उदयपुर, 30 जुलाई। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलगुरू डॉ. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि देश बदल रहा है, ऐसे में नीतियों और हमारी सोच को भी बदलने का वक्त है। नवाचार की जरूरत महसूस की जा रही है, पुराने ढर्रे पर चलने का वक्त जा चुका है। यदि हमने इस सत्य को आत्मसात नहीं किया तो हमारी हालत भी अवधिपार नामचीन फोन और कैमरा कम्पनियों की मानिंद हो जाएगी जो नवाचार से दूरी बनाने के कारण चलन से ही बाहर हो गए।
डॉ. कर्नाटक बुधवार को यहां प्रसार शिक्षा निदेशालय सभागार में आयोजित 15 दिवसीय सिलाई एवं कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे। निदेशालय एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो की ओर से अनुसूचित जाति उपयोजना अन्तर्गत जीविकोपार्जन के ध्येय से आयोजित इस प्रशिक्षण में उदयपुर एवं सलूम्बर जिलों के दूरदराज गांवों की 30 महिलाओं ने भाग लिया। प्रतिभागी महिलाओं को प्रमाण-पत्र व अत्याधुनिक विद्युत चलित सिलाई मशीन सहित अन्य साज-सामान का किट निःशुल्क प्रदान किया गया ताकि वे अपने गांव जाकर स्वरोजगार की दिशा में कदम रख सके।
डॉ. कर्नाटक ने कहा कि अब तक हम लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति का अनुसरण करते आ रहे थे जो हमारे देश की पद्धति नहीं थी। वर्ष 1835 में बनी मैकाले शिक्षा पद्धति निःसंदेह समय के उस दौर में सार्थक रही है, लेकिन भारतीय सनातनी परम्परा के परिप्रेक्ष्य में नई शिक्षा नीति की जरूरत महसूस की गई। इस क्रम में अगस्त 2020 में नई शिक्षा नीति का अवतरण हुआ। इस नई शिक्षा नीति में शिक्षा, शोध, प्रसार के साथ-साथ कौशल विकास को भी समाहित किया है। इस नई शिक्षा नीति से 2035 तक यानी 15 वर्ष में देश भर में परिवर्तन दृष्टिगोचर होगा। उन्होंने प्रतिभागी महिलाओं का आह्वान किया कि प्रशिक्षण में प्राप्त ज्ञान थे व्यर्थ न गवाएं, अधिकाधिक महिलाओं को लाभ दें।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. एन.जी. पाटील निदेशक आईसीएआर-एनबीएसएस, नागपुर महाराष्ट्र ने एमपीयूएटी में महज 11 फीसदी स्टॉफ के बावजूद 57 पेटेन्ट हासिल करने को अपूर्व उपलब्धि बताया। उन्होने महिलाओं से कहा कि सिलाई कौशल का पहला प्रयोग अपने बच्चों व परिवार के लिए करें। महिला सशक्त होगी तो परिवार और देश भी सशक्त होगा। प्रशिक्षण का मकसद भी यही है कि महिलाएं आर्थिक उन्नति कर आत्मनिर्भर बन सकें।
कार्यक्रम में आईसीएआर-एनबीएसएस, उदयपुर इकाई प्रभारी डॉ. बी.एल. मीणा, सीनियर साइंटिस्ट एवं प्रशिक्षण समन्वयक डॉ. आर.एस. मीणा ने कहा कि छोटी-छोटी जोत वाले कृषक परिवारों से जुड़ी महिलाओं को सिलाई प्रशिक्षण ही नहीं बल्कि मशीन में आने वाली छोटी-छोटी खराबियों व उन्हें दुरूस्त करने का प्रशिक्षण भी दिया गया। आरम्भ में स्वागत उद्बोधन देते हुए प्रसार शिक्षा निदेशक डॉ. आर.एल. सोनी ने कहा कि सिलाई आज की नहीं, पुरातन विधा है। जबसे मनुष्य ने वस्त्र पहनना शुरू किया। समय के साथ-साथ पहनावे में बदलाव आते रहे। उन्होंने कहा कि महिलाओं को स्वावलंबी बनाने के लिए निदेशालय 35 तरह के प्रशिक्षण आयोजित करता है। महिलाएं अपनी कल्पना को उड़ान देने में पीछे नहीं रहे।
पंद्रह दिवसीय इस प्रशिक्षण में महिलाओं ने रूमाल, कुर्ती, पेटीकोट, घाघरा, छोटे बच्चों का झबला आदि की कटिंग व सिलाई सीखी। मास्टर ट्रेनर डॉ. छवि, डॉ. लतिका व्यास ने बैग सिलाई व सुंदर कशीदाकारी भी सिखाई। इस मौके पर प्रशिक्षणार्थी राधा मेघवाल, शारदा खटीक, कोमल मेघवाल आदि ने अनुभव भी सझा किए। कार्यक्रम में छात्र कल्याण अधिकारी डॉ. मनोज कुमार महला, रश्मि दूबे, डॉ. आदर्श शर्मा व एनबीएसएस थे अधिकारियों ने भी विचार रखे। संचालन डॉ. लतिका व्यास ने किया।