामने आयी है। अपना सब कुछ खोकर भी वह कभी निराश नहीं हुई और वह समाज के लिए उदाहरण बन गई। उपन्यास लेखन में ये मेरा प्रथम प्रयास है। मेरे जीवन का एक ही उद्देश्य है कि पाखंड के अंधकार से निकलकर समाज को नई रोशनी देना। आडंबर के अड्डों से बाहर निकलकर धर्म की ध्वजा को जीवन में लहराना है। आखिर मेरा कसूर क्या है? यह मेरे लक्ष्य पर पहुँचने की प्रथम सीढ़ी है।
श्री संघ के पदाधिकारियों द्वारा श्रीमान विमोचन कर्ता मोती बंब का स्वागत किया गया और इस अवसर शंकरलाल डांगी, नंदलाल सेठिया, लक्ष्मीलाल वीरवाल, राजेंद्र खोखावत, बालचंद गन्ना, ललित चौधरी, जीवन सिंह सिरोया, मीठालाल हरकावत, प्रकाश सियाल, दिनेश हिंगड़ तथा श्राविका अध्यक्ष मंजू सिरोया नीतू बंब पर आदि गुरुभक्त उपस्थित थे।

By Udaipurviews

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