धन का सदुपयोग कर हम दुआएं बटोर सकते हैं, इससे पुण्य का खाता खुल जाता है : महासती विजयलक्ष्मी

उदयपुर, 17 जुलाई। श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी स्थानकवासी जैन श्रावक संस्थान के तत्वावधान में केशवनगर स्थित नवकार भवन में चातुर्मास कर रही महासती विजयलक्ष्मी जी म.सा. ने गुरूवार को धर्मसभा में कहा कि साता वेदनीय एवं शुभ कर्म का उदय होने पर सब प्रकार की साता मिलती है। धर्म की दृष्टि से दो तत्व महत्वपूर्ण हैं-जीव एवं अजीव। मनुष्य जीव से प्रेम कम करता है और अजीव के प्रति राग अधिक रखता है, यदि अजीव का उपयोग हम करें तो कर्मबंधन कम होगा व जीव के प्रति दया करुणा प्रेम भाव आदि सकारात्मक विचार रखें तो कर्म निर्जरा होगी। हमें अपने पैसे का ऐसा उपयोग करना चाहिए कि उससे पुण्यार्जन हो जैसे कि अनाथ को भोजन कराना, रोगियों की सेवा करना, जरूरतमंदों की सहायता करना ये सब धन रूपी अजीव के उपयोग हैं। धन का सदुपयोग कर हम दुआएं बटोर सकते हैं, इससे पुण्य का खाता खुल जाता है व हमारा पुण्य समृद्ध होता चला जाता है। हम अपने विवेक को जगाएं, पाप कर्मों में कमी लाएं और सदैव पुण्य को बढ़ाने वाले कार्य करें। इससे पूर्व महासती सिद्धिश्री जी म.सा. ने अपने प्रवचन में कहा कि जब तक श्रद्धा की नींव मजबूत नहीं होगी तब तक मोक्ष महल खड़ा होने वाला नहीं है। श्रीसंघ अध्यक्ष इंदर सिंह मेहता ने बताया कि आगामी रविवार 20 जुलाई को महासती जी की निश्रा में नवकार भवन में एकासन व्रत आराधना एवं तीन सामायिक का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन हेतु कई श्रावक-श्राविकाओं ने अपने नाम सूचीबद्ध करा लिए है। अधिक से अधिक धर्माराधना एवं तपाराधना हो यही श्रीसंघ का लक्ष्य है। वहीं प्रतिदिन प्रवचन आधारित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन भी किया जा रहा है, जिससे जिज्ञासु समाधान भी प्राप्त कर रहे हैं।

जीवन का सदुपयोग किया जाए तो अपने कर्मों के आधार पर स्वर्ग के द्वार भी खुल सकते हैं : जिनेन्द्र मुनि
उदयपुर, 17 जुलाई। श्री वर्धमान गुरू पुष्कर ध्यान केन्द्र के तत्वावधान में दूधिया गणेश जी स्थित स्थानक में चातुर्मास कर रहे महाश्रमण काव्यतीर्थ श्री जिनेन्द्र मुनि जी म.सा. ने गुरूवार को धर्मसभा में कहा कि मनुष्य जीवन अत्यंत अनमोल है। यदि इस जीवन का सही दिशा में सदुपयोग किया जाए, तो अपने कर्मों के आधार पर स्वर्ग के द्वार भी खुल सकते हैं। मानव जीवन एक अवसर की दुकान है। केवल शरीर रूपी दुकान को सजाना पर्याप्त नहीं है, उसमें ‘गुणों’ का माल भी होना चाहिए, तभी ग्राहकों की भीड़ लगेगी और जीवन की असली कमाई संभव होगी। त्याग, तप, तपस्या, जप, सेवा और समर्पण जैसे गुणों से इंसान की कीमत बढ़ती है। केवल खाना-पीना और घूमना-फिरना ही जीवन का लक्ष्य नहीं, बल्कि सेवा, परोपकार, राष्ट्रभक्ति और प्राणीमात्र के प्रति मैत्री भाव ही सच्चा जीवन है। यह गुण सत्संग और गुरुभक्ति से विकसित होते हैं। प्रवीण मुनि जी ने कहा कि संगठन में शक्ति होती है। एक अकेली लकड़ी को कोई भी तोड़ सकता है, लेकिन लकड़ियों की गठरी को कोई नहीं तोड़ सकता। मेवाड़ गौरव पूज्य श्री रविंद्र मुनि जी ने फरमाया कि व्यापारी को व्यापार करते समय लेखा-जोखा सही और पारदर्शी रखना चाहिए, यही उसकी असली पहचान है। जीवन में गुण और अवगुण का मूल्यांकन करें, अवगुणों को छोड़कर गुणों का संवर्धन करें, यही मानव जीवन की सार्थकता है।
पुष्कर ध्यान केंद्र के अध्यक्ष निर्मल पोखरना ने बताया कि सुश्राविका सुशीला तलेसरा ने 8 उपवास किए। उनके स्वागत में 5 उपवास से श्रीमती आशा मेहता द्वारा तथा अन्य तपस्वियों द्वारा अभिनंदन किया गया। प्रत्येक दिन बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। पूज्य मुनिश्री के प्रेरणादायी प्रवचनों एवं ध्यान-साधना के कारण अनेक श्रावक-श्राविकाएं सतत रूप से जुड़ रहे हैं। यह केंद्र अब केवल एक साधना स्थल नहीं, बल्कि आत्म जागृति और सामाजिक समरसता का तीर्थ बनता जा रहा है। मंच का संचालन संदीप बोलिया ने किया।

By Udaipurviews

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