वैदिक जीवन दर्शन ही वैश्विक पर्यावरण संकट निवारण का एक मात्र उपाय – प्रो. सारंगदेवोत

पर्यावरण जागरण सप्ताह का हुआ आगाज
जल, जंगल, जमीन को बचाने का लिया संकल्प
महाराणा प्रताप एवं प्रकृति एक दूसरे के पूरक – अनंत गणेश त्रिवेदी
जनसहभागिता से ही टाला जा सकता है, पर्यावरण संकट – मंत्री खराड़ी

उदयपुर, 01 जुन /  प्राणी मात्र के लिए पर्यावरण संकट मानव जनित ही है, जिसके लिए हम सभी जिम्मेदार है, जिसे मानव को ही अपनी जागरूकता और निस्वार्थ प्रयासों से संकटमोचन का कार्य प्रकृति सौंदर्य की दिशा में करना होगा। पर्यावरण शुद्धिकरण एवं प्रदूषण को रोकने के लिए देश के विभिन्न वैज्ञानिक विभिन्न दिशा में प्रयासरत और  क्रियाशील,  लेकिन जब तक मानव स्वयं जागरूक और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नहीं होगा तब तक इसका उपचार संभव नहीं है। मानव को वर्तमान संदर्भ में पौधारोपण और प्राकृतिक सौंदर्य की दिशा में संपूर्ण शहर या राज्य की चिंता न कर अपने आस पास के सीमित क्षेत्र को विकसित करने का संकल्प लेकर अपने क्षेत्र में पूर्ण मनोबल से प्रयासरत होकर मानव कल्याण की दिशा में पर्यावरण को शुद्ध परिष्कृत करने का संकल्प लेना आवश्यक है, उक्त विचार शनिवार को विश्व पर्यावरण दिवस पर शांति पीठ संस्थान, जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड टू बी विवि, मोहन लाल सुखाड़िया विवि एवं भूपाल नोबल्स विवि के संयुक्त तत्वावधान में विद्यापीठ के प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में आयोजित पर्यावरण जागरण सप्ताह का शुभारंभ करते हुए राजस्थान सरकार के  जनजाति क्षेत्रीय विकास मंत्री बाबूलाल खराड़ी ने बतौर मुख्य अतिथि कही।
खराड़ी ने कहा कि  उद्योग आदि से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए नवीन तकनीक को अपना कर मानव के निस्वार्थ समर्पण और अनुशासन की सर्वोच्च प्राथमिकता बताई। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का भी संदर्भ देते हुए  कहा कि विकट समस्या के समाधान में जिस प्रकार चीन के साथ युद्ध काल में देश ने एक समय का भोजन त्याग किया, इस प्रकार त्याग बलिदान शौर्य समर्पण की भूमि मेवाड़ को पर्यावरण की दिशा में भी संकल्पित कदम आगे बढ़ना होगा, तभी जाकर मानव कल्याण की दिशा सुनियोजित होगी

अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. एस.एस. सारंगदेवोत ने कहा कि  मानव सेवा और जीव सेवा जीवन का सर्वोत्तम सारगर्भित ध्येय है, जो वसुधैव कुटुंबकम की संकल्पना को सिद्ध करता है। उन्होंने मंत्री खराड़ी की सादगी और सरलता को सकारात्मक ऊर्जा का परिचायक बताते हुए कहा कि उनके विचार, मन में उमंग उनके आदर्श, समाज में सेवा भाव के लिए प्रेरणा स्वरूप है उन्होंने पर्यावरण जागरूकता के लिए मानवीय गतिविधि का सक्रिय होना अत्यंत आवश्यक बताया तथा हरित क्रांति और हरा भरा राजस्थान की संकल्पना को पुनर्जीवित करने का उत्तरदायित्व समाज का है।  उन्होंने भारतीय ज्ञान परंपरा आर्श ग्रन्थों वेद पुराणों में पर्यावरण सम्बंधित तथ्यों पर विस्तृत विवेचना करते हुए सभी को भारतीय ज्ञान का स्वरूप समझाया तथा कहा की आत्मा और परमात्मा के बीच जो चक्र है उनके अनेक तत्वों को परिलक्षित करना अनिवार्य है, जिस प्रकार अंधकार से प्रकाश की ओर एक से अनेक की संकल्पना पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सृष्टि को बनाने व नष्ट करने में समाज का प्रमुख योगदान है अतः पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अत्यधिक फलदार पौधों का रोपण तथा उन्होंने मत्स्य पुराण में विवेचित पेड़ पौधों के विवरण को भी दृष्टिगोचर किया।  मानव को इसी दिशा में चिंता करते हुए निस्वार्थ भाव से प्रकृति की सेवा का संकल्प लेना होगा।

