उदयपुर। श्री जैन श्वेताम्बर वासुपूज्य महाराज मन्दिर का ट्रस्ट की ओर से सुरजपोल बाहर स्थित दादाबाड़़ी में आयोजित धर्मसभा में साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि परम् आत्मा जो चिर स्थान पर पहुंच गई वही परमात्मा है। उद्देश्य यही है कि हर आत्मा परमात्मा बन जायें। जिसने जितना सब कीच पाया, वो सिर्फ परम आत्मा ही कर सकती है। हम परमात्मा के वंशज, अंशज हैं। कोई भी सेठ यह नही चाहता कि जो मेरे यहां काम कर रहा है वो मेरे साथ कुर्सी पर बैठें, लेकिन जो परम् आत्मा है, वही यह चाह सकती है।
साध्वी विरलप्रभाश्री ने कहा कि इसीलिए परमात्मा ने करुणा भाव से देशना दी। वे मालकोस राग में अर्ध माद्री भाषा में देशना देते थे। उनकी भाषा हर किसी के प्राणी, पक्षी, पशु सब के समझ में आ जाती थी। उनकी एक जैसी वाणी एक योजन यानी करीब 12-13 किमी तक जाती थी। वहां तक न कोई बीमार पड़ता था, न कोई आपदा आती थी। हर किसी को शासन का रसिक बनाने की इच्छा थी, अगर सुनकर बदलाव आया तो वो दिन आपका सफल हो जाएगा।
साध्वी विपुल प्रभा श्रीजी ने कहा कि आज अगर किसी के पास करोड़ रुपये का जाए तो सामने वाले कि इच्छा होती है कि इसके करोड़ रुपये वापस चले जाएं लेकिन परमात्मा की इच्छा रहती थी कि सबके पास करोड़ रुपये आ जाए, भले ही मेरे पास न हो। पड़ोसी दीक्षा ले तो बढ़िया लेकिन अपने घर में अगर कोई दीक्षा ले तो उसे समझाने, पंचायत करने सब पहुंच जाएंगे। संसार की कोई वस्तु आपको भव पार करने वाली नही है। चिंतन कोई नही करता जो सुनने आते हैं। कई तो इसीलिये सुनने ही नही आते। व्याख्यान सुनने, मंदिर आने के लिए कहो तो दूर भागते हैं और वहीं फ़िल्म दिखाने को कहो तो सब तैयार रहते हैं। अपेक्षा रखना बंद करना होगा तभी सफल रहेंगे। मिला तो ठीक, नही मिला तो भी ठीक। साध्वी कृतार्थ प्रभा श्री जी ने गीत प्रस्तुत किया।
चिर स्थान पर पंहुचने वाली परम आत्मा की परमात्माः विरलप्रभाश्री
