जल ही हमारा जीवन,जिविका और जमीर- डॉ राजेन्द्र सिंह

विद्यापीठ की मेजबानी में देश के दूसरे विश्व जल सम्मेलन का हुआ आगाज
विश्व के छहों महाद्वीपों के प्रतिनिधि भाग लेने पहुंचे उदयपुर

उदयपुर 20 नवम्बर। भारतीय ज्ञानतंत्र की लंबी गहरी विरासत  और सामुदायिक विकेन्द्रित प्रबंधन से ही इन प्राकृतिक आपदाओं से मुक्ति मिल सकती है। इतनी प्रतिकुल परिस्थितियों में भी भारत अपने ज्ञानतंत्र और संमृद्व प्राकृतिक परंपराओं के कारण ही आज विश्व में अपनी जगह पर अडिग खड़ा है। भारतीयों के लिए जल मात्र प्राकृतिक पदार्थ न हो कर जीवन,जिविका और जमीर है। भरतीयों के लिए प्रकृति ही भगवान है। पंचमहाभूतों ,प्रकृति तथा आत्मा के संतुलन  में आने पर ही संकटों का समाधान मिल सकता है। प्रकृति ही ईश्वर का रूप है जिसमें पंचमहाभूतों का समावेश है। जिनके द्वारा ही मानव के सतत विकास की कल्पना साकार हो पाई है किन्तु मानव स्वयं ये भूल बैठा है कि इन पंचमहाभूतों के असंतुलन से न केवल प्रकृति का विकास अवरूद्व हो रहा है अपितु स्वयं मानव जाति के अस्तित्व पर संकट गहरा रहा हैं। ये संकट कभी अनावृष्टि तो कभी अतिवृष्टि का रूप ले कर तो कही ग्लोबल वार्मिंग और मौसम परिर्वतन के रूप में विश्व के अलग अलग स्थानों पर प्रकट हो रहा है ।
उक्त विचार जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं विश्व जन आयोग स्वीडन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित  दूसरे तीन दिवसीय विश्व जल सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मैग्सेसे पुरस्कार विजेता पानी वाले बाबा डॉ राजेंद्र सिंह ने ’’डीफेन्डींग द सेकरेड फोर ससटेनेबल डवलपमेंट ऑफ नेचर एंड हयूमनकाइन्ड’’ विषयक पर कही।

कुलपति प्रो. एस. एस. सारंदेवोत ने  कहा कि ये भारत में दूसरा मौका है जब कि जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विश्वविद्यालय एवं विश्व जन आयोग स्वीडन के साझे में विश्व जल सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। विश्व जल सम्मेलन के आयोजन और इसके उददेश्यों के बारे में जानकारी देते हुआ कहा कि प्रकृति और मानव जाति के सतत विकास की रक्षा की संभावनाओं तथा उससे जुडे़ मुददे आज के समय की मांग है। इनके वकास को सुरक्षित रख कर न केवल हम हमारे अस्तीत्व को बनाए रख सकते है बल्कि ये प्रयास समस्त मानव जाति और प्रकृति दोनों के विकास को सुनिश्चिित करने की दिशा में अहम कदम साबित होगा। इसके लिए हमें हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा से जुड़ना होगा । प्रो. सारंगदेवोत गत वर्ष हुए प्रथम विश्व जल सम्मेलन के पश्चात हुए कार्यों तथा ’’उदयपुर घोषणा पत्र’’ और इसके द्वारा प्राप्त हुए उददेश्यों के साथ साथ पूर्ण हुए कार्यों पर रोशनी डाली।

