युद्ध की विभीषिका में शान्ति का संदेश भागवत गीता में*
काम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भवः अर्थात् कामना और क्रोध ही युद्ध संघर्ष का मूल
बांसवाड़ा । विश्व के विभिन्न देश परस्पर युद्ध के कागार पर है यह युद्ध मानव इतिहास का एक दुखद हिस्सा रहा है जो भौतिक, सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर विनाश लाता है लेकिन भागवत गीता में आध्यात्मिक दृष्टिकोण से युद्ध को देखने पर हमें इसके गहरे कारणों और समाधानों का एक नया दृष्टिकोण मिलता है। आध्यात्मिकता हमें सिखाती है कि युद्ध केवल बाहरी संघर्ष नहीं बल्कि मानव मन की आंतरिक अशांति और अज्ञानता का परिणाम है। उक्त विचार सुभाष नगर प्रोफेसर कॉलोनी स्थित इस्कॉन केन्द्र बांसवाड़ा में एक धार्मिक समारोह में आचार्य अभय गौरांग दास प्रभु ने प्रवचन में कहे।
उन्होंने बताया कि भागवत गीता ज्ञान कर्म योग से जीना सिखाती हैं फल तो कर्म के आधार पर तय है किन्तु वर्तमान समय में आध्यात्मिक दृष्टि से युद्ध का मूल कारण मानव का अपने सच्चे स्वरूप जो प्रेम, करुणा और एकता पर आधारित है से विमुख होकर अहंकारी विचलन है।
उन्होने कहा कि जब व्यक्ति या समूह अहंकार, लोभ, घृणा और भय जैसे नकारात्मक भावों में फंस जाते हैं तो यह बाहरी संघर्ष के रूप में प्रकट होता है यही युद्ध है भगवद्गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि भगवान् योगेश्वर श्री श्रीकृष्ण ने काम एष क्रोध एष रजोगुण समुद्भवः अर्थात् कामना और क्रोध ही संघर्ष का मूल कारण बताया हैं। आध्यात्मिकता हमें यह भी सिखाती है कि प्रत्येक व्यक्ति के भीतर एक दैवीय चेतना है यदि हम इस चेतना को जागृत करें तो युद्ध की आवश्यकता ही समाप्त हो जाएगी।
करुणा और प्रेम सेवा समर्पण का आधार – इस्कॉन : इस अवसर पर आचार्य अभिनंदन निमाई प्रभु ने धार्मिक समारोह में प्रवचन में कहा कि ध्यान, प्रार्थना और आत्म-चिंतन जैसे अभ्यास मन को शांत करते हैं और हमें दूसरों के प्रति सहानुभूति विकसित करने में मदद करते हैं।
उन्होंने भक्त और भगवान योगेश्वर श्री कृष्ण भावनामृत भक्ति का मूल आधार विश्व शांति की शुरुआत व्यक्तिगत शांति से होती है जब हम स्वयं के भीतर शांति स्थापित करते हैं तो यह समाज और विश्व में फैलती है।
विश्व शान्ति जीवन का मूल आधार : युद्ध के आध्यात्मिक समाधान में हमें एक-दूसरे को विरोधी के रूप में देखने के बजाय एक ही चेतना के अंश के रूप में देखना होगा। विश्व के सभी धर्म इस एकता के सिद्धांत को स्वीकार करते हैं
चाहे वह वेदांत का सर्वं विश्वमयं हो या बौद्ध धर्म का करुणा और प्रेम।
चाहे वह वेदांत का सर्वं विश्वमयं हो या बौद्ध धर्म का करुणा और प्रेम।
युद्ध को समाप्त करने के लिए हमें शिक्षा, संवाद और प्रेम के माध्यम से मानवता को जोड़ना होगा।
अंत में, युद्ध केवल तलवारों या हथियारों से नहीं, बल्कि मन की शुद्धता, प्रेम और समझ के साथ जीता जा सकता है।
भागवत गीता की आध्यात्मिकता हमें सिखाती है कि सच्ची जीत वह है जो हृदय को जीते न कि भूमि को। विश्व शांति का मार्ग हमारे भीतर से शुरू होना चाहिए ।
इस अवसर पर समारोह में विश्व आत्मा दास,नीरज पाठक, रचना व्यास, अजय,रौनक,कुशल डिम्पल,सुनील,सुरेश नैमिष निखिल,कृपाली भट्ट,हिमानी पाठक,अर्शी भट्ट, मानस पंड्या, शाबुनी मंडल, ओएंड्रिला मंडल, खुशी त्रिवेदी,मीना कुंवर राव , रतन मईडा , शीला जोशी, कांता रावल ,चंद्रकांता वैष्णव ,किशोर पंड्या , अरुण , कल्प भट्ट हिमानी पाठक अचिंत्य दृष्टि, सहित कई साधक साधिकाओं श्रद्धालुओं ने संकीर्तन भजन किया ।
विमान दुर्घटना में दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि
अन्त में अहमदाबाद प्लेन दुर्घटना में मृतात्माओं को भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्ति, शांति के लिए और उनके परिवारजनों को इस असीम दुःख को सहन करने की शक्ति प्रदान करने हेतु इस्कॉन केंद्र पर विशेष आरती और हरिनाम संकीर्तन के माध्यम से दिवंगत आत्माओं को श्रद्धांजलि अर्पित की गई और हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे का जप किया गया।