उदयपुर। सूरजपोल स्थित दादाबाड़ी में साध्वी विरल प्रभा श्रीजी ने कहा कि यह लौकिक और लोकोत्तर दोनों पर्व है। यह नारी पूर्णिमा के नाम से भी मनाई जाती है। रक्षा किसकी करनी है, महावीर कहते हैं कि सभी जीवों की रक्षा करनी है। रक्षा बंधन का मतलब र यानी रक्षा करना, क्ष यानी क्षमा करना। 5 प्रकार की रक्षा बताई गई है। साधारण द्रोपदी ने कृष्ण के अंगूठे पर चीरा लगा देखा तो साड़ी का टुकड़ा फाड़कर बांध दिया। दूसरी चांदी की राखी। तीसरी सोने की राखी। चौथी मोती और पांचवी हीरे की राखी। सादी राखी यानी 15 दिन में 2 दिन ब्रह्मचर्य रखो। यानी जीवों की रक्षा करो। चांदी की राखी का अर्थ महीने में 10 दिन ब्रह्मचर्य, सोने की राखी महीने में 25 दिन, मोती की राखी बताती है कि साल भर के लिए ब्रह्मचर्य रखो और हीरे की राखी यह बताती है कि जीवन भर जीवों की रक्षा करो। जो दिख रहे हैं उनकी रक्षा करो।
उन्होंने कहा कि गरीब भाई बहन के पास गया कि ऐसे में कुछ सहायता कर देगी। पत्नी ने खाना बांधकर दिया कि भूख लगे तो खा लेना। जैसे विचार होंगे, वैसे काम होंगे। जंगल में मुनि भगवंत दिखे जिनका मासखमण का पारणा था। साथ में बाजरे की रोटी और राब थी। मुनि भगवंत ने उससे लिया। एक कुत्ता आया तो उसने सब खा लाया। बहन के घर यूँ ही पहुंचा। भाई की स्थिति देखकर पीछे के दरवाजे से ले गई। दिन भर मेहमानों की आवभगत करती रही और शाम तक भाई की ओर जाकर देखा भी नहीं। वापस भाई निकल गया। जहां मुनि भगवंत को पारणा किया था वहां पहुंचकर वहां से छोटे पत्थर पोटली में बांध ली कि कुछ देर तो पत्नी खुश हो जाएगी। पोटली के पत्थर हीरे में बदल गए। भगवान ने उसे धर्म की सेवा करने का पुरस्कार दे दिया था।
समस्त जीवों की रक्षा का पर्व रक्षाबन्धनःविरलप्रभाश्री
