राजस्व संबंधी दस्तावेजों पर बिखरी धूल, बारिश ने तहसील के रिकॉर्ड को धोया

-राजस्व रिकॉर्ड के अवैध खेल को खत्म करने की साजिश तो नहीं?
डूंगरपुर, 14 जुलाई.  डूंगरपुर तहसील कार्यालय में बेशकीमती राजस्व दस्तावेजों के नष्ट होने का मामला अब सामान्य लापरवाही से कहीं ज्यादा गहराता नजर आ रहा है। आरोप यह भी लग रहे हैं कि यह महज एक संयोग नहीं, बल्कि पूर्व में रिकॉर्ड से जुड़े अवैध कार्यों को मिटाने की साजिश हो सकती है। मामला तहसील प्रशासन की कार्यशैली, जवाबदेही और पारदर्शिता को कटघरे में खड़ा कर रहा है।

पिछले सप्ताह बारिश के दौरान तहसील कार्यालय परिसर के पीछे खुले में पड़े सैकड़ों दस्तावेज बारिश में पूरी तरह भीग गए। इनमें भूमि समर्पण प्रपत्र, मूल निवास प्रमाण पत्र, बीपीएल आवेदन फॉर्म, मतदाता सूची की प्रतियां और राजस्व खसरे जैसी मूल श्रेणी के दस्तावेज शामिल थे। जानकारों का कहना है कि ऐसे दस्तावेज भविष्य में प्रमाणिकता के लिए बेहद आवश्यक होते हैं। बावजूद इसके, इन्हें समय रहते सुरक्षित नहीं किया गया।

रातोंरात अंदर छिपाए गए गीले दस्तावेज, शक की नींव यहीं से पड़ी : बारिश के बाद सोमवार सुबह जब दस्तावेज परिसर में बिखरे नजर आए, तब आनन-फानन में तहसील कर्मियों ने इन्हें बिना किसी रसीद या सूचीबद्धता के चुपचाप भीतर रख दिया। सवाल यह उठता है कि यदि मामला केवल लापरवाही का था, तो कर्मचारियों ने मीडिया और जनप्रतिनिधियों की नजर से बचने की कोशिश क्यों की? क्यों नहीं पूरे घटनाक्रम की रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को दी गई?

मतदाता सूची पुनरीक्षण में खुली पोल, नहीं मिली 2002 की वोटर लिस्ट : भारत निर्वाचन आयोग ने वर्ष 2002 की मतदाता सूची के आधार पर सभी राज्यों में विशेष पुनरीक्षण अभियान शुरू किया है। इसी क्रम में डूंगरपुर तहसील में रिकॉर्ड खंगालने का कार्य शुरू हुआ, लेकिन जब 2002 की वोटर लिस्ट ही नहीं मिली, तो अधिकारियों के होश उड़ गए। यहीं से तहसील के रिकॉर्ड की दुर्दशा उजागर होने लगी।

कलेक्टर के आदेश के बाद शुरू हुई खोज : जिला कलेक्टर अंकित कुमार सिंह ने जब पुराने दस्तावेजों की सुध ली, तो तहसीलदार जियाउर्रहमान ने रिकॉर्ड को बाहर निकालने की जिम्मेदारी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को सौंपी। कर्मचारियों ने दस्तावेज निकाल तो लिए, लेकिन उन्हें वापस रिकॉर्ड रूम में जमा नहीं किया। परिणामस्वरूप रविवार व सोमवार की बारिश में पूरा रिकॉर्ड धुल गया। बारिश में बर्बाद हुए दस्तावेजों में 2002, 2004 और 2014 की मतदाता सूचियां, बीपीएल के आवेदन पत्र, मूल निवास के दस्तावेज और राजस्व खातों के खसरे शामिल हैं। ये सभी दस्तावेज खुले में उड़ते रहे और पानी में गलते रहे, जिनका अब किसी भी तरह से पुनर्संग्रहण संभव नहीं दिख रहा।

अब सवाल सिर्फ लापरवाही का नहीं, नीयत पर भी उठे सवाल : इस पूरे घटनाक्रम ने सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या तहसील में पूर्व में किए गए रिकॉर्ड फर्जीवाड़े या दस्तावेजी हेराफेरी को मिटाने के लिए यह सब जानबूझकर किया गया? क्यों इतने संवेदनशील दस्तावेजों को सुरक्षित नहीं रखा गया? आखिर क्यों नहीं जिम्मेदार अधिकारियों पर अब तक कोई कार्रवाई हुई?

इस संबंध में जब तहसीलदार जियाउर्रहमान से बात  कि गई तो उन्हें बताया कि, यह रिकॉर्ड निर्वाचन विभाग के लिए एसईआर विभाग के लिए खंगाला जा रहा था। सभी दस्तावजे सुरक्षित है। अगर ऐसा हुआ है तो पीओन की गलती हो गया होगा।

By Udaipurviews

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