उदयपुर। न्यू भूपालपुरा स्थित अरिहन्त नगर में आयोजित धर्मसभा में बोलते हुए आचार्य ज्ञानचन्द महाराज ने कहा कि सभी धर्मों का मूल संदेश रक्षा ही रहा है। दया धर्म का मूल है। दुनिया का हर इंसान, हर प्राणी चाहता है कि उसकी रक्षा हो।
रक्षाबन्धन यह भाई बहनों का पर्व माना जाता है। इसका मतलब यह है कि पुरुष के लिए अपनी पत्नी के अलावा सारी नारियां बहिनें हैं। उसे बहन की दृष्टि से देखें और यथासंभव उनकी रक्षा करें।
बहिन धागा इसलिए बांधती है कि धागे को देखकर याद रखो कि सभी बहनों को बचाना है।
यह ध्यान रहे कि आप दूसरों की बहन बचाओगे, तभी आपकी बहन बचेगी।दूसरों की बहन की रक्षा में ही स्वयं की बहन की रक्षा विहित है।
जिस दृष्टि से आप अपनी बहन को देखते हो, वैसे आप अपनी पत्नी के अलावा समस्त नारियों को देखो।
ज्ञानेश चातुर्मास समिति के प्रमुख अनिल बंब ने बताया कि महासाध्वी ललिताश्री महाराज रक्षा महोत्सव के कार्यक्रम में भाग लेने एवं आचार्यश्री के दर्शन करने सुभाष नगर से यहां पधारी। उन्होंने रक्षा सूत्र पर मार्मिक प्रवचन दिया। उनके पधारने के उपलक्ष्य में उनके संसार पक्षीय परिवार श्री मेहता एवं कांठेड़ परिवार की ओर से प्रवचन पश्चात प्रभावना का लाभ लिया गया।
आज तपस्या के गीतों की प्रभावना का लाभ महिलारत्न रचित सिद्धार्थ मोगरा ने लिया। रक्षाबंधन के इस अवसर पर उपस्थित सैकड़ो भाई बहनों ने यथाशक्य साधु साध्वी की रक्षा करने का औषधोपचार कराने का संकल्प लिया।
वचन सिद्ध योगी सेठ प्रकाश चंद महाराज साहब के देवलोक गमन हो जाने से विधिवत् प्रवचन रोक कर उनके गुणों का स्मरण करते हुए नवकार जाप कराया गया।
सब प्राणियों की रक्षा ही रक्षाबंधन का सारःज्ञानचन्द महाराज