उन्होंने वाटर हार्वेस्टिंग की चिंता की ओर दृष्टिगोचर करते हुए प्रेरित किया। पर्यावरण की समस्या को निजात पाने के लिए आत्म चिंतन सर्वोपरि है उन्होंने सनातन वैदिक जीवन दर्शन और भारत जैसे राष्ट्र जिसमें वैदिक पद्धति से पर्यावरण संकट दूर करने की मजबूत शक्ति हैं, उसका स्वरूप प्रस्तुत किया और कहा की भारत की वैदिक जीवन दर्शन की प्रासंगिकता विश्व के प्रत्येक देश और नागरिक के लिए संकट मोचन का कार्य करने में सक्षम है।

प्रारंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए संस्थापक अनंग गणेश त्रिवेदी ने जलवायु परिवर्तन को गंभीर वैश्विक समस्या बताते हुए कहा कि महाराणा प्रताप तथा अरावली की प्रकृति आपस में एक दूसरे के पूरक है तथा दोनों ने एक दूसरे की रक्षा की व आश्रय दिया। पर्यावरण समस्या के समाधान के लिए आने वाले समय में एक समग्र कार्य योजना बनाकर उदयपुर की प्रकृति, पर्यावरण एवं अरावली संरक्षण हेतु व्यापक जनसहभागिता से एक विशाल अभियान चलाया जायेगा।

पूर्व कुलपति प्रो. उमाशंकर शर्मा ने मेवाड़ की पर्यावरण विरासत को बचाने तथा पीपल, आम, आंवला, तुलसी आदि के पौधों को अधिकाधिक लगाने पर जोर दिया। साथ ही स्थानीय वातावरण के विपरित प्रभाव डालने वाले कार्नोकोरपश , निलगिरी जैसे  पौधों से परहेज करने का आग्रह किया।

सुखाड़िया विवि के पर्यावरण विभाग प्रमुख डॉ. देवेन्द्र सिंह राठौड़ ने पर्यावरण संरक्षण के वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समझाते ह ुए व्यक्तिगत सामाजिक तथा प्रशासनिक त्रिस्तरीकरण पर विशेषज्ञतापूर्वक सुव्यवस्थित कार्य योजना बनाने पर जोर दिया। स्थानीय गांवो में माईक्रो इनवायरमेंट प्लान बनाने की जरूरत पर बल दिया।

देहात अध्यक्ष चन्द्रगुप्त सिंह चौहान ने पर्यावरण को सबसे महत्वपूर्ण सत्कार्य एवं ईश्वरीय पूजा के समकक्ष बताते हुए कहा कि अधिक से अधिक फलदार पौधें लगाये जिसे रोजगार व प्राकृतिक सौन्दर्यता में भी वृद्धि होगी।

भाजपा के युवा नेता डॉ. जिनेन्द्र शास्त्री ने कहा कि वृक्ष लगाने से हमारे ग्रह, नक्षत्रों में भी सुधार होता है तथा पेड़ों को लगाना अहिंसा है और काटना हिंसा है। वृक्षारोपरण मात्र दिखावा न होकर वास्तविक पौधारोपण के साथ उनका संरक्षण भी सुनिश्चित हो।

सेवा निवृत मुख्य सिंचाई अभियंता जीपी सोनी ने कहा कि उदयपुर शहर का न्यूनतम 40 प्रतिशत भाग हरियाली से आच्छादित होना चाहिए तथा बंजर भूमि का विकास तथा जल संसाधन बढ़ाना सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ आवश्यक है व पर्यावरण संस्कृति को नुकसान पहुंचाने वालों को सख्त दंड देने की आवश्कयता  है।

पूर्व अतिरिक्त मुख्य नगर नियोजक सतीष श्रीमाली ने कहा कि प्रत्येक घर के बाहर न्यूनतम तीन पेड़  लगाना आवश्यक है, व शहर की सिवरेज व नालियों को सुव्यवस्थित करना, शहर में गुलाब बाग जैसे अच्छे उद्यान विकसित करना वर्तमान समय की अतिआवश्यकता है।

इस अवसर पर डॉ. जयश्री, रजिस्ट्रार डॉ. तरूण श्रीमाली, परीक्षा नियंत्रक डॉ. पारस जैन, डॉ. युवराज सिंह राठौड़, डॉ. धमेन्द्र राजौरा, लोक अधिकार के संभाग अध्यक्ष बसंती देवी वैष्णव, उपाध्यक्ष दलपत राज बातरा, जिलाध्यक्ष एडवोकेट तरूणा पुरोहित, घनश्याम लाल पटवा, प्रमोद वर्मा, डॉ. कमल सिंह राठौड़, प्रो. सरोज गर्ग, प्रो. मंजु मांडोत, डॉ. हीना खान, डॉ. नीरू राठौड़, डॉ. अमी राठौड़, डॉ. रचना राठौड़, डॉ. सुनिता मुर्डिया, प्रो. आईजे माथुर, डॉ. एसबी नागर, डॉ. बबीता रसीद, डॉ. लीली जैन,  डॉ. यज्ञ आमेटा, केके कुमावत सहित विद्यापीठ के डीन, डायरेक्टर सहित शहर के गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

संचालन एडवोेकेट भरत कुमावत ने किया जबकि आभार एडवोकेट उमेश शर्मा ने जताया।

By Udaipurviews

Related Posts

error: Content is protected !!