भारत के जल संसाधन: अतीत, वर्तमान और भविष्य पर हुआ मंथन
पंच तत्वों से बना शरीर उनके संरक्षण से ही होगा सुरक्षित – प्रो. सारंगदेवोत
पर्यावरण व जल प्रबंधन के क्षत्र मंे सामुहिक रूप से संकल्पित प्रयास जरूरी – प्रो. पंकज मित्तल
समाज को जागरूक करने का दायित्व शिक्षण संस्थानों का – प्रो. पंकज मित्तल
उदयपुर 22 सितम्बर / 23 करोड़ को आज पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है विभिन्न परिस्थितियों में वॉटर कंजर्वेशन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता जिसकी नितांत आवश्यकता है उक्त विचार रविवार को जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ एवं शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में प्रतापनगर स्थित आईटी सभागार में भारत के जल संसाधन: अतीत, वर्तमान और भविष्य विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन समारोह में भारतीय विश्वविद्यालय संघ नई दिल्ली की महासचिव व शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास
अध्यक्ष प्रो. पंकज मित्तल ने बतौर मुुख्य अतिथि उद्बोधन में कहे। उन्होंने कहा कि आज देश में जल संरक्षण की स्थिति गंभीर होती जा रही है अगर हम सभी ने एक होकर ध्यान नहीं दिया तो निश्चित रूप से अगला विश्व युद्ध जल के लिए होगा। इस क्षेत्र में किया जा रहे प्रयासों के अंतर्गत भारत को एक होकर आगे आना होगा और यह जिम्मेदारी सभी शिक्षण संस्थानों शिक्षा जगत के विद्वानों का महत्वपूर्ण दायित्व है कि वह सभी आगे आकर इसे पूर्ण रूप से सफलतापूर्वक प्रयासों के माध्यम से संकल्पित रूप से सफलता प्राप्त करें। उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण बिंदु साझा करते हुए कहा कि देश में लगभग 33 करोड़ बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में इस भारत देश में आगे बढ़ रहे हैं उन्हें शिक्षित कर जागरूक करने की नितांत आवश्यकता है कि वह भी इस मार्ग पर उन्नत दृष्टिकोण के साथ जल प्रबंधन संरक्षण व प्रकृति प्रेम की दिशा में निरंतर आगे बढ़े यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।
अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. शिवसिंह सारंगदेवोत ने कहा प्रकृति प्रेम संरक्षण से ही पर्यावरण का बचाव संभव है पंचतंत्र से बना शरीर पांच तत्वों के संरक्षण से ही सुरक्षित है। जिसमें जल सर्वाधिक मात्रा में उपस्थित है जिसका संरक्षण व संवर्धन सभी के सामूहिक प्रयासों से करना नितांत आवश्यकता है। उन्होंने 2030 तक एसडीजी (सतत विकास लक्ष्य) को प्राप्त करने की दिशा में आने वाले 6 साल में विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तार से बताया कि सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) या वैश्विक लक्ष्य, संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाए गए उन लक्ष्यों का समूह हैं जिन्हें 2015 में अपनाया गया था. इन लक्ष्यों का मकसद 2030 तक दुनिया को ज्यादा न्यायपूर्ण, समृद्ध, और शांतिपूर्ण बनाना है. इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए, सरकारी, निजी, नागरिक समाज, और सभी लोगों को मिलकर काम करना होगा जिसमे गरीबी और भुखमरी को खत्म करना ,अच्छा स्वास्थ्य और जीवन स्तर सुनिश्चित करना, लैंगिक समानता को बढ़ाना , स्वच्छ जल और स्वच्छता सुनिश्चित करना , सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा सुनिश्चित करना , जलवायु कार्रवाई जेसे विभिन्न ज्वलंत मुद्दों को शामिल किया है। इसमें 17 लक्ष्य और 169 विशेष लक्ष्य शामिल है जिसे हम सभी शिक्षाविदों शिक्षण संस्थानों के माध्यम से महत्वपूर्ण जिम्मेदारी और संकल्पित लक्ष्य के साथ सिद्ध करने होंगे।
पर्यावरण शिक्षा के राष्ट्रीय संयोजक संजय स्वामी ने कहा कि पर्यावरण संकट के समाधान के लिए हमें तात्कालीन उपाय करने होगे जिसमें पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वालों पर कानूनी प्रावधान, यूज एवं थ्रो वाले प्लास्टिक व थर्मोकोल पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना होगा। इसके लिए समाज में जन आंदोलन खड़ा करना होगा। आम जन को अपने जीवन में बदलाव लाना होगा और स्वयं को तथा समाज को जागरूक करना की दिशा में बढना होगा।
दो दिवसीय कार्यशाला की जानकारी देते हुए डाॅ. गायत्री स्वर्णकार ने बताया कि कार्यशाला में राजस्थान, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, गुजराज, पंजाब, मध्यप्रदेश सहित 19 राज्यों के 170 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया। जिसमें विभिन्न तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर डाॅ. दुर्गाप्रसाद अग्रवाल, डाॅ. सुबोध बिश्नाई, डाॅ. युवराज सिंह राठौड़ ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
संयोजन डाॅ. सुबोध बिश्नोई ने किया जबकि आभार डाॅ. युवराज सिंह राठौड़ ने जताया।
कार्यशाला प्रो. चंद्रशेखर कच्छावा , प्रोे. सुरेन्द्र सिंह , डाॅ. ज्येन्द्र जाधव, डाॅ. सुबोध विश्नोई, डाॅ. गायत्री स्वर्णकार, डाॅ. चन्द्रप्रकाश , रजिस्ट्रार डाॅ. तरूण श्रीमाली, डाॅ. पारस जैन, डाॅ. युवराज सिंह राठौड़, डाॅ. बलिदान जैन, डाॅ. अमी राठौड, डाॅ. रचना राठौड़, डाॅ. सुनिता मुर्डिया, सहित देश भर के पर्यावरणविद्, शोधार्थी एवं विद्यार्थियांे ने भाग लिया।