आहार लेना आत्मा का मूल स्वभाव नहीं है : जैनाचार्य रत्नसेन सूरीश्वर

हिरण मगरी सेक्टर नं. 3 जिनालय में हो रहे विविध आयोजन
उदयपुर, 17 जून। श्री शांतिनाथ जैन संघ हिरण मगरी सेक्टर 3  उदयपुर के महावीर भवन में जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज की निश्रा में कई आयोजन सम्पन्न हो रहे है। कोषाध्यक्ष राजेश जावरिया ने बताया कि जैनाचार्य श्रीमद् विजय रत्नसेन सूरीश्वर महाराज ने आयोजित धर्मसभा में प्रवचन देते हुए कहा कि दुनिया में कुछ लोग जीवन जीने के लिए भोजन करते है, तो कुछ लोग भोजन करने के लिए ही जीवन जीते है। आहार का संबंध आत्मा के साथ अनादि काल से है। प्रत्येक जन्म में उत्पत्ति के साथ ही आत्मा आहार के पुद्गलों को ग्रहण करके शरीर, इन्द्रिय आदि का निर्माण करती है।. परंतु यह आत्मा का मूल स्वभाव नहीं है, बल्कि विभाव दशा, विकृति है। आत्मा का मूल स्वभाव अणाहारी है। आत्मा की अनाहारी अवस्था मात्र मोक्ष में ही है। जब तक आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है तब तक प्रत्येक जन्म में आत्मा को आहार और शरीर के साथ संबंध जोड़ना ही पड़ता है। देवों को भी दुर्लभ ऐसा मनुष्य जन्म प्राप्त करके मात्र इस जीवन के लिए नहीं बल्कि परलोक और परमलोक की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना है। जो मनुष्य  दिनभर भोजन के ही विचार में रहता है वह मरकर पशु योनि में जन्म लेता है।, पशु जीवन में अधिकांश प्रवृत्ति भोजन की ही होती है। मनुष्य जीवन सद्गति और दुर्गति के लिए जंक्शन के समान है। जैसे जंक्शन पर खड़ा व्यक्ति  किसी भी दिशा में जा सकता है। वैसे ही मनुष्य जीवन से आत्मा देवलोक एवं मोक्ष की दिशा में प्रगति कर सकता है, तो भोग सुखों में आसक्त रहकर नरक और तिर्यंच गति में पतन का मार्ग भी स्वीकार सकती है। आत्मा की सद्गति का उपाय तप, त्याग और संयम है।, अत: आत्मा की प्रगति के लिए हमेशा प्रयत्नशील बनना चाहिए। 18 जून से तीन दिन तक हिरण मगरी सेक्टर न. 4 में स्थिरता रहेगी। प्रातः: 930 बजे प्रेरणादायक प्रवचन होगे। जैन श्रावक समिति अध्यक्ष आनन्दीलाल बम्बोरिया, भूपाल सिंह दलाल, जीवन सिंह कंठालिया, भंवरलाल करणपुरिया  समस्त कार्यकारिणी सदस्य आदि भी उपस्थित रहे।

By Udaipurviews

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