उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी कृतार्थ प्रभा श्रीजी ने कहा कि किसी पर क्रोध नही करना है। जिस समय क्रोध आये उस समय वहां से निकल जाना है। क्रोध का परिवार कषाय लोभ, मोह, माया है। राग द्वेष भी इसी में शामिल है। क्रोध की मां उपेक्षा होती है। अगर किसी ने आपका कहना नही माना, उपेक्षा की तो क्रोध आना स्वाभाविक है। अपने अभिमान को चोट को हम उपेक्षा मान लेते हैं। क्रोधी का अगर क्रोध बढ़ गया तो हिंसा को जन्म देता है। इससे नफरत पैदा हुई। आना जाना बंद, बात करना बंद। क्रोध के दो बेटे वैर और विरोध। वैर तो मन में पाल लिया और जहां जाएगा वहां विरोध करेगा। क्रोध की बेटी निंदा है।
उन्होंने कहा कि क्रोध अगर अंदर आया तो वो जहर है। जलकर बहुत मरते हैं लेकिन क्रोध की वजह से कितने मरे इसका किसी को अंदाजा नहीं। अगर मां क्रोध में बच्चे को दूध पिलाती है तो उसका असर उस पर भी आता है क्योंकि क्रोध में मां ने उसे दूध पिला दिया। उसने क्रोध को पी लिया और वही क्रोध जहर बन गया। घर में किसी ने आपकी बात नही मानी तो क्रोध आता ही है। समकित की यात्रा में इसका निषेध किया गया है। यात्रा अटक जाएगी।
साध्वी श्रीजी ने कहा कि क्रोध आते ही नवकार मंत्र का जप करो। सौ तक कि गिनती शुरू कर दो ताकि वह ठंडा हो जाये अन्यथा वह बहुत परेशान करेगा। बीमारी का घर क्रोध है। शरीर के साथ आत्मा को भी नुकसान है। किसी भी हाल में हूँ, क्रोध बिल्कुल नही करना है। क्रोध 4 तरह के होते हैं। जिनके 4 भेद होते हैं यानी कुल 16 तर्क से क्रोध है लेकिन एक अन्य तरह का। शीघ्र और तीव्र कषाय। जल्दी आता है और तुरन्त जल्दी चला जाता है। इन पर आपकी गति निर्भर करेगी।
क्रोध का परिवार है कषाय लोभ, मोह, मायाःकृतार्थप्रभाश्री
