बांसवाड़ा, 19 जून। वर्तमान समय में विश्व भर में कई बोलियां और भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं। लगभग पचास लाख लोगों द्वारा बोली जाने वाली वागड़ी भी इससे अछूती नहीं रही। इसके संवर्धन और परिमार्जन के लिए जिले के गढ़ी कस्बे में वागड़ी की नवोन्मेष कार्यशाला संपन्न हुई। इस कार्यशाला में गत दशकों से वागड़ी साहित्य लेखन से सतत सक्रिय साहित्यकार उपस्थित हुए।
पूर्णतः अनौपचारिक तथा क्रियात्मक सहभागिता पर आधारित कार्यशाला में पं मयंक मीत की वैदिक ॠचाओं व डाॅ.रेखाश्री की सरस्वती वन्दना के उपरांत संयोजक घनश्याम-प्यासा ने प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कार्यशाला के दोनों सत्रों की रूपरेखा एवं मूल उद्देश्य “भाषाविज्ञान के आधार पर मानक शब्दकोष एवं व्याकरण ग्रन्थ तैयार करना” की जानकारी दी।
नाटककार-रंगकर्मी सतीश आचार्य ने कहा कि लिखा हुआ शब्द कभी मरता नहीं। मंच प्रसिद्धि दे सकता है-स्थायित्व नहीं। आचार्य के संचालन में उपेन्द्र “अणु” ने वागड़ी साहित्य के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हाड़ौती के प्रखर गीतकार प्रेमजी”प्रेम” से प्रेरित हो, डाॅ.ज्योतिपुंज द्वारा छात्र जीवन में स्थानीय कवि सम्मेलनों के माध्यम से वागड़ी आन्दोलन प्रारंभ किया गया । लाखों लोगों की आम बोलचाल की भाषा वागड़ी को भाषा के रूप स्थापित करने के लिए किते गये सतत् प्रयासों के परिणामस्वरूप गद्य की अधिकांश विधाओं में लेखन हुआ है और केन्द्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली के सर्वोच्च पुरस्कार भी प्राप्त हुए किन्तु कालान्तर में वागड़ी बोलने और लिखने में भारी कमी होना अत्यंत चिंताजनक है। सुप्रसिद्ध कहानीकार
दिनेश पंचाल ने कार्यशाला के आयोजन की रूपरेखा और आवश्यकता स्पष्ट करते हुए कहा कि वागड़ी को संरक्षित करने की महती आवश्यकता है । वागड़ी में प्रचुर लेखन होने के उपरांत भी इसमें कारक और विभक्तियों की स्थानीयता जनित विविधताओं के कारण इसमें शब्द साम्य और एकरूपता का अभाव गैर वागड़ी पाठक ही नहीं स्थानीय लोगों के लिए भी जटिल है। इन्ही के निराकरण के लिए कार्यशाला का आयोजन किया गया।
कार्यशाला में वागड़ी लेखन की इन विषमताओंको दूर करने के लिए क्रियात्मक गतिविधियों का आयोजन किया गया। सभी उपस्थित कलमकारों नेअपने अपने तरीके से एक गद्यांश के अनुवाद के माध्यम से विविध क्षेत्रों में प्रचलित शब्दों,कारक, विभक्तियों के सरलीकरण व सामान्यीकरण हेतु मंथन विश्लेषण किया। कार्यशाला में वागड़ के सुदूरवर्ती क्षेत्रों से श्री उपेन्द्र अणु,ॠषभदेव,दिनेश पंचाल, विकासनगर,डॉ रेखा श्री खराड़ी डूंगरपुर,सुरेश सरगम फलौज, मोहनदास वैष्णव बांसवाड़ा,महेश देव भट्ट नन्दौड़,पं मयंक मीत,,सतीश आचार्य बांसवाड़ा,कैलाशगिरि गोस्वामी बोदिया,विजय गिरि गोस्वामी,बोदिया, नरेन्द्रमेहता,डडूका,हेमन्त भट्ट जौलाना, मानसिंह राठौड़, गढ़ी ने शब्द विश्लेषण मंथन में सहभागिता दी, जबकि वरिष्ठ साहित्यकार ड़ाॅ .ज्योतिपुंज, उदयपुर, भोगीलाल पाटीदार, बिछीवाड़ा, भविष्य दत्त भविष्य,ॠषभदेव , रमेशचन्द्र चौबीसा,पुनाली, कार्यशाला में ऑनलाइन सहभागी रहे। आगामी समय में प्रति दो माह के अंतराल में अधिसंख्य कलमकारों को सम्मिलित कर विविध विधाओं पर लेखन के संकल्प के साथ ही कार्यशाला सम्पन्न हुई।