मुख्य वक्ता प्रेम निवास शर्मा  पूर्व एफएओ ने अपने संबोधन में कहा कि आज भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व मौसम के आ रहे असामान्य बदलावों के साथ साथ पृथ्वी के तापमान में हो बढ़ोतरी जैसे पर्यावरणीय मुददों से दो चार हो रहा है। ये बदलाव यूं ही अचानक नहीं आ गए। ये हम सभी के द्वारा प्रकृति अनदेखी और अवहेलना का परिणाम है। मानव ने विकास के नाम पर प्रकृति के संतुलन को हिला के रख दिया है। शर्मा ने कोप 27 के ग्लोबल वार्मिग से जुड़े तथ्यों के बारे में बताते हुए संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 28 के संदर्भ में ग्लोबल वार्मिंग और ग्रीन हाउस गैसों के बारे में बोलते हुए वैश्विक तापमान को सीमित करने और जलवायु परिवर्तन से जुड़े प्रभावों को बढ़ावा देने के उददेश्य के बारे में चर्चा की।
यूनेस्को के पूर्व निदेशक रामभूज ने जलवायु परिवर्तन के संकटकाल में शिक्षा की वैश्विक भूमिका पर विचार साझा करते हुए कहा कि वर्तमान शिक्षाप्रणाली में भारतीय तथा स्थानीय ज्ञान तंत्र के सम्मिश्रण से ही वर्तमान पीढ़ी तथा युवाओं को प्रकृति प्रेम के साथ साथ उसके संरक्षण और संवर्धन के मार्ग से जोड़ा जा सकता है। हम सभी को इस दिशा में विद्यालयों और उच्च शिक्षा के साथ साथ परिवार तथा समाज के स्तर पर भी इस दिशा में प्रयास करने होंगे।

मुख्य अतिथि और नमामी गंगे के प्रबंध निदेशक अशोक कुमार ने बताया कि मानव का विकास प्रकृति के साथ पूरक स्थिति में है। मानव विकास की साक्षी रही हर सभ्यता नदी के किनारों पर ही फलीफूली है। प्रकृति और मानव विकास की कल्पना जल के बिना संभव ही नहीं है। वर्तमान और भावी विकास दोनों ही स्थितियों में  भूमि के सतह पर बहने वाला जल हो या भूगर्भीेय जल दोनों को सहेजने और भविष्य के लिए इसकी उपलब्धता बनाए रखने के लिए गंभीर प्रयासों की दरकार है।

कार्यक्रम की और तरूण भारत संघ की उपाध्यक्ष इंदिरा खुराना ने विश्व जलसम्मेलन के भावी मुददों पर विचार साझा करते हुए इसकी संभावनाओं और समाधानों की बात कही। विशिष्ट अतिथि पद्मश्री श्यामसुंदर पालीवाल ने भी संबोधित किया तथा पर्यावरण तथा इससे जुड़े मुददों और सतत विकास के बारे में विचार वयक्त किए। वेस्ट अफ्रीका के रिपब्लिक ऑफ बेनिन के राजा दारा सलीम ने वहां की प्राकृतिक परिस्थितियों पानी की कमी और अनाज की स्थितियों के साथ स्थानीय ज्ञान परंपरा के बारे में विचार व्यक्त किए। यूएस से सम्मेलन में भाग लेने आए तीर्थ बचाओ अभियान के समन्वयक ग्रेब्रियल मेयर ने प्रकृति और तीर्थों को समर्पिम गीत से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

कार्यक्रम में डॉ राजेंद्र सिंह द्वारा लिखित, कुलपति प्रो.एस.एस.सारंगदेवोत द्वारा संपादित पुस्तक ’’विरासत स्वराज यात्रा’’ का विमोचन अतिथियों द्वारा किया गया।

अंतरराष्ट्रीय कॉफ्रेंस में छहों महाद्वीप से आए प्रतिनिधियों , अमरीका, नोर्थ अमेरिका, ऐशिया, युरोप से खासकर उस देशों से जिन देशों में पिछले दो सालों में बाढ़ और सुखे के कारण विनाश हुआ है। इसके अलावा अफ्रीका , अमरीका, नोर्थ अमेरिका, ऐशिया, युरोप, स्वीडन, कनाड़ा, इजिप्ट, पुतर्गाल, लिथूनिया, आस्ट्रेलिया, नेपाल सहित भारत  के महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, लद्वाक, दिल्ली, तमिलनाडु, कर्नाटक , राजस्थान के विभिन्न राज्यों से सौ से अधिक प्रतिभागी भाग ले रहे है।

कार्यक्रम में रजिस्ट्रार डॉ. तरूण श्रीमाली, प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. मंजू मांडोत डॉ. राजन सूद, डॉ. अमीया गोस्वामी, डॉ. युवराज सिंह राठौड़ सहित   डीन डायरेक्टर्स वरिष्ट संकाय सदस्य उपस्थित थे।

धन्यवाद डॉ युवराज सिंह राठौड़ ने ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. यज्ञ आमेटा, डॉ. चित्रा दशोरा ने किया।

By Udaipurviews

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