प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा में संस्कृत ग्रंथ महत्वपूर्ण स्रोत – प्रोफेसर वाघेला 

‘प्राचीन भारतीय इतिहास में ज्ञान परंपरा’ विषय पर सेमिनार सम्पन्न 
-राकेश शर्मा राजदीप
उदयपुर, 08 अप्रैल। प्राचीन भारतीय इतिहास में ऐसे कई स्रोत हैं, जो मजबूती के साथ पैरवी करते हैं कि हम प्राचीन भारत में ज्ञान परंपरा में अग्रणी रहे हैं।
यह बात अहमदाबाद के गुजरात विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अरुण वाघेला ने यहां जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय के संघटक श्रमजीवी कॉलेज के इतिहास एवं संस्कृति विभाग, सामाजिक एवं मानवीकी संकाय में आयोजित संगोष्ठी में कही। ‘प्राचीन भारतीय इतिहास में ज्ञान परंपरा’ विषय पर आयोजित इस गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने कहा कि प्राचीन समय में काल गणना के लिए हमारे पास 200 कैलेंडर थे, अनेक संवत थे, तिथियां निश्चित थीं। दसवीं शताब्दी में कल्हण द्वारा रचित ‘राजतरंगिणी’ इतिहास एवं प्राचीन ज्ञान की जानकारी का महत्वपूर्ण स्रोत है।
उन्होंने कहा कि यूरोपीयन इतिहासकार यही मानते रहे हैं कि संस्कृत केवल मंत्र जाप वाली भाषा है, किन्तु संस्कृत ऐसी समृद्ध भाषा है, जिसमें राजनीति, समाज, सेना, धर्म एवं प्रशासनिक विषयों से सम्बन्धित गूढ़ जानकारियां मिलती हैं। इस बात को अब सारी दुनिया जान चुकी है। भारतीयों में भारतीयता लाने के लिए उन ज्ञान परंपराओं का अध्ययन करना एवं उन्हें स्वीकार करना अत्यंत आवश्यक है।
कार्यक्रम में अकादमिक निदेशक एवं विभागाध्यक्ष डॉ हेमेंद्र चौधरी ने यूरोपीय दासता के वातावरण में लिखे गए इतिहास पर टिप्पणी करते हुए कहा कि उस दौर में लिखे इतिहास का पुनः अध्ययन करके साहित्य के साथ पुराणों, उपनिषद, संहिताओं, प्राकृत, जैन ग्रंथ एवं संस्कृत साहित्य का शोध कर हमारी सभ्यता एवं संस्कृति को स्थापित करना आवश्यक है। इतिहास पढ़ने के तीन तरीकों, प्राचीन भारत, मध्यकालीन भारत और आधुनिक भारत, को बदलना बेहद आवश्यक है।
प्राचीन भारतीय इतिहास में ज्ञान परंपरा विषय की जानकारी के लिए साहित्यिक स्रोतों पर जोर देते हुए प्रोफेसर मलय पानेरी ने कहा कि पद्य रूप में लिखा गया इतिहास जैसे रासो साहित्य आदि ऐसे स्रोत हैं जिन्होंने देश की संस्कृति को हमेशा गौरवमय रखा है। कार्यक्रम में कुल सचिव डॉ धर्मेंद्र राजोरा ने आभार ज्ञापित किया और कार्यक्रम का संचालन डॉ ममता पूर्बिया ने किया।
By Udaipurviews

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